पुराना तेल' और बार-बार उबाली गई चाय बन रही कैंसर की वजह! स्वाद के नाम पर धीमा ज़हर परोसा जा रहा Aajtak24 News

पुराना तेल' और बार-बार उबाली गई चाय बन रही कैंसर की वजह! स्वाद के नाम पर धीमा ज़हर परोसा जा रहा Aajtak24 News 

रीवा - आज मानव जीवन एक गंभीर स्वास्थ्य संकट से जूझ रहा है। एक ओर सरकारें आयुष्मान भारत और खाद्य सुरक्षा अधिनियम जैसी करोड़ों की योजनाएं चला रही हैं, वहीं दूसरी ओर आम जनता कैंसर, शुगर, बीपी, और हृदय रोगों के जाल में फँसती जा रही है। अस्पतालों में बढ़ती भीड़ और डॉक्टरों के क्लीनिकों की लंबी कतारें इस बात का प्रमाण हैं कि हम 'स्वाद की चकाचौंध' में अपने जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार की महान नीतियों के बावजूद स्वास्थ्य की बिगड़ती स्थिति का मुख्य कारण है—स्वार्थपूर्ण व्यावसायिकता और पारंपरिक भोजन संस्कृति का विलुप्त होना।

होटलों का 'Reuse' ऑयल: ज़हर से भरी थाली

आजकल होटल, ढाबे और रेस्टोरेंट्स की बढ़ती संख्या ने हमारी पारंपरिक भोजन आदतों को पूरी तरह बदल दिया है। लेकिन इन आकर्षक पकवानों के पीछे छिपा है एक धीमा जहर:

  • पुराना तेल: पुरानी कहावत, "जितना पुराना होटल, उतना पुराना तेल," अब सच साबित हो रही है। समोसे, पकौड़े और पूड़ी जैसी तली हुई चीज़ों में इस्तेमाल होने वाला बार-बार गर्म किया गया तेल (Reuse Oil) शरीर के लिए विष समान है।

  • कैंसर का खतरा: विशेषज्ञों के अनुसार, एक बार उपयोग किए गए तेल को दोबारा गर्म करने पर उसमें ट्रांस फैट्स की मात्रा खतरनाक रूप से बढ़ जाती है, जो सीधे कोशिकाओं को नष्ट करती है और कैंसर, गैस, और लीवर की बीमारियों को जन्म देती है।

चाय और सब्जी: सुविधा नहीं, रोग का कारण

हमारी आदतें भी हमें बीमारियों की ओर धकेल रही हैं। दो आम चीजें—चाय और दाल-सब्जी—भी स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा बन रही हैं:

  • उबाली गई चाय: होटलों पर लगातार गर्म रखी जाने वाली और बार-बार उबाली जाने वाली चाय स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है। इस प्रक्रिया से चाय में टैनिक एसिड और अन्य रासायनिक तत्व बढ़ जाते हैं, जो गैस और एसिडिटी का कारण बनते हैं, और दीर्घकाल में कैंसर का जोखिम बढ़ाते हैं।

  • सब्जी को बार-बार गर्म करना: टिफिन सेवाओं और होटलों में एक ही भोजन को कई बार गर्म किया जाता है। पालक, लौकी, मेथी जैसी कुछ सब्जियां दोबारा गर्म होने पर टॉक्सिक तत्व उत्पन्न करती हैं, जिससे उपभोक्ता धीरे-धीरे बीमारियों की गिरफ्त में आ रहे हैं।

मिलावटखोरी और संस्कृति का पतन

बाज़ार में बिकने वाले नमकीन और फास्ट फूड में छिपा ज़हर भी कम खतरनाक नहीं है।

  • नमकीन में मिलावट: बाज़ारी नमकीन और स्नैक्स में रिफाइंड तेल के साथ-साथ मिलावटी डाई, रंग, और खाद्य रसायन उपयोग किए जा रहे हैं। फूड सेफ्टी विभाग की कोशिशों के बावजूद बाज़ार में मिलावटखोरी चरम पर है।

  • विलुप्त होती संस्कृति: जिस देश में कभी रोटी, चबेना, दूध, दही, घी और साग-सब्जियां रोजमर्रा का हिस्सा थे, वहाँ अब हर उम्र के लोग बाज़ारू मीठा, नमकीन और फास्ट फूड के आदी हो चुके हैं। हमारी पारंपरिक, स्वास्थ्यवर्धक भोजन संस्कृति खतरे में है।

निष्कर्ष: जनता की जागरूकता ही अंतिम समाधान

यह स्पष्ट है कि सरकार की नीतियों से अधिक, जनता की जागरूकता ही इस स्वास्थ्य संकट का समाधान है। हमें यह समझना होगा कि स्वास्थ्य कोई खर्च नहीं—यह एक निवेश है। हमें तत्काल अपने पारंपरिक भोजन, स्वच्छ जीवनशैली, और सादगीपूर्ण खान-पान की ओर लौटना होगा और स्वाद से ऊपर सुरक्षा को महत्व देना होगा। जैसा कि कहा गया है: "हम मरने के लिए पैदा नहीं हुए, बल्कि स्वस्थ जीवन जीने के लिए जन्मे हैं। इसलिए आइए—स्वाद नहीं, स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें।

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