माकड़ोन के किसान वासुदेव ने जैविक खाद के प्रयोग से बढ़ाया सन्तरे का उत्पादन
पहले सिर्फ उज्जैन में होती थी बिक्री, अब इन्दौर, भोपाल और राजस्थान भेज रहे सन्तरे
उज्जैन (रोशन पंकज) - तराना के माकड़ोन में रह रहे 62 वर्षीय किसान वासुदेव पाटीदार के फीके से जीवन में अब सन्तरे की प्राकृतिक मिठास घुलने लगी है। पहले जहां उनके बगीचे में लगा सन्तरा कम उत्पादन होने की वजह से मात्र उज्जैन और आसपास के क्षेत्रों में ही बिक पाता था, वहीं जैविक खाद का प्रयोग कर अब भरपूर उत्पादन होने की वजह से उनके बगीचे के सन्तरे इन्दौर, भोपाल और राजस्थान के भवानीमंडी में बिक्री के लिये भेजे जा रहे हैं।
जैविक खाद का उपयोग करने से उगाये गये सन्तरों की जहां तादाद में बढ़ौत्री हुई है, वहीं दूसरी ओर सन्तरों का खट्टा-मीठा स्वाद ऐसा है कि एक बार खाने पर मन करता है कि बस खाते ही चले जायें। वासुदेव की इस सफलता में उद्यानिकी विभाग का विशेष योगदान रहा है। उन्होंने अपनी आठ बीघा जमीन पर विभाग की सलाह अनुसार सन्तरे के लगभग 560 पौधे लगाये थे। पौधों की समय-समय पर ड्रिप द्वारा सिंचाई करने और जैविक खाद का प्रयोग करने के बारे में उन्हें विभाग द्वारा मार्गदर्शन दिया गया।
पौधे लगाने के तीन से चार सालों के बाद अच्छे परिणाम सामने आने लगे। कहते हैं कि सफलता के लिये केवल कड़ी मेहनत ही जरूरी नहीं होती, बल्कि इसके साथ-साथ सही दिशा में मार्गदर्शन भी उतना ही जरूरी होता है। वासुदेव की कड़ी मेहनत और उद्यानिकी विभाग का उचित मार्गदर्शन दोनों ही रंग लाने लगे हैं। यह केवल एक कहावत नहीं है, बल्कि इस रंगत को बाग में लगे चमकीले सन्तरों पर साफ देखा जा सकता है।
वासुदेव के बगीचे में लगे एक सन्तरे के पौधे पर एक क्विंटल से अधिक फल लगते हैं, जिससे वासुदेव को एक साल में छह लाख रुपये तक की आमदनी हो रही है। तराना के वरिष्ठ उद्यानिकी विस्तार अधिकारी श्री सुनील राठौर ने बताया कि विभाग द्वारा उद्यानिकी फसल में तीन साल तक प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पहले साल 36 हजार और दूसरे व तीसरे साल में 12-12 हजार रुपये का अनुदान किसानों को दिया जाता है। इसके अलावा पीएमकेएसव्हाय के तहत सिंचाई के लिये ड्रिप खरीदने पर 50 प्रतिशत तक अनुदान राशि दी जाती है।
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