रीवा में 'टैक्स चोरों' की करोड़ों की सल्तनत: NCIB रिपोर्ट ने खोली पोल; छोटे नेता से दुकानदार तक सब शामिल Aajtak24 News

रीवा में 'टैक्स चोरों' की करोड़ों की सल्तनत: NCIB रिपोर्ट ने खोली पोल; छोटे नेता से दुकानदार तक सब शामिल Aajtak24 News

रीवा -  विंध्य क्षेत्र की राजधानी रीवा में जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की सांठगागांठ से पनपे भ्रष्टाचार की जड़ों को लेकर एक गंभीर स्थानीय आरोप सामने आया है। स्थानीय सूत्रों के मुताबिक, वर्ष 2004 के बाद से रीवा में अवैध संपत्ति अर्जित करने वालों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है, जिसमें 'छोटे भैया नेता' से लेकर बड़े दुकानदार तक शामिल हैं। आरोप है कि ये करोड़ों की बेनामी संपत्ति शासन के टैक्स चोरी या अन्य अवैध माध्यमों से जमा की गई है, लेकिन जिले की समस्त जांच एजेंसियां—चाहे वह लोकायुक्त हो या ईओडब्ल्यू—ऐसे लोगों को चिह्नित करने में अभी तक मौन हैं। यह स्थानीय स्थिति उस राष्ट्रीय चिंता को बल देती है जो हाल ही में नेशनल क्राइम इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो (NCIB) की रिपोर्ट में सामने आई है, जिसने भारत के 10 सबसे भ्रष्ट विभागों की सूची जारी की है।

🇮🇳 NCIB रिपोर्ट की छाया में रीवा का भ्रष्टाचार

NCIB की 2025 की रिपोर्ट ने एक बार फिर पुलिस विभाग को सबसे भ्रष्ट बताया है, जिसके बाद राजस्व, नगर निगम और बिजली विभाग का स्थान है। रीवा में स्थानीय स्तर पर यह स्थिति और भी गंभीर दिखती है, जहाँ भ्रष्टाचार अब केवल तंत्र में नहीं, बल्कि सोच में उतर गया है।

रैंकविभाग का नामभ्रष्टाचार का मुख्य क्षेत्र
1.पुलिस विभागफर्जी केस, रिश्वत और पक्षपात
2.राजस्व विभागरजिस्ट्री, दाखिल-खारिज में रिश्वत
3.नगर निगम/नगर पालिकानक्शा, सफाई और निर्माण कार्यों में धांधली
4.बिजली विभागफर्जी बिलिंग, मीटर हेराफेरी
5.सड़क परिवहन विभाग (RTO)लाइसेंस और फिटनेस में भ्रष्टाचार

रीवा पर सवाल: स्थानीय नागरिकों का आरोप है कि रीवा में ये सभी विभाग—राजस्व विभाग में रजिस्ट्री की धांधली हो, नगर निगम में निर्माण की अनुमति हो या पुलिस विभाग में पक्षपात—भ्रष्टाचार की धुरी बने हुए हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि इन विभागों के गठजोड़ से करोड़ों की संपत्ति बनाने वाले लोगों पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं होती?

सत्ता के शीर्ष तक फैला 'लक्ष्मी पूजा' का तंत्र

रिपोर्ट में इस बात पर भी चिंता जताई गई है कि भ्रष्टाचार की जड़ें अब छोटे कर्मचारियों तक सीमित नहीं हैं। यह बीमारी सत्ता के शीर्ष तक पहुँच गई है।

  • राजनीतिक दलों में 'रेट लिस्ट': लेख में आरोप लगाया गया है कि विधायक, सांसद, मंत्री, और संगठन प्रमुखों की संपत्ति वर्षों में कई गुना बढ़ी है, क्योंकि मंत्री बनने से पहले संगठन और दलों में "लक्ष्मी पूजा" (यानी पद की खरीदारी) की परंपरा आम हो चुकी है। मुख्यमंत्री से लेकर स्थानीय निकाय चुनाव तक हर जगह "रेट लिस्ट" की चर्चा होती है।

  • ऊपरी स्तर पर मौन: सरकारें अक्सर छोटे कर्मचारियों पर कार्रवाई करके अपनी ईमानदारी दिखाती हैं, जबकि सत्ता के शीर्ष पर बैठे "मगरमच्छों" पर कोई हाथ नहीं डालता। यह विरोधाभास दर्शाता है कि भ्रष्टाचार नीचे से शुरू नहीं होता, बल्कि ऊपर से उतरता है।

मीडिया और जनता की जिम्मेदारी

आज सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि समाज का चौथा स्तंभ मीडिया भी इस गंदगी से अछूता नहीं रहा है, जहाँ खबरें अब 'बिकने' लगी हैं।

लेख का निष्कर्ष है कि भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए केवल कानून नहीं, बल्कि समाज की सोच में बदलाव जरूरी है। जब तक जनता रिश्वत देने से इनकार नहीं करेगी, जब तक मीडिया ईमानदारी से सच नहीं दिखाएगा, और जब तक राजनीति में ईमानदारी को प्राथमिकता नहीं मिलेगी, तब तक यह जहर खत्म नहीं होगा।

रीवा के संदर्भ में, यह रिपोर्ट स्थानीय जांच एजेंसियों के लिए एक जागृति कॉल है कि वे छोटे कर्मचारियों से आगे बढ़कर उन बेनामी संपत्ति धारकों और राजनीतिक गठजोड़ को चिन्हित करें, जिन्होंने अवैध तरीके से करोड़ों की संपत्ति खड़ी की है, और नियम सबके लिए बराबर हों।


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