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रीवा मेडिकल कॉलेज में मर्यादा तार-तार: नर्सिंग छात्राओं से अभद्रता के आरोप में डॉ. अशरफ निलंबित Aajtak24 News |
रीवा - स्थित श्याम शाह मेडिकल कॉलेज, जो प्रदेश की चिकित्सा शिक्षा का एक गौरवशाली केंद्र माना जाता है, इन दिनों ऐसे कारणों से सुर्ख़ियों में है जो किसी भी शिक्षण संस्था की गरिमा को आहत करते हैं। ENT विभाग में पदस्थ चिकित्सक डॉ. अशरफ पर नर्सिंग छात्राओं के साथ अभद्र व्यवहार, मर्यादाहीन भाषा और लैंगिक टिप्पणियों के गंभीर आरोप लगे हैं। ये आरोप केवल व्यक्तिगत आचरण का प्रश्न नहीं, बल्कि पूरे संस्थान की संवेदनशीलता और शैक्षणिक मर्यादा की परीक्षा हैं।
जब मर्यादा टूटती है, मौन अन्याय को बल देता है!
नर्सिंग शिक्षा ग्रहण कर रहीं द्वितीय और तृतीय वर्ष की छात्राओं ने, साहस जुटाकर कॉलेज प्राचार्य प्रवीण पटेल से अपने अपमान की व्यथा साझा की। लेकिन यह तथ्य भी उतना ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रशासनिक गलियारों में यह शिकायत देर तक अनसुनी रही। अंततः जब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) ने इस मुद्दे को छात्रहित और सामाजिक मर्यादा के प्रश्न के रूप में उठाया और कॉलेज डीन डॉ. सुनील अग्रवाल का घेराव किया, तब जाकर प्रशासन हरकत में आया। यहां सवाल यह है कि क्या किसी शिक्षण संस्थान को अपनी अंतरात्मा के बजाय बाहरी दबाव से संचालित होना चाहिए?
निलंबन नहीं, चेतावनी है यह पूरे चिकित्सा समाज के लिए!
डॉ. अशरफ को निलंबित किया जाना एक तत्कालिक समाधान है, किंतु यह घटना हमें बहुत कुछ सोचने पर विवश करती है। क्या चिकित्सकीय ज्ञान का अभिमान कुछ लोगों को इस हद तक अंधा कर देता है कि वे मर्यादा की सीमाएं लांघ जाते हैं? यह न केवल छात्राओं के आत्मसम्मान का हनन है, बल्कि चिकित्सा जैसे सेवा धर्म को अपवित्र करने जैसा है। डॉ. अशरफ की पूर्व विवादित पृष्ठभूमि, विशेषकर तबलीगी जमात प्रकरण में दर्ज एफआईआर, उनके आचरण पर पहले से ही प्रश्नचिन्ह लगाती रही है। यह स्पष्ट करता है कि व्यक्तिगत विचारधारा और सामाजिक अनुशासन के मध्य संतुलन न बना पाने वाले व्यक्ति को शैक्षणिक दायित्वों से दूर रखना ही संस्थान की गरिमा के हित में है।
शिक्षण संस्थान केवल ज्ञान का नहीं, चरित्र का भी निर्माण करते हैं!
यह केवल नर्सिंग छात्राओं के लिए नहीं, बल्कि सम्पूर्ण शैक्षणिक समाज के लिए चेतावनी है कि शिक्षा के मंदिरों में मर्यादा का दीपक सदा प्रज्ज्वलित रहना चाहिए। वरना अंधकार से केवल चरित्र नहीं, राष्ट्र का भविष्य भी ग्रस्त हो जाता है। प्रबंधन द्वारा उठाया गया यह कदम सराहनीय है, किंतु इससे आगे जाकर अब यह आवश्यक है कि सभी छात्राओं को सुरक्षित संवाद की संरचना मिले, इंटरनल कमेटी (ICC) जैसे प्रावधानों को प्रभावशाली और संवेदनशील बनाया जाए, और गुप्त निगरानी से ऐसे व्यवहारों को प्रारंभिक चरण में ही रोका जाए। डॉ. अशरफ का निलंबन एक घटनाक्रम नहीं, सिस्टम के लिए सबक है। यह एक प्रतीकात्मक कार्रवाई है, जो बताती है कि जब विद्यार्थियों की गरिमा खतरे में हो, तब मौन रहना भी अपराध बन जाता है। शिक्षा केवल किताबी ज्ञान नहीं, संस्कार और संवेदना की शिक्षा है, और उसी की पुनर्स्थापना आज के निर्णय में दिखाई देती है। मर्यादा ही शिक्षक की सबसे पहली योग्यता है और जब वह ही टूट जाए, तो निलंबन नहीं, आत्मचिंतन होना चाहिए।