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| रीवा में 'धान खरीदी' को लेकर बड़ा विवाद: मनमानी से बने केंद्र, करोड़ों की मंडी मनगवां उपेक्षित Aajtak24 News |
रीवा - मध्य प्रदेश में भ्रष्टाचार को समाप्त करने के दावों के बावजूद, रीवा जिले में धान खरीदी केंद्रों के चयन को लेकर एक बड़ा घोटाला और मनमानी सामने आई है। आरोप है कि सहकारिता विभाग में अधिकारियों की मिलीभगत से बड़े पैमाने पर लेन-देन हुआ है, जिसके चलते मनमाने तरीके से खरीदी केंद्र आवंटित किए गए हैं।
करोड़ों की मंडी मनगवां क्यों उपेक्षित?
इस पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल रीवा जिले की चर्चित विधानसभा मनगवां मुख्यालय में स्थित सरकारी गल्ला मंडी को लेकर खड़ा हुआ है।
सरकारी उपेक्षा: मनगवां में लगभग दस एकड़ में सहकारी मंडी निर्मित है, जिस पर शासन ने करोड़ों रुपए खर्च किए थे। पूर्व में यहाँ खरीदी भी होती थी, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इस सर्व सुविधा युक्त मंडी में धान खरीदी नहीं कराई जा रही है।
प्राइवेट को प्राथमिकता: आरोप है कि मंडी मनगवां को छोड़कर, धान की खरीदी आसपास के वेयर हाउसों, खुले मैदानों और यहाँ तक कि स्कूल के मैदानों में कराई जा रही है।
अस्तित्व का संकट: स्थानीय लोगों का कहना है कि गल्ला मंडी मनगवां अपने अस्तित्व को खोता जा रहा है, और किसी भी अधिकारी की निगाह इस तरफ नहीं जा रही कि क्यों करोड़ों रुपए लगाकर निर्मित इस मंडी को छोड़कर प्राइवेट स्थानों पर खरीदी की जा रही है।
सहकारिता विभाग में 'लेन-देन' का खेल
खबर के अनुसार, सहकारिता विभाग के धान खरीदी में खूब लेन-देन चला है और लोगों ने मनमानी तरीके से अपना-अपना खरीदी केंद्र लिया है। आरोप है कि कई खरीदी केंद्र के समूह संचालकों ने खरीदी शुरू होने से पहले ही व्यापारियों की धान खरीद रखी है, ताकि खरीदी शुरू होते ही अपना माल पहले सरकारी केंद्र पर जमा कराया जा सके। जानकारों का कहना है कि जिले में पूर्व में भी बहुचर्चित सहकारिता घोटाला सामने आ चुका है। इस नए 'करोड़ों के खेल' में भी ईमानदारी का चोला ओढ़कर भ्रष्टाचारी अधिकारी आज भी बड़े पदों पर बैठे मिल सकते हैं। यह स्थिति मुख्यमंत्री द्वारा भ्रष्टाचार खत्म करने के प्रयासों पर सवाल खड़े करती है, जब कलेक्टर की नाक के नीचे ही ऐसे बड़े वित्तीय खेल हो रहे हैं।
