रीवा संभाग में 'धीमा ज़हर' बेलगाम: हल्दी-धनिया से लेकर शक्कर तक में 90% तक मिलावट! स्वास्थ्य सुरक्षा पर मंडराया बड़ा संकट Aajtak24 News

रीवा संभाग में 'धीमा ज़हर' बेलगाम: हल्दी-धनिया से लेकर शक्कर तक में 90% तक मिलावट! स्वास्थ्य सुरक्षा पर मंडराया बड़ा संकट Aajtak24 News 

रीवा - रीवा संभाग में खाद्य पदार्थों में मिलावटखोरी ने एक विकराल रूप ले लिया है, जो अब सीधे आम जनता की सेहत और जीवन पर हमला कर रही है। शहर से लेकर दूर-दराज के कस्बों और ग्रामीण अंचलों तक 'ज़हर का कारोबार' इस कदर फैल चुका है कि दूध, घी जैसी बुनियादी चीज़ों के साथ-साथ पिसे मसाले, हल्दी और धनिया तक में खुलेआम नकलीपन चल रहा है। सबसे चौंकाने वाली और गंभीर स्थिति शक्कर में सामने आई है, जहाँ शिकायतें लगातार बढ़ रही हैं कि शक्कर में 90% तक सल्फर की मिलावट की जा रही है।

बच्चों की सेहत पर दोहरा वार

मिलावटखोरों ने अपनी आपराधिक गतिविधियों के लिए एक नया तरीका अपनाया है—एक्सपायरी डेट से खेलना। शहरों और बाज़ारों में जिन पैक्ड खाद्य पदार्थों की निर्धारित एक्सपायरी डेट निकल चुकी होती है, उन्हें बड़ी चतुराई से ग्रामीण क्षेत्रों में खपाया जा रहा है। बच्चों के स्नैक्स, बिस्किट और साबूदाना जैसे पैक्ड आइटम गांवों की दुकानों में बड़ी संख्या में बिकते हैं, जहाँ बच्चों की सेहत के लिए बेहद घातक होने के बावजूद निगरानी नाममात्र की है।

ढाबों और होटलों की बदतर स्थिति

केवल किराना ही नहीं, बल्कि खान-पान की सार्वजनिक जगहों पर भी स्वास्थ्य से खिलवाड़ हो रहा है। संभाग के अधिकांश पुराने होटल और ढाबों में:

  • बार-बार गरम किया गया ** carcinogenic (कैंसरकारी) तेल**,

  • बासी और पुन: गरम किया गया भोजन, ये सब ग्राहकों को परोसा जा रहा है।

वैज्ञानिक रूप से यह प्रक्रिया स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक है, लेकिन खाद्य सुरक्षा विभाग की कार्यवाही बेहद सीमित दिखती है, जिससे इन कारोबारियों के हौसले बुलंद हैं।

कृषि रसायन और प्रदूषित जल

आज के वैज्ञानिक युग में भी स्वच्छ भोजन, स्वच्छ वायु और शुद्ध पेयजल तक पहुँच कठिन होती जा रही है। खेतों में कीटनाशकों और रसायनों का अंधाधुंध उपयोग, तथा फसल पर अत्यधिक दवा-खाद का छिड़काव अनाज को हानिकारक बना रहा है। इन रसायनों का प्रभाव भूसे तक में मौजूद रहता है और धीरे-धीरे भूजल तक पहुंचकर पानी को भी प्रदूषित कर रहा है। यह स्थिति भविष्य के लिए गंभीर स्वास्थ्य संकट का स्पष्ट संकेत है।

कार्रवाई की सुस्त रफ्तार

भले ही सरकार समय-समय पर जांच के दावे करती है, लेकिन रोकथाम के उपाय कम, कार्रवाई धीमी और दोषियों पर प्रभावी दंड का अभाव मिलावटखोरों को प्रोत्साहन दे रहा है। यह कहावत 'पहले बीमारी पैदा करो, फिर दवा बेचो' यहाँ चरितार्थ होती दिखती है।

जनता और प्रशासन के लिए चेतावनी: रीवा संभाग में बढ़ती मिलावटखोरी एक गंभीर सामाजिक और स्वास्थ्य संकट है। जनता की सेहत सुरक्षित रखने के लिए अब कड़ाई से निगरानी, त्वरित कार्रवाई और पारदर्शी व्यवस्था की मांग है। यदि कठोर कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले समय में इसके दुष्परिणाम भयावह हो सकते हैं।

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