धान की फसल को करपा रोग से बचाने के लिए कृषि महाविद्यालय बालाघाट के वैज्ञानिकों की सलाह | Dhan ki fasal ko krpa rog se bachane ke liye krashi

धान की फसल को करपा रोग से बचाने के लिए कृषि महाविद्यालय बालाघाट के वैज्ञानिकों की सलाह

धान की फसल को करपा रोग से बचाने के

बालाघाट (टोपराम पटले) - ग्रामीण इलाकों के भ्रमण के दौरान कृषि महाविद्यालय बालाघाट, वारासिवनी के वैज्ञानिकों ने कुछ किसानों के खेतों में धान की फसल पर फफूंद जनित झुलसा (करपा) रोग के लक्षण पाए हैं।कृषि महाविद्यालय के वैज्ञानिकों ने किसानों को सलाह दी है कि वे धान की फसल को ब्लास्ट रोग से बचाने के लिए कदम उठाएं।
किसानों को इस संबंध में दी गई सलाह में बताया गया है कि धान फसल में ब्लास्ट की बीमारी पायरीकुलेरिया ओराईजी नामक फफूंद से उत्पन्न होती है। 20 डिग्री सेंटीग्रेड से कम तापमान, 90 प्रतिशत से अधिक आर्द्रता तथा तीन-चार दिन लगातार हुई बारिश इस रोग के लिए अनुकूल परिस्थितियां निर्माण करती है। रोग का आक्रमण फसल की तीनों अवस्थाओं-नर्सरी, कल्ले फूटने एवं बाली निकलने पर होता है, धान की पत्तियों में आंख के आकार के, कत्थई भूरे रंग के तथा बीच में सफेद रंग के धब्बे पाया जाना इस रोग के प्रमुख लक्षण है। धब्बों के आपस में मिलने से पूरी पत्ती झुलस जाती है। इस रोग के लक्षण पत्तियों के अलावा बाली की गर्दन एवं तने की निचली गांठों पर काले धब्बे के रूप में प्रमुखता से देखे जा सकते है। बाली की गर्दन में रोग का प्रकोप सर्वाधिक नुकसानदायक होता है, क्योकि दानों में दूध भरने से पूर्व रोग के लक्षण प्रकट होने पर दाने खोखले रह जाते है, और उपज काफी घट जाती है।
वैज्ञानिकों ने किसानों को सलाह दी है कि वे धान की फसल को ब्लास्ट रोग से बचाने के लिए जैविक दवा स्पूडोमोनास फ्लोरोसेन्स 5 मि.ली. प्रति लीटर पानी या 1 लीटर प्रति एकड दवा का छिडकाव करें या रासायनिक दवा टेबुकोनोजोल एंड ट्राईफ्लाक्सीस्ट्राबीन दवा का 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में छिडकाव करें या ट्राईसाक्लाजोंल 0.75 ग्राम में एक ग्राम प्रति लीटर पानी में या कीटाजोन 48 प्रतिशत डेढ से 2 मि.ली प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिडकाव करें।
इस रोग की प्रभावशाली ढंग से रोकथाम के लिए अगेती रोपाई या बुआई में संतुलित उर्वरक का उपयोग करने की सलाह दी गई है साथ ही फसल पर रोग का आक्रमण होने की स्थिति में किसानों की यूरिया की टाप-ड्रेसिंग कदापि न करने की सलाह दी गई है, क्योकि ऐसा करने से रोग की तीव्रता और अधिक हो जाती है। इसके साथ ही मेढों की साफ-सफाई पर विशेष ध्यान देने की सलाहज दी गई है। क्योंकि इन पर पाये जाने वाले खरतपतवार विभिन्न रोगों के रोगकारक एवं कीडे-मकोडों का आश्रय स्थल बन जाते हैं।

Comments

Popular posts from this blog

कलेक्टर दीपक सक्सेना का नवाचार जो किताबें मेले में उपलब्ध वही चलेगी स्कूलों में me Aajtak24 News

पुलिस ने 48 घंटे में पन्ना होटल संचालक के बेटे की हत्या करने वाले आरोपियों को किया गिरफ्तार girafatar Aaj Tak 24 News

कुल देवी देवताओं के प्रताप से होती है गांव की समृद्धि smradhi Aajtak24 News