तप परमात्मा के निकट पहुंचने का माध्यम है तप बिना मुक्ति नहीं | Tap parmatma ke nikat pahuchne ka madhyam hai tap bina mukti nhi

तप परमात्मा के निकट पहुंचने का माध्यम है तप बिना मुक्ति नहीं

राष्ट्रसंत श्री प्रमुखसागरजी महाराज  के उत्तम तप पर केंद्रित प्रवचन

तप परमात्मा के निकट पहुंचने का माध्यम है तप बिना मुक्ति नहीं

जावरा (यूसुफ अली बोहरा) - तप का मतलब खुद को कसते जाना, तप के माध्यम से अपने जीवन की इच्छा का निरोध एवं सांसारिक इच्छाओं का त्याग किया जाए यही तप है l तप प्रायश्चितता, विनयता एवं स्वाध्याय के लिए किया जाता है तप के माध्यम से हमें जीवन को समझने का प्रयास करना होगा क्योंकि तप परमात्मा के निकट पहुंचने का उचित माध्यम है यह प्रवचन राष्ट्र संत श्री प्रमुख सागर जी महाराज ने 10 लक्षण महापर्व के सातवें दिन उत्तम तप पर केंद्रित व्याख्यान में व्यक्त किए l

राष्ट्रसंत ने फरमाया कि जिसने भी तपस्या की वह बहुत कल्याणकारी है आचार्य भगवंतो ने भी कहा है कि जिस व्यक्ति के जीवन में तपस्या नहीं होगी तब तक उसके पाप का क्षय होने वाला नहीं है l तप के तीन प्रकार हैं l यह है- राशिक तप दूसरा- सात्विक तप और तीसरा तामसिक तप l जो तप सम्मान की चाह में किया जाए वह राशिक तप कहलाता है और सात्विक तप केवल आत्म कल्याण की भावना से होता है l यदि व्यक्ति अपनी आत्मा से सात्विक तप करता है तो वह जीवन में आत्मकल्याण को प्राप्त करता है बहुत से लोग परचिंता व परनिंदा में लगे रहते हैं यदि वे परचिंता की बजाए व्यक्ति अपनी चिंता करें तो उसका जीवन धन्य हो जाएगा l तप का अभिप्राय: खुद को तपाना है यह तपन ऐसा नहीं कि जलती अग्नि में हाथों से हाथ सेक लो तप का आशय सांसारिक कई वस्तुओं के उपभोग के परित्याग की परिधि में आती है l जीवन में 12 प्रकार के तप शास्त्रों में वर्णित है जिस प्रकार अग्नि के तीन काम है पकाना , जलाना और प्रकाशमान करना ठीक इसी प्रकार आत्मा के भी तीन काम है उसे पहले पकाना फिर जलाना और बाद में उसे प्रकाशमान करना है l राजा भृतहरि ने  2-2 तपस्या की  12 साल की साधना में उन्होंने ऐसा पदार्थ बनाया कि  जिस पर फेंको बहुत सोना बन जाए और आचार्य सुरचंद्रजी ने भी तपस्या की  उन्होंने धूल को पर्वत पर फेंका तो पूरा पहाड़ सोने का हो गया l दिगंबर साधु की तपस्या अद्भुत होती है एक क्षण में अनंत कर्मों का नाश करती है जो व्यक्ति सन्मार्ग की कामना करता है उसे भी तपस्या करना ही है ऐसे साधु हुए हैं वह हैं श्री सन्मतिसागरजी महाराज साहब जिनका चमत्कार अद्भुत है तपस्या में श्री सन्मतिसागर जी का नाम बहुत सम्मान से लिया जाता है l चातुर्मास समिति के प्रवक्ता  रितेश जैन ने बताया कि कार्यक्रम के पूर्व विधान वाचन का लाभ चातुर्मास समिति के महामंत्री विजय ओरा एडवोकेट ने एवं शांतिधारा का लाभ समाजसेवी नरेंद्र गौतम विनायका ने प्राप्त किया l 11 हजार अर्हम लिखने की बोली का लाभ विनीत मादावत ने लिया l 10 दिवसीय संस्कार शिविर में देश के विभिन्न प्रांतों के 127 शिविरार्थी एवं 51 तपस्वी की घोर तपस्या चल रही है l तपस्या का सामूहिक पारणा 2 सितंबर को  बी एल एम पैलेस खाचरोद नाका जावरा पर होगा l तपस्वीयों को राष्ट्रसंत श्री प्रमुखसागरजी महाराज ने सातवें दिन की तपस्या पर शक्ति संकल्प दिलाया l कार्यक्रम का संचालन  अंतिम कियावत ने किया l

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