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| कुपोषण मिटाने की योजना बनी 'भ्रष्टाचार पोषण' का माध्यम: रीवा-मऊगंज में पोषण आहार योजना में 'कागज़ी करोड़ों' का घोटाला Aajtak24 News |
रीवा/मऊगंज - मध्य प्रदेश सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग के तहत संचालित होने वाली पोषण आहार और रुचिकर भोजन योजना रीवा और नवगठित मऊगंज जिले में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और गड़बड़ी की भेंट चढ़ चुकी है। प्रदेश और केंद्र सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना, जिसे कुपोषण मिटाने के लिए विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र संघ के सहयोग से चलाया जा रहा है, पर अब स्थानीय नेता-अधिकारी-समूह की सांठगांठ से बच्चों के हिस्से का निवाला डकारने के गंभीर आरोप लग रहे हैं।
कागजों में करोड़ों का खर्च, ज़मीन पर सिर्फ सूखी खिचड़ी
रीवा और मऊगंज जिले में हजारों आंगनबाड़ी केंद्रों और सरकारी स्कूलों में संचालित साझा चूल्हा योजना और रुचिकर भोजन वितरण कार्यक्रम की हकीकत भयावह है। विभागीय सूत्रों के अनुसार, हर महीने करोड़ों रुपये का खर्च पोषण आहार के नाम पर कागज़ों में दिखाया जाता है, लेकिन जमीनी स्तर पर स्थिति इसके बिलकुल विपरीत है। ग्रामीण अंचलों के अधिकांश केंद्रों पर बच्चों को मीनू के आधार पर संतुलित और पौष्टिक भोजन नहीं दिया जा रहा है। बच्चों को केवल रोटी, चावल, दाल या साधारण खिचड़ी जैसी चीजें ही दी जा रही हैं, जबकि 'रुचिकर पौष्टिक भोजन' योजना का मुख्य उद्देश्य बच्चों को निर्धारित प्रोटीन और विटामिन युक्त आहार प्रदान करना था।
महीनों से बकाया पोषण निधि, रजिस्टर में 'शत-प्रतिशत' वितरण
पोषण योजनाओं में वित्तीय अनियमितता का आलम यह है कि मई 2025 से अब तक अनेक आंगनबाड़ी सहायिकाओं को साझा चूल्हा योजना का पैसा नहीं मिला है। इसी तरह, स्कूलों में मिलने वाली पोषण निधि (स्कूल पोषण कार्यक्रम) भी सितंबर 2025 से अटकी हुई है। इसके बावजूद, जिला और ब्लॉक परियोजना कार्यालयों के रजिस्टरों में भोजन और पोषण आहार का वितरण शत-प्रतिशत पूरा दिखाया जा रहा है। स्थानीय सूत्रों और कुछ ईमानदार कर्मचारियों के अनुसार, सबसे बड़ा घोटाला 'काल्पनिक बच्चों' और 'कागज़ी गर्भवती महिलाओं' के नाम पर हो रहा है। अधिकांश आंगनवाड़ियों में फर्जी बच्चों का एडमिशन और फर्जी बिलिंग के माध्यम से पोषण आहार की कालाबाजारी की जा रही है, जिसकी आज तक कोई गहन जांच नहीं हुई है।
जांच करने वाले अधिकारी भी दबाव में, शिकायतकर्ता को निशाना
इस भ्रष्टाचार के तंत्र में शामिल अधिकारियों की चुप्पी और मिलीभगत पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। मऊगंज के देवतालाब क्षेत्र के हालात इतने खराब हैं कि अधिकारी जांच करने से डरते हैं। नाम न छापने की शर्त पर एक अधिकारी ने स्वीकार किया कि "अगर जांच की तो तुरंत हस्तांतरण या विभागीय कार्रवाई तय है। इसलिए बेहतर है कि सब चुप रहें। सबसे हैरान करने वाली घटना गढ़ कन्या प्राथमिक पाठशाला में हुई। जब प्रधानाध्यापिका ने स्कूल में भोजन वितरण में हो रही गड़बड़ी की लिखित शिकायत की, तो उन पर ही विभाग ने विभागीय कार्रवाई कर दी। इस घटना ने साफ कर दिया कि इस तंत्र में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले को ही निशाना बनाया जाता है, जिससे बाकी लोग डरकर चुप हो जाएं।
नेताओं-अधिकारियों-समूह की सांठगांठ का जाल
आंगनबाड़ी और विद्यालयों में पोषण सामग्री वितरण की जिम्मेदारी महिला स्वसहायता समूहों को सौंपी गई है। आरोप है कि इनमें से अधिकांश समूह राजनीतिक रूप से प्रभावशाली लोगों या विभागीय अधिकारियों के करीबी रिश्तेदारों द्वारा चलाए जा रहे हैं। जिला पंचायत, जनपद पंचायत और ब्लॉक परियोजना कार्यालयों के अधिकारियों की मिलीभगत से ये समूह फर्जी बिलिंग करते हैं, सामग्री की मात्रा में भारी कमी करते हैं, और रिकॉर्ड में हेरा-फेरी कर करोड़ों रुपये का गबन कर रहे हैं। स्थानीय लोगों का आरोप है कि यह योजना कुपोषण मिटाने के बजाय "भ्रष्टाचार पोषण" का माध्यम बन चुकी है, जहाँ गरीब बच्चों का हक मार कर भ्रष्ट लोग अपना पोषण कर रहे हैं।
अभिभावकों की पीड़ा और विश्वास की कमी
ग्रामीण क्षेत्रों में अभिभावक बेहद परेशान हैं। उन्हें लगता है कि उनके बच्चों को सरकार द्वारा वादा किया गया पौष्टिक भोजन कभी नहीं मिला। एक अभिभावक ने दर्द व्यक्त करते हुए कहा, "कागज़ में तो सब कुछ मिलता है, लड्डू भी, दलिया भी। पर हमारे बच्चे को रोज़ वही सूखी रोटी या पतली खिचड़ी मिलती है।" कुपोषण से लड़ने की यह योजना अब ग्रामीण समाज में सरकार और प्रशासन के प्रति विश्वास की कमी और भ्रष्टाचार के प्रतीक के रूप में देखी जा रही है।
जनता की मांग: तत्काल स्वतंत्र जांच हो
स्थानीय सामाजिक संगठनों, जागरूक नागरिकों और अभिभावकों ने मुख्यमंत्री और संबंधित मंत्री से इस पूरे मामले में तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। उनकी मांग है कि किसी बाहरी या स्वतंत्र विशेष जांच एजेंसी द्वारा इस पूरे घोटाले की जाँच कराई जाए।
प्रमुख मांगें:
वित्तीय ऑडिट: साझा चूल्हा और विद्यालय पोषण योजना से संबंधित पिछले 12 महीनों के सभी बैंकिंग लेन-देन की ऑडिट रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए।
अचानक निरीक्षण: सभी आंगनबाड़ी और विद्यालय केंद्रों पर वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा अचानक निरीक्षण (Surprise Inspection) किया जाए और भोजन के सैंपल की गुणवत्ता जांच कराई जाए।
दोषियों पर कार्रवाई: दोषी अधिकारियों, परियोजना अधिकारियों और भ्रष्ट समूह संचालकों की संपत्ति की जांच की जाए और उन्हें तुरंत निलंबित कर कठोर दंडात्मक कार्रवाई की जाए।
डिजिटल पारदर्शिता: योजना में पूर्ण डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम लागू किया जाए ताकि वास्तविक वितरण पर नजर रखी जा सके।
रीवा-मऊगंज जिले की यह गंभीर स्थिति दर्शाती है कि बच्चों के हक का पोषण यदि भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहा है, तो यह केवल प्रशासनिक विफलता नहीं, बल्कि एक मानवीय और नैतिक अपराध है। सरकार को इस 'कुंभकरण तंत्र' पर चाबुक चलाकर, इसे पारदर्शी बनाना होगा।
