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पुजारी के हाथों में उतरा प्रतिशोध का डंडा, चाय की दुकान को लेकर महिला पर बरसा तांडव, मानवता का सवाल खड़ा Aajtak24 News |
रीवा - नगरी के एक विद्यालय के समीप, जहाँ शिक्षा और संस्कार के बीज अंकुरित होने चाहिए, वहाँ एक ऐसी विद्रूप घटना ने अपने काले पंख फैलाए, जिसने समाज के अंतर्मन में छिपे एक कटु सत्य को उजागर कर दिया। एक मंदिर का पुजारी, जिसके हाथों में समाज श्रद्धा के फूल चढ़ाता है, उन्हीं हाथों ने एक महिला पर प्रताड़ना का such a cruel dance किया कि मानो नैतिकता के सभी मानदंड धराशायी हो गए। यह घटना मात्र एक स्थानीय विवाद नहीं रह गई है; यह एक दर्पण बन गई है, जो हमारे सामने कुछ गंभीर प्रश्न रख देती है। विवाद का केंद्र एक साधारण सा चाय का ठेला था, जो शायद उस महिला के परिवार की रोजी- रोटी का एकमात्र सहारा रहा होगा। लेकिन जब 'सेवा' और 'संतोष' का प्रतीक माने जाने वाले पुजारी का सामना एक गरीब महिला की आजीविका से हुआ, तो उसके भीतर का 'क्षुद्र मनुष्य' हिंसा के रूप में प्रकट हो गया। क्या यही है हमारी सामाजिक संरचना का यथार्थ, जहाँ पद और प्रतिष्ठा के मद में अंधा व्यक्ति निर्बल पर अपना आक्रोश उतारने में संकोच नहीं करता?
इस पूरे प्रकरण में सबसे विडंबनापूर्ण पहलू यह है कि यह कृत्य किसी गुप्त कोठरी में नहीं, बल्कि खुले दिन, सार्वजनिक मार्ग पर हुआ। दर्शक मौजूद थे, और किसी की मोबाइल कैमरे ने इस दृश्य को अमर कर दिया। यह सामूहिक चेतना पर एक प्रहार है। सोशल मीडिया पर इस वीडियो के वायरल होने से जो सामाजिक आक्रोश पैदा हुआ है, वह एक स्वस्थ लोकतंत्र का लक्षण है। यह दर्शाता है कि समाज अब ऐसे अमानवीय व्यवहार को सहन करने को तैयार नहीं है, चाहे वह किसी भी वेश या पद से सुसज्जित व्यक्ति से क्यों न हुआ हो।
पुलिस द्वारा मामले का संज्ञान लेना और जाँच शुरू करना न्यायिक प्रक्रिया का एक आवश्यक चरण है। किंतु, केवल कानूनी कार्रवाई ही पर्याप्त नहीं है। हमें एक गहन आत्ममंथन की आवश्यकता है। क्या हमने अपने धार्मिक और सामाजिक पदों को शक्ति का प्रतीक मान लिया है? क्या हमने मानवीय संवेदनाओं को, विशेष रूप से एक महिला की गरिमा और सुरक्षा को, किसी सांसारिक विवाद में तुच्छ समझ लिया है?
यह घटना एक चेतावनी है। यह हमें याद दिलाती है कि सभ्यता का चोला कितना नाजुक है और यह किसी भी क्षण फट सकता है। आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने आप से, अपने आस- पास से और उन मूल्यों से सवाल करें, जिन्हें हमने स्थापित किया है। केवल तभी हम एक ऐसे समाज का निर्माण कर पाएंगे, जहाँ चाय के ठेले जैसी साधारण आकांक्षाएं भी सुरक्षित और सम्मानित हों, और जहाँ पुजारी का हाथ प्रार्थना के लिए उठे, प्रहार के लिए नहीं।