रीवा संजय गांधी अस्पताल अग्निकांड पर स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल रीवा में मातृत्व पर आग, सत्ता मंच पर मनोरंजन कर रही Aajtak24 News

रीवा संजय गांधी अस्पताल अग्निकांड पर स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल रीवा में मातृत्व पर आग, सत्ता मंच पर मनोरंजन कर रही Aajtak24 News

रीवा - रीवा के संजय गांधी मेमोरियल हॉस्पिटल में हुई भयावह घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि सरकारी दावों और जमीनी हकीकत के बीच गहरी खाई है। जिस अस्पताल को मातृत्व और नवजात की सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है, वहीं आग लगने की घटना ने एक मां से उसकी सबसे बड़ी खुशी छीन ली। लापरवाही, अव्यवस्था और सुरक्षा इंतजामों की कमी के चलते एक मां की कोख उजड़ गई और नवजात की जिंदगी आग की लपटों में झुलस गई। यह कोई सामान्य हादसा नहीं, बल्कि सिस्टम की सामूहिक विफलता है। ऑपरेशन थिएटर जैसे अति-संवेदनशील स्थान पर आग लगना यह सवाल खड़ा करता है कि आखिर फायर सेफ्टी ऑडिट, आपातकालीन व्यवस्था और निगरानी तंत्र किस हाल में हैं। पीड़ित परिवार के लिए यह केवल एक घटना नहीं, जीवन भर का ऐसा घाव है जो कभी नहीं भर सकता। मां की ममता, सपने और भरोसा—सब कुछ इस व्यवस्था ने छीन लिया।

इस त्रासदी के बीच रीवा के स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र शुक्ला की भूमिका को लेकर जनता में भारी आक्रोश है। आरोप है कि अपने ही गृह जिले में इतनी बड़ी घटना घटने के बावजूद वे राज कपूर ऑडिटोरियम में अभिनेता सोनू सूद के साथ कार्यक्रम में हंसी-मजाक और मनोरंजन करते दिखाई दिए। सवाल सीधा है—जब अस्पताल में मातृत्व जल रहा था, तब जिम्मेदार मंत्री संवेदनशीलता छोड़ मंच की रौशनी में क्यों थे? एक स्वास्थ्य मंत्री होने के नाते क्या यह उनका नैतिक और संवैधानिक दायित्व नहीं था कि वे तत्काल अस्पताल पहुंचते, पीड़ित परिवार का हाल पूछते, और दोषियों पर सख्त कार्रवाई के निर्देश देते? न कोई तत्काल बयान, न कोई संवेदना, न कोई जवाबदेही—क्या अब जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी केवल कार्यक्रमों तक सीमित रह गई है?

मां पूछ रही है कि इस घटना का जिम्मेदार कौन है—अस्पताल प्रबंधन, स्वास्थ्य विभाग, प्रशासन या फिर वह राजनीतिक व्यवस्था जो हादसों के बाद भी मौन साध लेती है? अगर आज ऑपरेशन थिएटर सुरक्षित नहीं है, तो कल आम मरीज की जान की गारंटी कौन देगा? यह खबर केवल एक मां की कोख उजड़ने की नहीं, बल्कि पूरे रीवा की स्वास्थ्य व्यवस्था पर लगे गंभीर आरोपों की है। यह जनता के भरोसे के जलने की कहानी है। अब वक्त है कि सरकार केवल जांच के आश्वासन न दे, बल्कि दोषियों पर कठोर कार्रवाई करे, अस्पतालों की सुरक्षा व्यवस्था दुरुस्त करे और यह साबित करे कि जनता की जिंदगी मनोरंजन से ज्यादा कीमती है। अगर आज भी जवाबदेही तय नहीं हुई, तो हर अगली घटना में कोई और मां अपनी कोख खोएगी और सिस्टम अपनी संवेदनशीलता।

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