मत्स्य व्यवसाय अपनाकर मोरझिरा निवासी पवार कर रहे तरक्की | Matasya vyavasay apnakar morjhira nivasi pavar kr rhe tarakki

मत्स्य व्यवसाय अपनाकर मोरझिरा निवासी पवार कर रहे तरक्की

मत्स्य व्यवसाय अपनाकर मोरझिरा निवासी पवार कर रहे तरक्की

बुरहानपुर (अमर दिवाने) - मध्य प्रदेश के दक्षिण द्वार के रुप में जाना जाने वाला जिला बुरहानपुर, वैसे तो केला उत्पादन के लिये विश्वविख्यात है साथ ही साथ अन्य क्षेत्रों में मछली, बकरी, शहद तैयार करने का कार्य भी जिले में किया जाता है। 

मोरझिरा निवासी मत्स्य उत्पादन को अपनी आजीविका में शामिल कर सफलता की ओर कदम बढ़ा रहे है। उनके इस प्रयास से वे लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र बन रहे है। हम बात कर रहे है ग्राम मोरझिरा निवासी करण सिंह पवार की। 

मत्स्य व्यवसाय अपनाकर मोरझिरा निवासी पवार कर रहे तरक्की

श्री पवार बताते है कि अन्य क्षेत्रों में प्रयासों के बावजूद भी सफलता नहीं मिल पा रही थी। मैं अक्सर ग्राम से जुडे़ जलाशय पर बैठकर अपना काफी समय व्यतीत करता था और सोचता था कि कैसे आगे कार्य किया जाये। अचानक आये ख्याल से की मत्स्य उत्पादन को आय का जरिया बनाया जा सकता है। चूंकि मेरे लिए यह नवीन क्षेत्र था। जिससे शुरूआती तौर पर समस्या का आना लाजमी था। 

इसके लिए मैं मत्स्य उद्योग सहकारी समिति से जुड़ा एवं अपनी कार्ययोजना को अमली जामा पहनाने के प्रयास में लग गया। उन्होंने आगे बताया कि पहले वे महाराष्ट्र से मछली लाकर साईकिल से गांव में बेचते थे। इससे आय कम होती थी। एक दिन मेरे मन में ख्याल आया कि इतने कम पैसे में कब तक साईकिल पर मछली बेचता रहूँगा। इसके बाद मैंने मत्स्य पालन विभाग से संपर्क किया। जिसके बाद मत्स्य अधिकारी श्री भट्नागर से मछली पालन के संबंध में तकनीकि मार्गदर्शन लिया। शासकीय योजना के तहत समिति को 5 लाख रूपये का ऋण प्राप्त हुआ। जिससे समिति द्वारा मछली का जाल, मछली के बच्चें और नाव क्रय की गई। जिससे काफी मदद् मिली। 

उन्होंने बताया कि तालाब में पहले 3 से 4 माह में मछली 400 ग्राम से 500 ग्राम तक होती है और यदि 1 से 2 साल तक रखने पर यही मछली 1 से 2.5 किलोग्राम तक हो जाती है। पूर्व में 20 से 30 हजार रूपये के मछली बीज से लगभग 40 हजार से 70 हजार की आय होती थी। अब शासन से सहायता मिलने मछली बीज से लगभग 2 से 3 लाख रूपये की आय होने लगी है। 

अपने प्रयासों के शुरूआती तौर पर उनके द्वारा जिला सिवनी के मत्स्य बीज प्रक्षेत्र से मत्स्य बीज लाकर ग्राम के छोटे-छोटे दो पोखरों में संचित किया गया। देखते ही देखते उनका यह कार्य बढ़ने लगा। उनके द्वारा बेहतर स्तर पर मछली उत्पादन कर विक्रय कार्य किया जाने लगा एवं आय में भी बढ़ोतरी होने लगी। उन्होंने मत्स्योद्योग सहकारी समिति के अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हुए संस्था के सदस्यों को हैदराबाद संघ के माध्यम से प्रशिक्षण दिलवाया। मछुआ दुर्घटना बीमा का लाभ, बचत सह राहत योजना में भी भागीदारी की। उन्होंने संस्था के 10 मछुआरों को मछुआ भवन बनवाये जाकर आर्थिक सहायता दिलवाने में मदद् की। संस्था के सदस्यों द्वारा मोबाइल वेन, नीली क्रांति योजनान्तर्गत बैंक ऋण के माध्यम से प्राप्त की जाकर मोरझिरा स्थित मत्स्य बाजार के लिए और मोरझिरा से बाजारों के लिए मछली उपलब्ध करायी जाती है। उन्होंने बताया कि समिति के सभी सदस्यों को बंद ऋतु को छोड़कर पूरे वर्ष कार्य उपलब्ध रहता है। सभी सदस्यों की आर्थिक सामाजिक गतिविधियों में विकास हुआ है।

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