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रीवा संभाग बना अवैध तस्करी का केंद्र: पशु, नशा, शराब और रेत माफिया की समानांतर अर्थव्यवस्था पर प्रशासनिक चुप्पी chuppi Aajtak24 News |
रीवा - रीवा संभाग (रीवा, मऊगंज और सीधी जिले) अब अवैध तस्करी और काले कारोबार के एक बड़े नेटवर्क में तब्दील हो चुका है, जो पूरे विंध्य क्षेत्र की कानून-व्यवस्था और सामाजिक सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती बन गया है। पशु तस्करी, नशीले पदार्थों की बिक्री, अवैध शराब व्यापार और रेत (बालू) के अवैध खनन जैसे काले धंधे यहाँ बेरोकटोक चल रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि हर महीने करोड़ों रुपये की अवैध वसूली आखिर किसकी तिजोरी में जा रही है, क्योंकि यह काला कारोबार पुलिस और प्रशासन के कथित संरक्षण में फल-फूल रहा है।
रीवा संभाग: पशु तस्करी का नया 'हब'
रीवा संभाग पशु तस्करी के मामले में एक चिंताजनक केंद्र बन गया है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के सीमावर्ती जिलों से बड़ी संख्या में मवेशी (बकरियाँ, भैंसें आदि) जबलपुर, नागपुर, हैदराबाद जैसे शहरों के अपंजीकृत बूचड़खानों में भेजे जा रहे हैं। इस अवैध व्यापार के लिए चार प्रमुख मार्ग सक्रिय हैं: रीवा-चाकघाट, डभौरा-सिरमौर, हनुमना-रीवा और सीधी-गुड़ मार्ग।
इन मार्गों से प्रतिदिन औसतन 300 से 400 गाड़ियाँ निकलती हैं, जो मंगलवार, बुधवार और शुक्रवार को 700 से 1000 तक पहुँच जाती हैं। इन गाड़ियों से अवैध वसूली के रेट भी तय हैं: छोटी गाड़ी से ₹1500 और बड़ी गाड़ी से ₹3000 प्रति ट्रिप। यह वसूली 'सेवा शुल्क' के नाम पर निजी व्यक्तियों द्वारा की जाती है, जिनकी पहुँच सीधे उच्च अधिकारियों तक बताई जा रही है।
नशे का फैलता नेटवर्क: प्रयागराज से रीवा तक 'ब्राउन शुगर' और 'मेडिकल नशा'
रीवा संभाग में मेडिकल नशा (कफ सिरप, प्रतिबंधित गोलियां) और ब्राउन शुगर की तस्करी का नेटवर्क भी बेहद संगठित हो चुका है।
मेडिकल नशा प्रयागराज से डभौरा होते हुए रीवा पहुँचता है।
ब्राउन शुगर ओडिशा और छत्तीसगढ़ से होकर सीधी, बैकुंठपुर, सिरमौर के रास्ते मनगवां-रीवा पहुँचता है और यहाँ से उत्तर प्रदेश में प्रवेश करता है।
इन रास्तों से हर महीने करोड़ों की नशीली खेपें भेजी जाती हैं।
शराब और रेत माफिया का आतंक: 'सेटिंग' से चलता है कारोबार
अवैध शराब का व्यापार भी यहाँ बेधड़क चल रहा है। शासकीय लाइसेंसी दुकानों के अलावा हर गाँव-गली में अवैध शराब की बिक्री धड़ल्ले से हो रही है। जानकारी के अनुसार, शराब माफिया संबंधित थानों को प्रतिमाह लाखों रुपये 'सेवा शुल्क' अदा कर रहे हैं। बताया जाता है कि यह पूरा कारोबार 'उच्च स्तरीय सेटिंग' के आधार पर चलता है। व्यवसायियों का कहना है कि जैसे ही कोई नया अधिकारी आता है, कुछ दिन सख्ती रहती है, लेकिन जल्द ही "सिस्टम सेट" हो जाता है और अवैध व्यापार फिर से शुरू हो जाता है। वहीं, खनिज विभाग की नाक के नीचे रेत का अवैध उत्खनन भी जोरों पर है। यदि कोई वाहन 'मंथली' नहीं देता, तो उसे प्रति गाड़ी ₹30,000 से ₹40,000 की रिश्वत देनी पड़ती है, अन्यथा कार्रवाई की धमकी दी जाती है। जो गाड़ियाँ हर महीने ₹20,000 से ₹25,000 का भुगतान करती हैं, उन्हें बेरोकटोक चलने की अनुमति मिल जाती है।
आईजी गौरव सिंह राजपूत की सक्रियता से मची खलबली
रीवा संभाग में आईजी गौरव सिंह राजपूत की पदस्थापना के बाद से स्थिति में कुछ बदलाव देखने को मिला है। पुलिस अधीक्षक मऊगंज और रीवा की टीमों ने हाल के दिनों में कई ताबड़तोड़ कार्रवाइयां कर इन काले कारोबारियों की कमर तोड़ दी है, जिससे माफियाओं में दहशत का माहौल है।
क्या रुकेगा यह अवैध साम्राज्य?
एक ओर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मध्य प्रदेश के उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल ने इस पूरे नेटवर्क को रोकने के लिए सहयोग की मांग की थी, वहीं दूसरी ओर रीवा संभाग की प्रशासनिक मशीनरी की कार्यशैली पर लगातार सवाल उठते रहे हैं। अब जब आईजी स्तर से सख्ती दिख रही है, तो यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि यह मुहिम कितने समय तक चलती है और क्या यह सिर्फ एक अस्थायी अभियान बनकर रह जाती है, या फिर रीवा संभाग को अवैध तस्करी के इस कलंक से हमेशा के लिए मुक्त किया जा सकेगा। यदि इस संगठित अपराध पर प्रशासन ने स्थायी कार्यनीति और जवाबदेही तय नहीं की, तो अवैध व्यापारियों की 'सेटिंग' एक बार फिर व्यवस्था को निगल जाएगी। विंध्य की जनता बदलाव चाहती है—अब यह ज़िम्मेदारी प्रशासन की है कि वह इस विश्वास को कायम रखे।