रक्षाबंधन 2025: 40 साल बाद बन रहे हैं शुभ संयोग, जानें कैसे माता लक्ष्मी ने शुरू की थी भाई-बहन के इस पावन पर्व की शुरुआत Aajtak24 News

रक्षाबंधन 2025: 40 साल बाद बन रहे हैं शुभ संयोग, जानें कैसे माता लक्ष्मी ने शुरू की थी भाई-बहन के इस पावन पर्व की शुरुआत Aajtak24 News

नई दिल्ली - भाई-बहन के अटूट प्रेम और विश्वास का प्रतीक, रक्षाबंधन का पावन पर्व इस साल 9 अगस्त को मनाया जाएगा। यह पर्व श्रावण मास की पूर्णिमा को आता है, और इस बार का रक्षाबंधन कई मायनों में खास है। ज्योतिषियों के अनुसार, लगभग 40 वर्षों बाद ऐसा विशेष शुभ संयोग बन रहा है, जो इस दिन को और भी अधिक मंगलकारी बनाता है। 9 अगस्त को रक्षाबंधन का पर्व भद्रामुक्त रहेगा, जिससे बहनें बिना किसी संशय के शुभ मुहूर्त में राखी बांध सकेंगी। इस दिन सुबह से ही सर्वार्थ सिद्धि योग और सौभाग्य योग का विशेष प्रभाव रहेगा। इसके अलावा, सूर्य और बुध कर्क राशि में एक साथ होने से बुधादित्य योग का निर्माण होगा, जबकि बृहस्पति और शुक्र का मिथुन राशि में एक साथ होना भी एक मंगलकारी योग माना जा रहा है। इन सभी शुभ संयोगों के बीच, यह जानना दिलचस्प है कि इस पवित्र पर्व को मनाने की शुरुआत कैसे हुई। धार्मिक कथाओं के अनुसार, सबसे पहले माता लक्ष्मी ने ही अपने भाई को राखी बांधी थी, जिसके बाद से यह परंपरा चली आ रही है। आइए जानते हैं, उस पौराणिक कथा के बारे में, जिसने भाई-बहन के रिश्ते को एक पवित्र धागे में बांध दिया:

जब राजा बलि ने बनवाया भगवान विष्णु को अपना द्वारपाल

पौराणिक कथा के अनुसार, दैत्यराज बलि बहुत ही पराक्रमी और दानी थे। एक बार उन्होंने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया, जिससे उनका यश चारों ओर फैलने लगा। राजा बलि की बढ़ती शक्ति से देवता चिंतित हो गए। तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया और राजा बलि के यज्ञ में पहुँच गए। वहाँ उन्होंने राजा से केवल तीन पग धरती दान में मांगी। राजा बलि ने बिना सोचे-समझे दान देने का वचन दे दिया। जैसे ही राजा ने हामी भरी, भगवान विष्णु ने अपने वामन रूप को विशाल कर लिया। उन्होंने पहले पग में पूरी पृथ्वी नाप ली, दूसरे पग में स्वर्ग लोक को नाप लिया। जब तीसरे पग के लिए कोई जगह नहीं बची, तो राजा बलि ने अपना शीश झुकाकर कहा, "हे प्रभु! तीसरा पग मेरे सिर पर रख दीजिए। राजा बलि की इस भक्ति और समर्पण से भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने राजा को रहने के लिए पाताल लोक प्रदान किया और उनसे एक वरदान मांगने को कहा। राजा बलि ने वरदान मांगा कि, "हे प्रभु! मैं जब भी देखूं तो सिर्फ आपको ही देखूं। सोते-जागते, हर क्षण मैं आपके दर्शन चाहता हूं।" भगवान ने राजा बलि के अनुरोध को स्वीकार कर लिया और उनके साथ पाताल लोक में ही निवास करने लगे, राजा के द्वारपाल बन गए।

माता लक्ष्मी ने बांधी राखी, भगवान विष्णु को वापस लाईं

जब भगवान विष्णु पाताल लोक में राजा बलि के साथ रहने लगे, तो बैकुंठ में माता लक्ष्मी अत्यंत चिंतित और दुखी हो गईं। उन्होंने भगवान विष्णु को वापस लाने का उपाय जानने के लिए देवर्षि नारद से संपर्क किया। नारद जी ने माता लक्ष्मी को एक युक्ति बताई। उन्होंने कहा, "आप राजा बलि को अपना भाई बना लीजिए और उनसे अपने पति को वापस मांग लीजिए।"

नारद जी की बात सुनकर माता लक्ष्मी ने एक साधारण स्त्री का भेष धारण किया और पाताल लोक में राजा बलि के पास पहुंची। वहाँ पहुँचते ही वह रोने लगीं। जब राजा बलि ने उनसे रोने का कारण पूछा, तो माता लक्ष्मी ने कहा कि उनका कोई भाई नहीं है और वह अकेली हैं, इसलिए वह दुखी हैं। राजा बलि, जो बहुत ही दानी और दयालु थे, उन्होंने तुरंत कहा, "हे देवी! आज से मैं आपका भाई हूँ। आप मुझसे कोई भी वरदान मांग सकती हैं। तब माता लक्ष्मी ने राजा को अपनी कलाई पर एक पवित्र धागा (राखी) बांधा और कहा कि "हे भाई! मुझे मेरे पति वापस लौटा दीजिए।" राजा बलि, जो वचन से बंधे हुए थे, उन्होंने भगवान विष्णु को वापस बैकुंठ जाने की अनुमति दे दी। भगवान विष्णु ने भी राजा बलि को हर वर्ष चार माह (चातुर्मास) तक पाताल लोक में निवास करने का वचन दिया।इस प्रकार, माता लक्ष्मी ने अपनी चतुराई और प्रेम से अपने भाई राजा बलि से अपने पति को वापस प्राप्त किया। तभी से, यह माना जाता है कि रक्षाबंधन का पावन पर्व मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधकर उनके लंबे जीवन और सफलता की कामना करती हैं, और भाई जीवन भर अपनी बहन की रक्षा का वचन देता है। यह कथा भाई-बहन के रिश्ते की पवित्रता और उसके महत्व को दर्शाती है।

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