समुद्र बनी खदानें, जवाबदेही का अभाव
नियमों के अनुसार, हर खदान की सीमाएं, गहराई, पर्यावरणीय प्रभाव और राजस्व का पूरा लेखा-जोखा खसरा रिकॉर्ड में दर्ज होना चाहिए। लेकिन, जमीनी हकीकत इसके बिल्कुल उलट है। वर्तमान में, कई खदानें 100 फीट से भी अधिक गहरी हो चुकी हैं और सैकड़ों फीट के विशाल क्षेत्र में फैली हुई हैं। इनमें से अधिकांश आज बारिश के पानी से जलमग्न होकर खतरनाक गड्ढों में तब्दील हो चुकी हैं, जो आए दिन दुर्घटनाओं का कारण बन रही हैं। नाबालिगों के डूबने, वाहनों के गिरने और मानव जीवन की क्षति अब आम बात हो चुकी है, बावजूद इसके खनिज विभाग और राजस्व विभाग मौन दर्शक बने हुए हैं।
क्या खनिज विभाग सिर्फ निजी स्वार्थों का केंद्र?
यह एक बड़ा और गंभीर प्रश्न है कि क्या खनिज विभाग का गठन केवल कुछ खास लोगों को फायदा पहुंचाने और ठेकेदारों की मुनाफाखोरी सुनिश्चित करने के लिए किया गया है? यदि ऐसा नहीं है, तो फिर खनन नियमों की ऐसी खुलेआम धज्जियाँ क्यों उड़ रही हैं? ऐसा प्रतीत होता है कि विभाग सिर्फ कागजी खानापूर्ति तक ही सीमित रह गया है। खदानों का सत्यापन, निरीक्षण और पारदर्शी नीलामी जैसी महत्वपूर्ण प्रक्रियाएं महज औपचारिकता बनकर रह गई हैं। राजस्व विभाग के खसरा-पंचसाला रिकॉर्ड, विशेषकर कलम नंबर 12, में किसी भी भूमि के उपयोग की वास्तविक स्थिति दर्ज होनी चाहिए। यदि यह कार्य समय पर और ईमानदारी से किया जाए, तो न केवल सरकार को पारदर्शी रिपोर्ट प्राप्त होगी, बल्कि आम जनता को भी न्याय के लिए न्यायालयों के अनावश्यक चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे।
न्यायालयों पर बढ़ता बोझ और सरकार से कड़े कदम की अपेक्षा
प्रशासनिक तंत्र की इस निष्क्रियता के कारण सामान्य जनता को सूचना का अधिकार, याचिकाएं और जनहित याचिकाओं के माध्यम से न्याय की लड़ाई लड़नी पड़ती है, जिससे न्यायालयों पर भी अनावश्यक बोझ बढ़ता है। अब समय आ गया है कि शासन स्तर पर एक समन्वित और पारदर्शी खनिज प्रबंधन प्रणाली लागू की जाए। ड्रोन सर्वे, जीपीएस आधारित ट्रैकिंग और खसरा रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण आज की आवश्यकता है। साथ ही, जो अधिकारी या कर्मचारी अपने दायित्वों में लापरवाही बरतते हैं, उनके विरुद्ध सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई होनी चाहिए। 75 वर्षों में हमने कानून तो अनगिनत बनाए, लेकिन जमीन पर उनका क्रियान्वयन आज भी एक बड़ी चुनौती है। यदि यही स्थिति रही, तो आने वाली पीढ़ियों को हम केवल गहरे गड्ढे, सूखे जलस्रोत और एक बर्बाद पर्यावरण ही सौंप पाएंगे। सरकार और प्रशासन को अपनी जवाबदेही समझनी होगी और धरातल पर ईमानदारी से काम करना होगा, अन्यथा ये अवैध खदानें न केवल हमारे भूगोल को निगलेंगी, बल्कि हमारी पूरी व्यवस्था की नाकामी की कब्रगाह बन जाएंगी।