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मौत के बाद की मुस्तैदी, जब प्रशासन ने ‘औचक निरीक्षण’ की पटकथा लिखी Aajtak24 News |
रीवा - छिंदवाड़ा में कोल्ड्रिफ कफ सिरप पीने से हुई 11 मासूमों की मौत के बाद आखिरकार रीवा जिला प्रशासन भी अपने गाढ़े निद्रा योग से बाहर आया। कुंभकर्ण की तरह जब जागा, तो औचक निरीक्षण के नाम पर वही पुरानी रस्म अदायगी दोहराई गई- कुछ दुकानें, कुछ दस्तावेज़, कुछ हस्ताक्षर, और मीडिया को वही जाना-पहचाना बयान- “हम तो पहले से ही निरीक्षण करते हैं।” दरअसल छिंदवाड़ा के दर्दनाक हादसे ने पूरे प्रदेश को झकझोर दिया। मगर रीवा का प्रशासन तब तक शांत था, जब तक आदेश नहीं आया। जैसे ही कलेक्टर प्रतिभा पाल का निर्देश मिला, जागरूकता की फाइलें खुलीं और औपचारिकता की गाड़ियाँ दवा बाजार की ओर रवाना हो गईं। नायब तहसीलदार, पुलिस बल और ड्रग इंस्पेक्टर राधेश्याम बट्टी की टीम निकली, पर कदमों में फुर्ती कम और फाइलों में फुर्ती ज्यादा थी। कागज़ों में लिखा गया “औचक निरीक्षण”, पर ज़मीनी हकीकत में यह पूर्व निर्धारित औपचारिकता ही साबित हुआ। दुकानों में दस्तावेज़ देखे गए, फार्मासिस्ट के नाम पूछे गए, फोटो खींचे गए, और फिर एक पंचनामा तैयार कर दिया गया, जैसे प्रशासन ने संवेदना का कोटा पूरा कर लिया हो।
जब मीडिया ने सवाल उठाया कि क्या प्रशासन हर बार हादसे के बाद ही जागता है?, तो ड्रग इंस्पेक्टर राधेश्याम बट्टी का जवाब सुनकर शायद संवेदना भी मुस्कुरा उठी- हम तो औचक निरीक्षण हमेशा करते हैं, बस मीडिया को जानकारी नहीं होती। यह जवाब सिर्फ एक अधिकारी की नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की मानसिकता का बयान है, जहाँ “नियमित निरीक्षण” का मतलब “नियमित अनदेखी” से है। अगर वाकई निरीक्षण होते रहे हैं, तो फिर कोल्ड्रिफ जैसी दवाओं पर नियंत्रण क्यों नहीं हुआ? फार्मासिस्टों की अनुपस्थिति पर कार्यवाही क्यों नहीं? और क्यों हर मौत के बाद ही फाइलों की नींद खुलती है?
प्रदेश का औषधि नियंत्रण तंत्र अब “सक्रियता” नहीं, “प्रतिक्रियात्मकता” की बीमारी से ग्रस्त है। जब तक कोई त्रासदी नहीं होती, तब तक जनहित महज़ एक पैराग्राफ है और जब होती है, तब जनहित का भाषण तैयार हो जाता है। रीवा के मेडिकल बाजारों में सैकड़ों दुकानें हैं जहाँ फार्मासिस्ट केवल बोर्ड पर दर्ज नाम है, जबकि दवा बेचने वाला व्यक्ति दवा और जिम्मेदारी दोनों से अनभिज्ञ है। ऐसी व्यवस्थाओं में औचक निरीक्षण एक प्रशासनिक नाटक से ज़्यादा कुछ नहीं। अब वक्त है कि प्रशासन अपने ‘औचक’ शब्द को ‘सार्थक’ बनाए। क्योंकि जनता को अब औपचारिक जांच नहीं, ठोस कार्रवाई चाहिए। जनजीवन की सुरक्षा रिपोर्ट से नहीं, जिम्मेदारी से तय होती है और यह जिम्मेदारी किसी आदेश की नहीं, बल्कि जागे हुए अंत:करण की मांग करती है।
इनका कहना है:
राधेश्याम बट्टी, ड्रग इंस्पेक्टर, रीवा/सीधी.... जिले में नियमित रूप से औचक निरीक्षण किए जाते हैं। कोल्ड्रिफ कफ सिरप या उसके समान मॉलिक्यूल की कोई भी दवा दुकानों पर नहीं मिली है। सभी दुकानों का पंचनामा बनाया गया है, और जांच आगे भी जारी रहेगी।