जैनों के लिये दुर्लभ अंतिम मनोरथ की उत्कृष्ट आराधना कर जैनेत्तर बहन मीता चौहान ने सफल किया ने मानव भव
धन्य हुआ परिवार जिन्होंने सहर्ष आज्ञा प्रदान कर बहन का परभव सुधारा
थान्दला (कादर शेख) - जैन धर्म जन्म से नही संस्कार से चलता है। यही संस्कार चौहान परिवार एवं उनके यहाँ की बहू मीता में सहज देखने को मिले। जैनेत्तर होते हुए पूर्ण चेतन्य अवस्था मे उन्होंने जैनों के लिये भी दुर्लभ अंतिम मनोरथ संथारा ग्रहण किया। उनकी साधना में सहयोगी बन अदम्य साहस के साथ बहन का पर भव सुधार कर अपना जीवनसाथी के प्रति हर कर्तव्य का निर्वाह करते हुए मीता बहन के पति सुरेशचन्द्र चौहान ने भी आजीवन शीलव्रत (ब्रम्हश्चर्य) के प्रत्याख्यान ग्रहण किये। वही उनके द्वारा संस्कारित पूरे परिवार में किसी ने अंतराय नही दी व तीनो पुत्रो ने भी सहयोग दिया।
थान्दला नगर में विराजित सरलमना विदुषी महासती पूज्या श्री धैर्यप्रभाजी व पूज्या श्री निखिलशिला जी म.सा. की विशेष कृपा हुई। मीता बहन को नवकार मन्त्र कंठस्थ याद था, बोलकर हाथ जोड़ कर प्रत्याख्यान ग्रहण किये।
उन्होंने स्वयं इच्छा जाहिर कर म.सा. से कहा मुझे कुछ खाना-पीना नही "मुक्ति में जाना है" वही पूरे समभाव से भजन, नवकार मन्त्र सुनते सुनते प्राण त्यागे। ऐसी दिव्य आत्मा को कोटिशः नमन वन्दन। जैन श्रीसंघ अध्यक्ष जितेंद्र घोड़ावत, धर्मधारा परिवार से भरत भंसाली, आईजा परिवार के पवन नाहर, मूर्तिपूजक संघ के कमलेश दायजी, तेरापंथ समाज के अरविंद रुनवाल, दिगम्बर समाज के अभय मेहता सहित समस्त संघ संगठन व वरिष्ठ पदाधिकारियों ने मीता भवन को जहाँ तक मोक्ष प्राप्त ना हो तब तक जिनेश्वर भगवन्तों के सानिध्य मिलता रहे ऐसी भावना व्यक्त की है।
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