रीवा जेल: अपराधियों का नहीं, नशा कारोबारियों का ठिकाना
रीवा की केंद्रीय जेल की वर्तमान स्थिति इस बात का प्रमाण है कि रीवा संभाग नशे के जाल में बुरी तरह फंस चुका है। जेल के अंदर के सूत्रों के अनुसार, नशीली कफ सिरप, प्रतिबंधित गोलियां, ब्राउन शुगर और गांजा जैसे मादक पदार्थों की तस्करी में पकड़े गए आरोपियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। कई बार तो इन आरोपियों के लिए जेल के विशेष वार्डों में जगह तक नहीं बचती। यह स्थिति दर्शाती है कि नशे का कारोबार अब एक संगठित अपराध का रूप ले चुका है, जिसमें छोटी-मोटी खेप से लेकर बड़े पैमाने पर तस्करी शामिल है।
राजनीतिक संरक्षण और विभागीय मिलीभगत
इस संगठित नशे के कारोबार के पीछे राजनीतिक संरक्षण और कुछ विभागों की मिलीभगत की आशंका जताई जा रही है। रीवा जिले के विधायक और सांसद इस गंभीर मुद्दे पर संसद या विधानसभा में कोई ठोस बहस नहीं करते, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या राजनीतिक दबाव के कारण ही इस पर चुप्पी साधी जा रही है। स्थानीय स्तर पर, एक नशा कारोबारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पुलिस को हर गाड़ी के लिए 5 से 6 लाख रुपये की "मासिक वसूली" दी जाती है। जो लोग यह रकम नहीं दे पाते, उनके खिलाफ दिखावटी कार्रवाई की जाती है, ताकि जनता में "सख्ती" का भ्रम बना रहे। यह मिलीभगत पुलिस, आबकारी और स्वास्थ्य विभाग की एक ऐसी "त्रयी" बनाती है, जो इस त्रासदी को बढ़ावा दे रही है। आबकारी और ड्रग इंस्पेक्टरों की ज़मीनी स्तर पर कोई कार्रवाई न दिखना भी एक गंभीर मुद्दा है।
यूपी कनेक्शन: रीवा में कैसे फैल रहा है ज़हर?
रीवा जिला उत्तर प्रदेश की सीमा से सटा हुआ है, जो इस नशे की सप्लाई चेन का एक प्रमुख कारण है। यूपी से थोक में प्रतिबंधित दवाएं, कफ सिरप और ब्राउन शुगर की खेप चुपचाप मऊगंज, चाकघाट, सिरमौर और नईगढ़ी जैसे सीमावर्ती क्षेत्रों में पहुंचाई जाती हैं। वहां से एक सुनियोजित नेटवर्क के माध्यम से इन्हें गांवों और शहरों के छोटे-छोटे डीलरों तक पहुंचाया जाता है। पुलिस अक्सर उन छोटे डीलरों को पकड़ती है, जिनका "सैटिंग" नहीं हो पाती, जबकि असली मास्टरमाइंड और बड़े थोक व्यापारी आज भी बेखौफ घूम रहे हैं।
सामाजिक और मानवीय संकट
नशे की लत ने रीवा के गांवों और कस्बों में कई परिवारों को बर्बाद कर दिया है। युवा पीढ़ी इस जाल में फंसकर अपनी जिंदगी तबाह कर रही है। माता-पिता अपने बच्चों के इलाज और अंतिम संस्कार तक के लिए कर्ज़ में डूब रहे हैं। यह केवल एक प्रशासनिक विफलता नहीं, बल्कि एक गहरा मानवीय संकट है, जहां डर और चुप्पी के कारण लोग आवाज नहीं उठा पा रहे हैं। यदि यह स्थिति नहीं सुधरी तो वह दिन दूर नहीं जब रीवा संभाग को "नशे का पंजाब" कहा जाने लगेगा। इस खतरे को रोकने के लिए अब उच्च स्तरीय जांच, खुली बहस और सामाजिक चेतना की सख्त आवश्यकता है।