मऊगंज में 'मोबाइल माफिया पत्रकारों' की बाढ़: पत्रकारिता या प्रपंच? क्या प्रशासन सो रहा है? Aajtak24 News

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मऊगंज - एक दौर था जब पत्रकारिता को समाज का दर्पण और लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता था। लेकिन मऊगंज जिले में आज जो स्थिति है, वह पत्रकारिता के उस गौरवशाली इतिहास का अपमान है। सैकड़ों की संख्या में ऐसे लोग, जो केवल मोबाइल और यूट्यूब के सहारे खुद को पत्रकार घोषित कर चुके हैं, समाज के लिए एक बड़ा खतरा बन गए हैं। इन 'तथाकथित पत्रकारों' ने न तो पत्रकारिता के बुनियादी सिद्धांतों को समझा है, न उसकी मर्यादा का पालन करते हैं। इन्होंने इस पेशे को ऐसे निचले स्तर तक गिरा दिया है, जहाँ प्रमाणिकता, भाषा की गरिमा और समाज के प्रति जिम्मेदारी का कोई स्थान नहीं।

पत्रकार नहीं, चरित्र हनन के ठेकेदार

ये 'मोबाइल पत्रकार' सड़क पर घूमते हुए किसी भी प्रतिष्ठित व्यक्ति, जनप्रतिनिधि, अधिकारी, डॉक्टर, शिक्षक या व्यापारी को निशाना बना लेते हैं। कैमरा ऑन कर, अपशब्द और गालियाँ देते हुए, वे इसे 'खुलासा' या 'बड़ा पर्दाफाश' बताकर यूट्यूब पर अपलोड कर देते हैं। इस प्रक्रिया में न कोई FIR होती है, न कोई पुख्ता साक्ष्य पेश किए जाते हैं, लेकिन संबंधित व्यक्ति की बदनामी समाज में तेजी से फैल जाती है। प्रश्न यह उठता है कि क्या यह पत्रकारिता है, या फिर ब्लैकमेलिंग का एक नया और डिजिटल स्वरूप?

दलाली और राजनीतिक एजेंडे का अड्डा बने 'यूट्यूब पत्रकार'

इनमें से अधिकांश कथित पत्रकार राजनीतिक दलों के मुखौटा बनकर काम कर रहे हैं। कोई विपक्षी दलों को नीचा दिखाने के एजेंडे पर काम कर रहा है, तो कोई सत्ता पक्ष को बदनाम करने में जुटा है। दुखद बात यह है कि कुछ लोगों ने इसे सीधे-सीधे दलाली का जरिया बना लिया है। "वीडियो नहीं डालेंगे अगर विज्ञापन दे दो", "हमारे चैनल से जुड़े नहीं तो बदनाम कर देंगे"—इस तरह की खुली धमकियां अब आम हो चुकी हैं, जो पत्रकारिता के नैतिक मूल्यों का खुला उल्लंघन है।

अभिव्यक्ति की आज़ादी का घोर दुरुपयोग

भारतीय संविधान सभी नागरिकों को अभिव्यक्ति की आज़ादी का अधिकार देता है, लेकिन यह आज़ादी निरंकुश नहीं है। किसी की छवि खराब करने, अपमानित करने, धर्म या जाति के नाम पर समाज में विद्वेष फैलाने, या अफवाहें फैलाने की छूट किसी को नहीं है। यह शर्मनाक है कि ऐसे कथित "पत्रकार" न केवल संविधान का मजाक उड़ा रहे हैं, बल्कि समूची पत्रकारिता को एक गाली बना रहे हैं।

रीवा की गौरवशाली परंपरा को कलंकित

रीवा की धरती हमेशा से साहसी, तथ्यनिष्ठ और ईमानदार पत्रकारों की जननी रही है। यहाँ के पत्रकारों ने अपनी कलम से कभी समझौता नहीं किया, सत्ता से सवाल पूछे, और हमेशा जनहित को प्राथमिकता दी। लेकिन आज मऊगंज जिले में इन तथाकथित यूट्यूब पत्रकारों की बाढ़ ने इस गौरवशाली परंपरा को लांछित कर दिया है।

प्रशासन को अब मौन तोड़ना होगा

यह मामला अब केवल पत्रकारिता की गरिमा तक सीमित नहीं है, बल्कि सीधे तौर पर कानून-व्यवस्था और सामाजिक शांति से जुड़ा है। ऐसे लोगों पर फर्जी पत्रकारिता, ब्लैकमेलिंग, आईटी एक्ट, चरित्र हनन और सार्वजनिक शांति भंग करने की धाराओं में तत्काल FIR दर्ज की जानी चाहिए। प्रशासन को अब अपना मौन तोड़ना होगा और यह स्पष्ट करना होगा कि मऊगंज जैसे संवेदनशील क्षेत्र में कौन वास्तव में पत्रकार हैं और कौन केवल मोबाइल लिए 'साइबर गुंडा' बनकर घूम रहे हैं। क्या 'मां सरस्वती की शपथ' लेकर अपशब्दों की बौछार करना और किसी की प्रतिष्ठा पर कीचड़ उछालना ही आज की पत्रकारिता बन चुका है? यदि प्रशासन ने समय रहते इस पर सख्ती नहीं बरती, तो वह दिन दूर नहीं जब समाज ऐसे फर्जी पत्रकारों से तंग आकर कानून को अपने हाथ में लेने को मजबूर होगा।

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