राजस्व चोरी और नियमों का उल्लंघन
आरोप है कि राजस्व विभाग के अधिकारी जानबूझकर खसरा के कॉलम नंबर 12 में वास्तविक स्थिति दर्ज नहीं करते हैं, जिससे निजी भूमि स्वामी प्रति गाड़ी 500 से 1000 रुपये में डंपरों और हाईवा में मोरम बेच रहे हैं। इन सब की उदासीनता के कारण प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़कों पर भी भारी-भरकम वाहन क्षमता से अधिक भार लेकर गुजर रहे हैं, जिससे सड़कें क्षतिग्रस्त हो रही हैं। रीवा जिले के साथ-साथ सीधी और शहडोल से भी सर्वाधिक वाहनों का आयात हो रहा है, जो इस अवैध कारोबार में शामिल हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता उठा रहे आवाज, सरकार पर दबाव
ग्रामीणों ने सोशल मीडिया पर वीडियो जारी कर अपनी आवाज बुलंद की है और समाचार पत्रों के माध्यम से जिले, संभाग और प्रदेश के प्रमुख अधिकारियों का ध्यान इस गंभीर समस्या की ओर आकर्षित कराया है। मोरम की खदानें कहीं-कहीं 100 फीट तक गहरी हो चुकी हैं, जिनमें सर्वाधिक पत्थर निकलने की संभावना है। यह एक गंभीर पर्यावरणीय और सुरक्षा चिंता का विषय है। सवाल उठ रहा है कि क्या सरकार और उसके उच्चाधिकारी, खनिज विभाग, राजस्व विभाग के साथ-साथ इन भूमि स्वामियों को दोषी मानकर कार्रवाई करेंगे? यदि मध्य प्रदेश की सरकारी भूमि पर अवैध खनन हो रहा है, तो क्या संबंधित क्षेत्र के पटवारी, राजस्व निरीक्षक, तहसीलदार और अन्य जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराया जाएगा? इन सबकी लापरवाही से सरकार को भारी राजस्व का नुकसान हो रहा है, जबकि निजी व्यक्तियों की आय में लगातार कई गुना वृद्धि हो रही है।
रीवा और मऊगंज बने अवैध उत्खनन के केंद्र बिंदु
रीवा और मऊगंज जिले अवैध उत्खनन के केंद्र बिंदु बन गए हैं, क्योंकि हर जिले और हर गांव में मोरम युक्त मिट्टी आसानी से उपलब्ध नहीं होती है, जबकि मोरम की आवश्यकता घरों और सड़कों के निर्माण में अनिवार्य रूप से होती है। रीवा और मऊगंज जिले की शायद ही कोई ऐसी तहसील हो, जहां अवैध खनन न होता हो। सिरमौर, रीवा, मऊगंज, हनुमना, नईगढ़ी, और मनगवां तहसील का लगभग हर गांव अवैध खदानों से प्रभावित है। यह स्थिति न केवल सरकार के राजस्व के लिए बड़ा खतरा है, बल्कि यह क्षेत्र के पर्यावरण और सड़क ढांचे को भी नुकसान पहुंचा रही है। स्थानीय लोगों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की मांग है कि इस अवैध कारोबार पर तुरंत रोक लगाई जाए और इसमें संलिप्त सभी दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।