रीवा संभाग में गरीबों के निवाले पर डाका: सियासी संरक्षण में पनपा 'बहु-करोड़ खाद्यान्न महाघोटाला Aajtak24 News

रीवा संभाग में गरीबों के निवाले पर डाका: सियासी संरक्षण में पनपा 'बहु-करोड़ खाद्यान्न महाघोटाला Aajtak24 News

रीवा - रीवा संभाग में खाद्यान्न वितरण व्यवस्था पर हर साल बहु-करोड़ रुपये का डाका डाला जा रहा है। यह घोटाला अब भ्रष्टाचार के दलदल में इतना गहरा समा चुका है कि धान खरीदी, गोदाम भंडारण, परिवहन और अंततः गरीब हितग्राही को वितरण—हर स्तर पर खुलेआम धांधली की जा रही है। सबसे खतरनाक यह है कि इस महाघोटाले को कथित तौर पर राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है, जिसके चलते जिम्मेदार अधिकारी कार्रवाई करने से पीछे हट रहे हैं। गोदामों में होता है 'जालसाजी' से वजन का जादू इस पूरे भ्रष्टाचार की नींव सरकारी गोदामों में रखी जाती है। नियम कहता है कि गेहूं की एक बोरी का वजन 50 किलो होना चाहिए, लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में भंडारण के बाद यही बोरी रहस्यमयी तरीके से 52 से 54 किलो तक दर्ज की जाती है। यह अतिरिक्त 2 से 4 किलो अनाज, सरकारी फाइलों में 'मानक' दर्शाते हुए, अवैध रूप से गोदामों से निकाल लिया जाता है और सीधे आटा मिलों या निजी व्यापारियों को बेच दिया जाता है।

गरीबों को ठगने का दोहरा खेल गोदामों से अनाज की हेराफेरी के बाद, जब यह उचित मूल्य दुकानों (PDS) तक पहुंचता है, तो वहां दूसरी तरह की धांधली शुरू हो जाती है। परिवहनकर्ता और उठाव एजेंसी की मिलीभगत से वजन को जानबूझकर कम कर दिया जाता है, जिससे हितग्राही को प्रति बोरी 500 ग्राम से 1 किलो तक कम अनाज मिलता है। यानी, गोदाम से बढ़ाया गया वजन बाजार में बिक जाता है, और PDS पर घटाया गया वजन गरीब को मिलता है—यह दोहरी लूट है जो सीधे अन्नदाता की थाली पर वार करती है।

निशुल्क अनाज वितरण बनी घोटाले की नई राह निशुल्क खाद्यान्न वितरण शुरू होने के बाद, यह लूट का तंत्र और मजबूत हुआ है। कई गांवों में पहले हितग्राहियों के अंगूठे लगा लिए जाते हैं, फिर दबंग वर्ग और मध्यस्थ मिलकर उनका अनाज चुरा लेते हैं। सूत्रों के अनुसार, कई क्षेत्रों में तो 50% तक अनाज सीधे परिवहनकर्ता को वापस भेज दिया जाता है, जो बाद में बाजार में कालाबाजारी के लिए उपलब्ध होता है।

'बड़ी मछलियों' को सियासी कवच इस महाघोटाले की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि निगरानी और कार्रवाई लगभग निष्प्रभावी हो चुकी है। चूंकि अनाज अब निशुल्क है, 31 मार्च तक हिसाब-किताब और स्टॉक मिलान की अनिवार्यता खत्म हो गई है, जिससे भ्रष्टाचार को खुली छूट मिल गई है।

रीवा संभाग में यह आम मान्यता है कि गोदाम प्रभारी और उठाव एजेंसियां इतनी छोटी नहीं हैं कि उन पर कार्रवाई की जा सके। ये तत्त्व स्थानीय अधिकारियों, विभागीय एजेंटों और उच्च स्तरीय राजनीतिक तंत्रों तक गहरी पैठ रखते हैं। यही कारण है कि धान खरीदी और परिवहन में करोड़ों रुपये के पिछले घोटालों के आरोप वर्षों से चलते आ रहे हैं, लेकिन आज तक कोई बड़ी मछली कानून के शिकंजे में नहीं फँसी है। आम जनता ने प्रशासन से मांग की है कि इस भ्रष्ट तंत्र को तोड़ते हुए दोषियों पर कड़ी और निष्पक्ष कार्रवाई की जाए, ताकि गरीबों का हक उन तक पहुंच सके और शासकीय छवि धूमिल होने से बच सके।

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