रीवा में सरकारी डॉक्टर बने "निजी दुकानदार": इलाज के नाम पर गरीबों से वसूली का आरोप aarop Aajtak24 News

रीवा में सरकारी डॉक्टर बने "निजी दुकानदार": इलाज के नाम पर गरीबों से वसूली का आरोप aarop Aajtak24 News

रीवा। रीवा में सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर अपने पद का दुरुपयोग कर निजी क्लीनिक और पैथोलॉजी सेंटर चला रहे हैं, जिससे गरीब और मध्यम वर्ग के मरीजों का शोषण हो रहा है। यह आरोप है कि डॉक्टरों, पैथोलॉजी लैब और निजी नर्सिंग होम का एक पूरा तंत्र मरीजों को लूटने में लगा हुआ है।

पैथोलॉजी की मिलीभगत से शुरू होती है लूट

आरोप है कि सरकारी डॉक्टर अपने निजी क्लीनिकों में मरीजों को महंगी जांचों के लिए भेजते हैं। ये जांचें उन्हीं निजी पैथोलॉजी में होती हैं जिनसे उनकी सेटिंग होती है। इन सेंटरों में मनचाही रिपोर्ट बनाई जाती है, जिसमें सामान्य लक्षणों को भी गंभीर बीमारी बताया जाता है। इसके बाद मरीज को महंगे इलाज के लिए संबद्ध निजी नर्सिंग होम या अस्पताल में रेफर कर दिया जाता है। इस पूरे गठजोड़ में डॉक्टर, पैथोलॉजी और नर्सिंग होम सब आपस में "प्रॉफिट शेयरिंग" करते हैं। इसी वजह से रीवा के मरीज अब सरकारी अस्पतालों की बजाय दूसरे शहरों जैसे प्रयागराज, जबलपुर या नागपुर में इलाज कराना पसंद कर रहे हैं।

800 बिस्तर का अस्पताल बना "रेफरल सेंटर"

रीवा में बना 800 बिस्तर का संजय गांधी अस्पताल, जो सस्ती और अच्छी स्वास्थ्य सेवा देने के लिए बनाया गया था, आज सिर्फ एक "रेफरल सेंटर" बनकर रह गया है। यहाँ आए मरीजों को छोटे-मोटे लक्षणों के लिए भी 8000 से 10,000 रुपये तक की महंगी जांचें लिखी जाती हैं। दवाएं भी उन्हीं मेडिकल स्टोर्स से लेने को कहा जाता है, जिनसे डॉक्टरों का कमीशन जुड़ा होता है।

आयुष्मान कार्ड का दुरुपयोग चरम पर

केंद्र सरकार की आयुष्मान भारत योजना भी रीवा में डॉक्टरों की कमाई का जरिया बन चुकी है। आरोप है कि आयुष्मान कार्ड होने के बावजूद मरीजों से इलाज के नाम पर हजारों रुपये वसूले जाते हैं। कई मामलों में तो मरीजों से 3000 से 5000 रुपये तक लिए गए, लेकिन बिल में सिर्फ 500 रुपये दर्शाए गए। स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन की निष्क्रियता से इस तरह की धोखाधड़ी लगातार जारी है।

स्वास्थ्य मंत्री के गृह जिले में ही व्यवस्था चरमराई

यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि मध्य प्रदेश के उपमुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र शुक्ला के गृह जिले रीवा में ही स्वास्थ्य व्यवस्था इस कदर चरमरा चुकी है। जब मंत्री के अपने ही जिले में यह हाल है, तो प्रदेश के बाकी हिस्सों में स्थिति का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। अब सवाल यह है कि क्या प्रदेश सरकार इस मामले में हस्तक्षेप करेगी और दोषियों पर कार्रवाई करेगी? या फिर यह लूट-खसोट, कमीशनखोरी और निजी गठजोड़ ऐसे ही चलता रहेगा? रीवा की जनता को इलाज नहीं, बल्कि एक ईमानदार और पारदर्शी स्वास्थ्य व्यवस्था की जरूरत है।


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