मालवा-निमाड अंचल में श्राद्धपक्ष लगते ही लोकपर्व संझा की हुई शुरूआत | Malwa nimad anchal main shradh paksh lagte hi lokparv sanjha ki shuruat
मालवा-निमाड अंचल में श्राद्धपक्ष लगते ही लोकपर्व संझा की हुई शुरूआत
झाबुआ (अली असगर बोहरा) - मध्यप्रदेश के मालवा-निमाड और आदिवासी अंचलों में आज से श्राद्धपक्ष के लगते ही लोक पर्व संझा बाई का त्यौहार भी प्रारंभ हो गया है। ग्रामीण क्षेत्रों में संजा बाई का पर्व कुंवारी लडकीयां 6 से 16 साल की आयु तक की मनाती है । कहां जाता है कि माता पार्वती अपने माता पिता के घर आती है तब ये पर्व मनाया जाता है । अच्छी घर व अच्छे वर की कामना इस दौरान लडकियों के द्वारा की जाती है। संझा का पर्व मनाने के लिये श्राद्धपक्ष के सोलह तिथियों के अनुसार घर की दिवार पर गाय के गोबर से विभिन्न आकृतियां बनाई जाती है जिनमें फूल, पत्तीया, सिडी, चांद, सूरज, गाडी, लाडा, लाडी आदि की आकृतियां होती है जिन्हे की आकर्षक रंग बिरंगे फूल पत्तीयों से सजाया जाता है और फिर संध्या के समय मोहल्ले की सारी सहेलियां मिलकर संजा बाई के गित गाकर उनकी आरती पूजा करती है और प्रसाद वितरीत करती है। सर्वपितृ अमावस्या को कला कोट बनाया जाता है और फिर संझा माता को नदी या तालाब में विसर्जीत किया जाता है। आजकल आधुनिकता के चलते गाय के गोबर से दिवारो पर आकृतियां बनाते कम ही दिखलाई पडता है बल्कि बाजार में संझा के चित्र बने बनाये आते है जिन्हे पुस्टे पर चिपकाकर दिवार पर टांग दिया जाता हैं । संझा बाई के गित बडे ही कर्ण प्रिय होते है जोकि गलियों में लडकीयों की सुमधुर आवाज में सुनाई देते है। जैसे कि – संजा बाई का लाडा जी लुगडो लाया जाडा जी,अस कई लाया दारिका,लाता कोट किनारी का,संजा तू था रा घरे जा की थारी बाई थने मारेगा,की थने कूटेगा,छोटी से गाडी लूटकती जाये जिनमें बैठा म्हारा संझा बाई । आदिवासी अंचल झाबुआ, आलिराजपुर, धार, बडवानी, इंदौर, खंडवा, खरगोन, रतलाम, मंदसौर, निमच, देवास आदि जिलो में बडे ही उत्साह एवं उमंग के साथ मनाया जाता है ।
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