रीवा संभाग में मासूमों की 'ओवरलोडिंग' से खिलवाड़: स्कूल वाहन व्यवस्था का 'काला सच' उजागर Aajtak24 News

रीवा संभाग में मासूमों की 'ओवरलोडिंग' से खिलवाड़: स्कूल वाहन व्यवस्था का 'काला सच' उजागर Aajtak24 News

रीवा - रीवा संभाग में शिक्षा के निजीकरण की तेज रफ्तार के साथ ही स्कूली बच्चों के परिवहन व्यवस्था में घोर लापरवाही का 'काला सच' सामने आया है। शहरों से लेकर गांवों तक बड़ी संख्या में खुले प्राइवेट स्कूलों में बच्चों को लाने-ले जाने वाले तीन पहिया और चार पहिया वाहन सुरक्षा मापदंडों की धज्जियां उड़ा रहे हैं, जिससे मासूमों की जिंदगी लगातार खतरे में बनी हुई है। अनियमित परिवहन व्यवस्था का खतरनाक हाल: बच्चों को स्कूल ले जाने वाले वाहनों में क्षमता से अधिक ठूंस-ठूंसकर भरा जाता है, जो न केवल स्पष्ट रूप से नियमों का उल्लंघन है, बल्कि एक चलता-फिरता खतरा है। रिपोर्ट के अनुसार, 6 या 9 सीटों की क्षमता वाली वैनों में 15 से 20 बच्चों को भरा जा रहा है। ये भीड़ भरी स्कूल वैनें तेज रफ्तार से दौड़ती हैं, जिससे आए दिन वाहन अनियंत्रित होकर पलटने की घटनाएं सामने आती हैं। हर बार बड़ी दुर्घटना टलने पर प्रशासन राहत की सांस लेता है, लेकिन व्यवस्था में कोई ठोस सुधार नहीं होता।

बाल आयोग की स्पष्ट राय: तीनों दोषी बच्चों की सुरक्षा से खिलवाड़ के इस गंभीर मामले पर बाल अधिकार आयोग ने साफ कहा है कि इस लापरवाही के लिए तीन पक्ष समान रूप से दोषी हैं:

  1. अभिभावकों की लापरवाही: माता-पिता अपने बच्चों को ऐसे वाहनों में भेज रहे हैं, जिनकी ओवरलोडिंग स्पष्ट रूप से खतरे का कारण बन सकती है। वे केवल इस बात पर भरोसा करते हैं कि वाहन 'स्कूल का' है, सुरक्षा मानकों पर ध्यान नहीं देते।

  2. स्कूल संचालकों की उदासीनता: कई प्राइवेट स्कूलों में नियमित परिवहन समिति नहीं है। वे बिना फिटनेस, बिना परमिट, बिना सीट बेल्ट और बिना महिला अटेंडर वाले वाहनों का उपयोग कर रहे हैं। ड्राइवरों की जांच तक नहीं होती।

  3. परिवहन विभाग की कमजोर निगरानी: वाहनों की चेकिंग कागजों में ज्यादा और सड़कों पर कम दिखती है। साल में दो-चार बार की औपचारिक जांच करके विभाग अपनी जिम्मेदारी पूरी मान लेता है, जबकि सबसे ज्यादा हादसे का खतरा इन्हीं ओवरलोडेड वाहनों से बना रहता है।

हादसे के बाद सक्रियता, फिर पुरानी ढर्रे पर: यह देखा गया है कि रीवा संभाग में जब भी कोई दुर्घटना होती है, तो प्रशासन, सत्ता पक्ष, विपक्ष, सामाजिक संगठन और बाल आयोग 3 से 10 दिन तक सक्रिय हो जाते हैं। कार्रवाई के दावे किए जाते हैं, धरने और मीटिंगें होती हैं, लेकिन जैसे ही मामला शांत होता है, सारी व्यवस्था फिर से अपनी पुरानी ढर्रे पर लौट आती है।

समाधान की मांग: कलेक्टर जारी करें सख्त आदेश: समाचार पत्र ने जिला कलेक्टर और उच्च प्रशासन से अत्यंत महत्वपूर्ण मांग की है कि इस अव्यवस्था पर विराम लगाने के लिए अब सख्त और बाध्यकारी आदेश जारी किए जाएं। मांग है कि भविष्य में यदि ओवरलोडिंग, फिटनेस/परमिट नियमों का उल्लंघन, या सुरक्षा मानकों की अनदेखी पाई जाती है, तो अभिभावक, स्कूल संचालक, वाहन चालक और संबंधित विभागीय अधिकारी— सभी को बराबर जिम्मेदार मानते हुए तत्काल दंडात्मक कार्रवाई की जाए। यह सख्त मॉडल ही रीवा संभाग में लगातार बढ़ रही परिवहन अव्यवस्थाओं पर विराम लगा सकता है।



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