मजदूरों ने मीलों भटकते हुए माहौल में मनाया अपना त्यौहार
डिंडौरी (पप्पू पड़वार) - कोरोना के चलते अचानक लगाया लॉकडाउन प्रवासी मजदूरों पर सबसे ज्यादा भारी पड़ा है। उन्हें जब ये पता चला की जिन फैक्ट्रियों और काम धंधे से उनकी रोजी-रोटी का जुगाड़ होता था, वह न जाने कितने दिनों के लिए बंद हो गया है, तो वे घर लौटने को छटपटाने लगे ट्रेन-बस सब बंद थीं। घर का राशन भी इक्का-दुक्का दिन का बाकी था। जिन ठिकानों में रहते थे उसका किराया भरना नामुमकिन लगा। हाथ में न के बराबर पैसा था। और जिम्मेदारी के नाम पर बीवी बच्चों वाला भरापूरा परिवार था। तो फैसला किया पैदल ही निकल चलते हैं। चलते-चलते पहुंच ही जाएंगे। यहां रहे तो भूखे मरेंगे।कुछ पैदल, कुछ साइकिल पर तो कुछ तीन पहियों वाले उस साइकिल रिक्शे पर जो उनकी कमाई का साधन था।जो फासला तय करना था वह कोई 20-50 किमी नहीं बल्कि सैकडों किमी लंबा था।
1886 की बात है। तारीख 1 मई थी। अमेरिका के शिकागो के हेमोर्केट मार्केट में मजदूर आंदोलन कर रहे थे। आंदोलन दबाने को पुलिस ने फायरिंग की, जिसमें कुछ मजदूर मारे भी गए। प्रदर्शन बढ़ता गया रुका नहीं। और तभी से 1 मई को मारे गए मजदूरों की याद में मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
1 मई को फिर मजदूर आई लेकिन इस बार श्रमिकों के लिए यह मजदूर दिवस लाचारी और मजबूरी लेकर आया है। कोरोना माहमारी ने उनकी रोजी-रोटी तो छीनी है साथ ही सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलने को भी मजबूर हुए है। हालांकि मध्यप्रदेश अब शिवराज सरकार अन्य प्रांतो में फंसे मजदूरों को वापस मध्यप्रदेश ला रही है। जिसको लेकर डिंडौरी में भी प्रशासन चैकन्ना बना हुआ है। बाहर से आने वाले मरीजों की वह स्क्रीनिंग करते हुए परीक्षण करने में लगा हुआ है।
मालूम हो कि डेढ़ महीने पहले देश में कोरोना वायरस ने अपनी दस्तक दी थी। कोरोना वायरस के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश में सम्पूर्ण लाॅकडाउन घोषित कर दिया। लाॅकडाउन घोषित होने के बाद महानगरों में काम करने गये प्रवासी श्रमिकों में हा-हाकार मच गई। वह अपने-अपने गांवों की ओर लौट पड़े। कोई साधन न मिलने के बाबजूद वह पैदल ही अपने-अपने नौनिहालों व पत्नी के साथ चल पड़े। उनके पैरों में छाले पड़ गये तो प्यास से गला भी सूखा, जिसकी उन्हें परवाह नहीं थी, परवाह थी तो बस केवल अपने घर पहुंचने की।
प्रवासी श्रमिकों का आज भी अपने-अपने घरों के लिए वापस लौटना जारी है। साधन मिलने के कारण कोई पैदल सफर तय कर है तो तो कोई साईकिल में। सभी की जुबान पर बस एक ही बात है कि वह किसी प्रकार अपने गांव पहुंच जाये और सुरक्षित हो जायें। अब वह आगे कभी भी महानगरों में मजदूरी करने नहीं जायेंगे। मजदूरी करेंगे तो वह अपने गांव में ही करेंगे।
हालांकि  सरकार ने अब ऐसे मजदूरों की सुध ली है। अन्य राज्यों में फंसे मजदूरों को वापस अपने-अपने गांव भेजने के लिए बसे लगा दी है। जिससे प्रवासी श्रमिकों को कोई परेशानी न हो। इसी क्रम में डिंडौरी पहुंच रहे  श्रमिकों की स्क्रीनिंग कराई जा रही है। इसके साथ पहले से कोरनटाइन में रह रहे मजदूरों को बसों अपने-अपने गांव भेजा जा रहा है।
अन्य प्रांतो व महानगरो से चलकर डिंडौरी पहुंचे श्रमिकों का कहना है कि अब वह वहां रहकर करें भी क्या। रोजगार छिन गया है, जो रुपए रखे थे वह भी खत्म हो गए। आगे भी कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है कि लाॅकडाउन कब खुलेगा। अपने-अपने गांव पहुंचकर हम कम से कम दो वक्त की रोटी तो मिल जायेगी।
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