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धान खरीदी में फिर घोटाले की गूंज, पंजीयन प्रक्रिया पर उठे सवाल, बिचौलियों और अधिकारियों की मिलीभगत के आरोप Aajtak24 News |
रीवा/मऊगंज - मध्य प्रदेश में इस वर्ष धान खरीदी हेतु किसानों का पंजीयन अब अंतिम चरण में पहुंच गया है। राज्य सरकार द्वारा 10 अक्टूबर 2025 को अंतिम तिथि घोषित की गई है। यदि शासन ने समय सीमा नहीं बढ़ाई, तो धान पंजीयन का कार्य यहीं समाप्त हो जाएगा। लेकिन इस प्रक्रिया के बीच रीवा और मऊगंज जिलों में धान खरीदी को लेकर एक बार फिर अनियमितताओं की बू उठने लगी है।
बिचौलियों का नेटवर्क सक्रिय, किसानों के नाम पर हो रहा पंजीयन
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, रीवा-मऊगंज अंचल में लगभग 7000 से अधिक बिचौलियों ने किसानों के नाम पर धान पंजीयन करा रखा है। बताया जाता है कि पंचायत और हल्का स्तर पर सर्वे व गिरदावली दर्ज कराने के लिए पटवारियों को ₹100 से ₹200 प्रति किसान तक दिया जा रहा है। यही नहीं, इन बिचौलियों द्वारा पंजीकृत किसानों से भी ₹100 प्रति क्विंटल की दर से राशि वसूली जा रही है। खरीदी केंद्रों से लेकर गोदामों तक, हर स्तर पर ₹20 प्रति क्विंटल तक की बंदरबांट का खेल चलने की चर्चाएं हैं।
निगरानी तंत्र निष्क्रिय, भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने में जुटे अधिकारी
धान खरीदी में पारदर्शिता लाने के लिए जिला प्रशासन द्वारा निगरानी समितियाँ गठित की जाती हैं, परंतु अक्सर जांच केवल कागज़ों तक ही सीमित रहती है। पंचायत स्तर पर चौकीदार से लेकर थाना स्तर पर पुलिस और जिला स्तर पर सीआईडी तक की सूचना श्रृंखला होने के बावजूद अब तक किसी बड़ी कार्रवाई की खबर नहीं है। कई स्थानीय किसानों का कहना है कि निगरानी समितियों और संबंधित अधिकारियों द्वारा “अपना हिस्सा लेकर” शिकायतों पर चुप्पी साध ली जाती है। परिणामस्वरूप वास्तविक किसान आज भी खरीदी केंद्रों पर लंबी कतारों में खड़े रहते हैं, जबकि बिचौलियों के वाहन बिना जांच सीधे केंद्रों में प्रवेश कर जाते हैं।
गोदामों में अव्यवस्था और पुराने स्टॉक की अनदेखी
त्यौंथर, रसिमरिया और मऊगंज क्षेत्र के कई गोदामों में यदि प्रशासन गोपनीय जांच करे, तो यह स्पष्ट होगा कि पिछले वर्षों की खरीदी का धान अब भी अनधिकृत रूप से भंडारित पड़ा है। वहीं, कई स्थानों पर ऐसे किसानों के नाम पर पंजीयन हुआ है जिनके खेतों में धान की बुआई तक नहीं की गई। गिरदावली में कागज़ी आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं, पर ज़मीनी स्तर पर वास्तविक उत्पादन उतना नहीं दिखता।
किसानों की व्यथा, प्रशासन की परीक्षा
धान खरीदी के इस जटिल तंत्र में सबसे अधिक प्रभावित वास्तविक किसान हो रहे हैं। उन्हें खरीदी केंद्रों पर कई दिनों तक लाइन में लगना पड़ता है, जबकि बिचौलियों के “सेट ट्रैक्टर और गाड़ियां” पहले ही खरीदी केंद्रों तक पहुंच जाती हैं। किसानों का कहना है कि यदि प्रशासन गंभीरता से जांच कराए, तो बिचौलियों और कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से चल रहे इस अनाज घोटाले की सच्चाई सामने आ जाएगी। अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या इस बार जिला प्रशासन और खुफिया तंत्र वास्तव में सक्रिय होता है या फिर धान खरीदी का यह भ्रष्टाचार एक बार फिर निगरानी फाइलों की धूल में दबकर रह जाएगा।