रीवा संभाग में खनिज माफियाओं का आतंक: बारूद के ढेर पर निरीह जनता, प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की चुप्पी पर सवाल Aajtak24 News

रीवा संभाग में खनिज माफियाओं का आतंक: बारूद के ढेर पर निरीह जनता, प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की चुप्पी पर सवाल Aajtak24 News

रीवा/मध्य प्रदेश - रीवा संभाग में खनिज माफियाओं का आतंक थमने का नाम नहीं ले रहा है, जिससे क्षेत्र की जनता में भारी भय और आक्रोश व्याप्त है। अवैध उत्खनन और अनियमितताओं के कारण आम लोगों का जीवन खतरे में है, लेकिन स्थानीय प्रशासन की चुप्पी और जनप्रतिनिधियों की निष्क्रियता पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। क्षेत्र के निवासियों ने लंबे समय से खनिज विभाग, राजस्व विभाग, वन विभाग और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों से इन माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई की गुहार लगाई है। जनता दरबारों में और अधिकारियों के निरीक्षण के बाद अवैध रूप से चल रही खदानों और क्रेशर संचालकों के खिलाफ कार्रवाई का आश्वासन भी दिया गया था, लेकिन हैरत की बात यह है कि आज तक किसी भी प्रकार की ठोस कार्रवाई अमल में नहीं लाई गई।

प्रशासनिक संरक्षण या दबाव? खनिज माफियाओं का लगातार बढ़ता दबदबा यह सवाल खड़े कर रहा है कि आखिर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही? क्या खनिज विभाग इन माफियाओं के दबाव में काम कर रहा है, या फिर कहीं न कहीं उन्हें प्रशासनिक संरक्षण प्राप्त है? यह स्थिति न सिर्फ कानून-व्यवस्था पर, बल्कि सरकारी तंत्र की पारदर्शिता पर भी प्रश्नचिह्न लगाती है। प्राकृतिक संपदा का अंधाधुंध दोहन: आजादी के बाद और संविधान बनने के बावजूद, जहां प्रकृति और हर व्यक्ति के अधिकारों को संरक्षित करने की बात कही गई, वहीं सफेदपोश सत्तासीन लोगों द्वारा प्रकृति का इस तरह से दोहन किया गया है कि सारे वन बंजर हो गए हैं, और ज़मीनें खोखली कर दी गई हैं। नतीजतन, जंगली जानवर बस्तियों की ओर भागने लगे हैं। जनप्रतिनिधि, चाहे वे सत्ता में हों या विपक्ष में, लुभावने भाषण तो देते हैं, लेकिन उनकी कथनी और करनी में बहुत बड़ा अंतर होता है।

रीवा संभाग में मुरम, पत्थर, बालू और मिट्टी का सर्वाधिक अवैध उत्खनन हुआ है। खनिज नियमों के तहत निर्धारित गहराई से कई गुना ज्यादा गहरी खदानें खोद दी गई हैं। मनगवां, सिरमौर, नईगढ़ी, मऊगंज, हनुमना, रायपुर और रीवा सहित कई तहसीलों में पत्थर और मुरम का बड़े पैमाने पर अवैध खनन हुआ है, और राजस्व खसरे के कॉलम नंबर 12 में भी वास्तविक स्थिति दर्ज नहीं है। पहाड़ों को दो-दो सौ फीट गहरा खोदकर उन्हें समुद्र जैसा बना दिया गया है। जनप्रतिनिधियों की चुप्पी पर संदेह: सबसे अहम बात यह है कि अब जनप्रतिनिधियों की चुप्पी भी संदेह के घेरे में है। जनता पूछ रही है – जब अवैध उत्खनन का निरीक्षण हो चुका है और कार्रवाई के निर्देश भी जारी हो चुके हैं, तो फिर ये चुप्पी क्यों? क्या जनप्रतिनिधियों की निष्क्रियता भी इस अवैध कारोबार को बढ़ावा दे रही है?

रीवा संभाग में खनिज माफियाओं का यह बेलगाम राज न केवल पर्यावरणीय असंतुलन पैदा कर रहा है, बल्कि क्षेत्र की निरीह जनता को भी बारूद के ढेर पर जीने को मजबूर कर रहा है। प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को इस गंभीर समस्या पर तत्काल ध्यान देने और ठोस कार्रवाई करने की आवश्यकता है।

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