कोरोना संक्रमण मैं भी नहीं थमे कैदियों के हाथ 7 महीने में कमाए एक करोड़
जबलपुर सेंट्रल जेल के अंदर 6000 कैदियों ने बहाया पसीना
कोरोना संक्रमण काल में जेल की कमाई से बंदियों के परिवारों को मिली आर्थिक मदद
बंदियों के खून पसीने पर हर साल करोड़ों खर्च
खूब किया पारिश्रमिक और काम
ग्रामीण बंदियों को लाभ
जेल सेवा भी कर रहे हैं बंदी
पेरोल पर घर ले जाते हैं रुपए
राज्य और केंद्र की मदद
बंदियों को दी जा रही राशि
महंगाई के इस दौर में राहत
7 माह में 1 करोड़ से अधिक की राशि मिलेगी
कमाई का आधा हिस्सा बंदियों को मिलता है
जबलपुर (संतोष जैन) - कोरोना महामारी ने पहली बार देश में ऐसा तांडव मचाया कि जो जहां था वहीं रह गया था 7 महीने से अधिक समय तक लॉकडाउन चला शहर में लोग घरों में कैद रहे और कर्फ्यू तक देखा ऐसा ही हाल जेल की चार दीवारों में कैद कैदियों का भी रहा कैदियों की जिंदगी भी सलाखों के पीछे lock-down ही रही लेकिन कैदियों ने परिश्रम करना नहीं छोड़ा एक तरफ मास्क बन रहे थे दूसरी तरफ अन्य परिश्रम कैदियों के द्वारा किया जा रहा था यही कारण रहा कि 7 माह के अंदर 6000 से अधिक कैदियों ने एक करोड़ से अधिक का मेहनतना पाया जिससे उनके घरों की बदहाल हुई आर्थिक स्थिति भी मजबूत हुई जेल की चारदीवारी ओं के अंदर चल रही चक्की से ही बंदियों की परिवार पल रहे कोरोना संक्रमण काल में जेल में बंद छोटी सजा पाने वाले कैदियों को छोड़ा गया कैदियों को पैरोल तक दी गई ताकि जेलों के अंदर कैदियों की संख्या को काबू किया जा सके सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो सके इस बीच जिन सजायाफ्ता कैदियों को पैरोल नहीं मिली वह जेल के अंदर ही सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क का पालन करते हुए परिश्रम कर रहे थे इसी बीच जो भी राशि इन कैदियों को मिली उस पर इन बंदियों के घरों का चूल्हा जल रहा है और बदहाल आर्थिक स्थिति संभल पाई परिवार वालों का इलाज से लेकर दो वक्त की रोटी का इंतजाम हुआ इन कैदियों के पारिश्रमिक से उनके परिवार पल रहे हैं
ग्रामीण बंदियो को लाभ
जेल सेवा भी कर रहे बंदी
जेल में निरूद्ध सबसे सत्रम कारावास के बंदी न केवल बागवानी और कृषि बल्कि जेल सेवा के रूप में दफ्तर का काम भी करते हैं कुछ बंदी कंप्यूटर चलाना जानते हैं तो किसी का राइटिंग वर्क अच्छा है इसके अलावा बहुत से बंधी जेल में चल रहे उद्योग धंधों में महती भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं तो कुछ जेल की व्यवस्थाओं में अहम रोल अदा कर रहे हैं
पेरोल में घर ले जाते हैं रुपए
रोजाना कई बंदी पैरोल पर घर जाते हैं इनका पारिश्रमिक जेल के अंदर ही इनके हाथों में सौंप दिया जाता है इन रूपयो से यह बंदी अपने घर में मिठाइयां और कपड़े आदि लेकर जाते हैं जो बंदी जा नहीं पाते या फिर पैरोल से लौटकर आ जाते हैं उनके रुपए डाक के माध्यम से घर भेज दिए जाते हैं
राज्य सरकार और केंद्र सरकार की मदद
जेल की चारदीवारी में राज्य और केंद्र सरकार की मदद से चलने वाली प्रशिक्षण योजनाओं के माध्यम से भी बंदियो का विकास हो रहा है प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद बंदी जब जेल से बाहर निकलेगा सीधे समाज की मुख्यधारा से जुड़ जाएगा इसलिए जेल में बंदियों को प्रशिक्षण दिए जाते हैं और दिलाए जाते हैं उनको आत्मनिर्भर बनाने की कवायद की जाती है
महंगाई के दौर में राहत
तेजी से बढ़ रही महंगाई से हर तरफ लोग परेशान हैं इस आलम में इन बंदियों को परिश्रम करके जो धन प्राप्त होता है वह काफी राहत प्रदान करता है इस राशि से बच्चों की फीस और दीगर छोटे मोटे खर्चे पूरे हो जाते हैं कई बंदियों के घर वाले तो इस राशि का बेसब्री से इंतजार भी करते हैं
7 माह में 1 करोड़ से अधिक की राशि मिलेगी
पहले बतौर पारिश्रमिक ₹10 मिलते थे फिर 20 और अब ₹72 मिल रहे हैं इस पर श्रमिक से वकीलों की फीस घर की दवा और राशन पानी तक का इंतजाम होता है कमाई का आधा हिस्सा बंदियों को मिलता है जेल के अफसरों का कहना है कि सजायाफ्ता बंदियों से जेल में गार्डनिंग से लेकर वेल्डिंग बुनाई कढ़ाई कबल चादर से लेकर सब्जी और गौशाला का काम करवाया जाता है जिसमें हर दिन बदियो को पारिश्रमिक दिया जाता है इस रकम का आधा हिस्सा बंदियों को मिलता है जबकि पीड़ित पक्ष को आधा हिस्सा जाता है समय के साथ-साथ इस राशि में भी इजाफा होता जा रहा है
बंदियों को दी जा रही राशि
जेल में बंद सजायाफ्ता बंधुओं से श्रम करवाया जाता है इसके बदले उनको पारिश्रमिक राशि दी जाती है जो उनके खातों में ट्रांसफर कर दी जाती है
गोपाल ताम्रकार जेल अधीक्षक सेंट्रल जेल जबलपुर