लॉक डाऊन में बैगा जनजाति के लोग चावल में नमक मिलाकर खाने को मजबूर | Lock down main bega ja jati ke log chawql main namak

लॉक डाऊन में बैगा जनजाति के लोग चावल में नमक मिलाकर खाने को मजबूर

मजदूरी न मिलने से परेशान बैगा जनजाति

पंचायत द्वारा मनरेगा के काम नहीं किए गए शुरू

बैगा महिलाओं को नहीं मिली पोषण आहार की राशि

लॉक डाऊन में बैगा जनजाति के लोग चावल में नमक मिलाकर खाने को मजबूर

डिंडौरी (पप्पू पड़वार) - डिंडौरी जिला के करंजिया विकासखंड अंतर्गत ग्राम पंचायत ठाड़पथरा के राष्ट्रीय मानव कहे जाने वाले बैगा जनजाति के ग्रामीण आर्थिक समस्या से जूझ रहे, कोरोना संक्रमण के चलते विगत पचास दिनों से किसी तरह का काम व मजदूरी उन्हें नहीं मिल पा रही, जंगल में मिलने वाली उपज और लकड़ी बेचना भी इन दिनों संभव नहीं रहा जिससे इन परिवारों की आर्थिक स्थिति और भी खराब होती जा रही है। सब्जी भाजी, नमक, मसाला,मिर्च तक को लेकर बहुत परेशान नजर आ रहे हैं।


बैगा ग्रामीणों का कहना है जब से कोरोना महामारी का असर हमारे जिले मे पड़ा है तब से न ही हम घर से निकल पा रहे हैं और न ही हमें तेल, नमक एवं मिर्च मसाला  जैसी आवस्यक वस्तुएं मिल पा रही है, सिर्फ हमें चावल मिला है ग्राम के मजदूर, मजदूरी करके अपने घर की सामग्री खरीद कर अपना घर चलाते हैं लेकिन काम न मिलने और बाजार हाट न भरने से संकटों का सामना कर रहे है।


शासन द्वारा शासकीय दुकानों से चावल उपलब्ध तो  कराया गया लेकिन अन्य सामग्री न मिलने से नमक के साथ खाने को मजबूत है। ठाड़पथरा ग्राम पंचायत में वन विभाग का लकड़ी डिपो है जहा ये बैगा परिवार मजदूरी करके अपना काम चलाते थे किन्तु इस वर्ष जब लकड़ी ढुलाई का समय आया तब लॉक डॉउन के लग जाने से जंगल की निकासी और डिपो से उठाव नहीं हो सका जिससे इस वनग्राम के लोग आर्थिक संकट का सामना करने को मजबूर है और तो और ग्राम  पंचायत द्वारा इस गांव में मनरेगा का कोई काम भी शुरू नहीं किया गया है जिससे ये लोग काम की तलाश इधर उधर भटक रहे है, वहीं वन विभाग के हवाले से बताया गया कि अभी भी बाहर लकड़ी का परिवहन न होने से उतना अधिक काम फिलहाल डिपो में भी नहीं है। बैगा परिवार की महिलाओं को मिलने वाली राशि भी इन लोगो के खाते में नहीं आई है।

लॉक डाऊन में बैगा जनजाति के लोग चावल में नमक मिलाकर खाने को मजबूर

पंचायत सचिव के अनुसार इस गांव के लोग पंचायत में मजदूरी नहीं करते इसलिए काम नहीं करवाया जाता है। गांव में रहने वाले उप सरपंच का कहना है गांव के लोग खुद अपनी मेढ़ बना रहे है लोगो के पास काम नहीं है पर सचिव से कहने के बाद भी वे काम शुरू नहीं करवा रहे हैं जबकि डिपो में काम नहीं है। सचिव द्वारा बैगा जनजाति के महिलाओं के नामों की फीडिंग ही नहीं करवाई गई है जबकि मैंने सबके फार्म उनके पास जमा करवा दिया है पर इन महिलाओं के खाते में राशि अब तक नहीं डली है। बैगा बहुल गांव के लोगों का कहना है की हम वर्षों से परेशान है सरपंच एव सचिव पंचायत में नहीं आते इस कारण हमारा कोई भी कार्य पूर्ण रूप से नहीं हो पाता ,अब हमारी स्थिति यह है कि हम लोग पेज या फिर सरकारी दुकान से मिले चावल को नमक के साथ मिलकर खाने मजबूर है, लॉक डॉउन के कारण सब्जी बहुत महंगी है और ग्रामीणों के पास साग सब्जी खरीदने तक को पैसा नहीं है।


 सरकार भले ही चावल ,दाल, नमक, तेल और आटे आदि की आपूर्ति किए जाने की बात कर रही है पर फिलहाल जिले के ऐसे पिछड़े इलाकों की वास्तविकता कुछ और है हालत यह है की लोगो को पास पेट भरने के लाले पड़े हैं



ठाड़पथरा ग्राम की कुछ बैगा महिलाओं ने अपने खत्म हो चुके मिर्च, मसाले के डिब्बे तक दिखा के बताया कि उन्हें नमक तक मुश्किलों से मिल पाता है और  सब्जी मिल भी रही है तो उनकी कीमत आसमान छूने को है। गांव के बुजुर्गों ने जानकारी दी कि इस संकट में उनका रोजगार पूरी तरह से छीन गया है और पंचायत से कोई सहयोग नहीं मिल पा रहा  जिससे गांव के गरीब परिवार बहुत बेबस है।


सरकार की घोषणाओं और प्रशासन के क्रियान्वयन की कागजी खानापूर्ति कितनी भी ठोस हो पर आज भी जमीनी हकीकत यही है इनकी कमजोर आवाज ग्राम पंचायत और जनपद से अधिक दूर नहीं पहुंच पाती जिससे इनकी स्थिति बद से बदतर होते जा रही है वहीं दिनों दिन इनके हक को हथियाने वालों के हौसले बुलंद होते जा रहे है। गौरतलब है कि लॉक डॉउन के चलते देश के कोने कोने में काम करने गए जिले के कई हजार मजदूरों की वापसी हुई है और हजारों मजदूर अपने घरों तक आने का प्रयास कर रहे है पहली बार एक मोटा मोटा आंकड़ा लोगो के संज्ञान में आया कि जिले के प्रवासी मजदूरों की संख्या लगभग 50 हजार के आसपास है, गरीबी के चलते केरल, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र सहित अन्य प्रदेशों तक काम करने जाते है अपना पेट भरने और जिले के ग्रामीण अंचलों में व्याप्त इस तरह के हालात से मुक्ति पाने।

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