मऊगंज में 'जलगंगा संवर्धन' के नाम पर 'भ्रष्टाचार गंगा' का आरोप: 40 मिनट के कार्यक्रम में 10 लाख रुपये स्वाहा Aajtak24 News


मऊगंज में 'जलगंगा संवर्धन' के नाम पर 'भ्रष्टाचार गंगा' का आरोप: 40 मिनट के कार्यक्रम में 10 लाख रुपये स्वाहा Aajtak24 News

मऊगंज - मध्य प्रदेश में शहडोल के 'ड्राय फ्रूट घोटाले' की गूंज अभी थमी भी नहीं थी कि अब मऊगंज में 'जलगंगा संवर्धन' कार्यक्रम के नाम पर हुए एक कथित बड़े घोटाले ने सबको चौंका दिया है। 17 अप्रैल 2025 को मऊगंज जनपद के ग्राम खैरा में आयोजित महज 40 मिनट के एक सरकारी कार्यक्रम पर 10 लाख रुपये का भारी-भरकम खर्च दिखाया गया है। चौंकाने वाली बात यह है कि इस खर्च के बिल 'प्रदीप इंटरप्राइजेज' नामक एक ऐसी दुकान से लगाए गए हैं, जो कथित तौर पर बिजली का सामान बेचती है, लेकिन बिलों में गद्दे और चादरें किराए पर देने का जिक्र है। यह मामला सरकारी आयोजनों में होने वाले फर्जीवाड़े, झूठे खर्चों और वित्तीय अनियमितताओं का एक जीता-जागता उदाहरण बन गया है।

फर्जीवाड़े का 'मऊगंज मॉडल': बिलों से लेकर डिजिटल सिग्नेचर तक में हेराफेरी

इस 'घोटाले' के पीछे की कहानी बेहद चौंकाने वाली है, जिसे 'मऊगंज मॉडल ऑफ करप्शन' का नाम दिया जा रहा है:

  • एक ही फर्म को सारे भुगतान: कार्यक्रम से संबंधित सभी प्रकार के भुगतान – किराना, टेंट, मिठाई, लाइट, गद्दा, चादर, कुर्सी – सब कुछ प्रदीप इंटरप्राइजेज को किए गए। हैरानी की बात यह है कि यह फर्म बिजली का सामान बेचने वाली बताई जा रही है।

  • हवा में गद्दे और चादरें: बिलों में 30 रुपये प्रति गद्दे और 35 रुपये प्रति चादर के हिसाब से भुगतान दिखाया गया है, लेकिन ग्रामीणों और यहां तक कि स्थानीय जनप्रतिनिधियों का भी दावा है कि कार्यक्रम स्थल पर न तो गद्दे दिखे, न चादरें और न ही उन्हें पीने के लिए पानी तक नसीब हुआ। ग्रामीणों के अनुसार, उन्हें टैंकर का गंदा पानी पिलाया गया और खाने का कोई इंतजाम नहीं था।

  • डिजिटल सिग्नेचर और मोबाइल फोन पर डाका: सबसे गंभीर आरोप यह है कि लेखापाल की डिजिटल सिग्नेचर (DSC) और मोबाइल फोन जबरन छीनकर बिल पास किए गए। खुद लेखापाल ने इस संबंध में जनपद अध्यक्ष को लिखित शिकायत की थी, जिसके बाद जनपद अध्यक्ष के पत्र लिखने पर उनकी डीएससी वापस लौटी। यह सीधा-सीधा साइबर अपराध और शासकीय धोखाधड़ी का मामला प्रतीत होता है।

  • स्वीकृति से कई गुना ज्यादा निकासी: पंचायत दर्पण पोर्टल पर इस कार्यक्रम के लिए मात्र ₹2.54 लाख की स्वीकृति दिख रही है, जबकि ₹7.45 लाख से अधिक की निकासी की गई है। इस पूरे खर्च के लिए न तो कोई बैठक हुई, न कोई प्रस्ताव पारित हुआ और न ही कोई अनुमोदन लिया गया, जो वित्तीय नियमों का सीधा उल्लंघन है।

जनप्रतिनिधियों की अनदेखी और विवादों में घिरे अधिकारी: प्रशासन पर सवाल

जनपद अध्यक्ष नीलम सिंह परिहार ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा, “हमें पानी तक नहीं दिया गया, फिर 10 लाख रुपये किन पर खर्च हुए? ये तो खुला भ्रष्टाचार है।” उन्होंने बताया कि उन्हें और अन्य जनप्रतिनिधियों को मंच पर भी नहीं बैठने दिया गया। इस पूरे मामले में प्रशासन पर भी उंगलियां उठ रही हैं। जनपद मऊगंज में एक पीसीओ को नियमविरुद्ध सीईओ का प्रभार दिया गया है, जिनके खिलाफ पहले से ही लोकायुक्त में शिकायत दर्ज है। एक वित्तीय सीईओ और एक प्रशासनिक सीईओ, और दोनों ही विवादों में घिरे हुए हैं। आरोप है कि जिला कलेक्टर सहित वरिष्ठ अधिकारी भी इस पूरे मामले से आंखें मूंदे बैठे हैं। शेख मुख्तार सिद्दीकी, ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष (अल्पसंख्यक) ने इस घटना को "जलगंगा नहीं, घोटालागंगा" बताते हुए कहा कि वे इसे विधानसभा तक उठाएंगे।

जनता की मांग: सिर्फ जांच नहीं, 'तत्काल गिरफ्तारी' हो

शहडोल के बाद मऊगंज में सामने आया यह कथित घोटाला अब देश की नौकरशाही और लोकतंत्र पर सीधा सवाल उठा रहा है। जनता जानना चाहती है:

  • क्या 'प्रदीप इंटरप्राइजेज' वाकई कोई पंजीकृत और वैध फर्म है या केवल कागज़ों पर तैयार किया गया एक मुखौटा?

  • बिना किसी दृश्यमान सेवा या सामग्री के इतने भारी भरकम बिल कैसे पास हो गए?

  • लेखापाल से डीएससी और मोबाइल छीनना क्या एक आपराधिक कृत्य नहीं है?

  • प्रशासन में बैठे अधिकारी इस घोटाले में केवल मूकदर्शक हैं या उनकी संलिप्तता है?

शहडोल की जनता और जागरूक नागरिक अब इस मामले में केवल विभागीय जांच से संतुष्ट नहीं हैं। उनकी मांग है कि सीबीआई या ईओडब्ल्यू (आर्थिक अपराध शाखा) से उच्च स्तरीय जांच कराई जाए। इसके साथ ही, सीईओ और संबंधित बाबुओं को तत्काल निलंबित कर गिरफ्तार किया जाए। जनपद अध्यक्ष को आधिकारिक रूप से बयान देने के लिए जिला कलेक्टर द्वारा तलब किया जाए और प्रदीप इंटरप्राइजेज के GST, PAN, रजिस्ट्री, दुकान के फोटो और भौतिक सत्यापन की गहन जांच हो।

ग्रामीण अरुण पटेल ने बताया, “हमारे सामने कोई टेंट, गद्दा, खाना कुछ नहीं था – फिर खर्च कहां हुआ?” वहीं, राजनारायण नाम के एक अन्य ग्रामीण ने कहा, “गंदा पानी टैंकर से पिलाया गया, और कहा गया लाखों खर्च हुए हैं!”यह स्पष्ट है कि मध्य प्रदेश में सरकारी कार्यक्रम लोकसेवा के बजाय अब 'लूट की स्क्रिप्ट' बन चुके हैं। शहडोल के बाद मऊगंज का यह मामला सवाल उठाता है कि अगला कौन सा जिला होगा, जहां ऐसे 'भ्रष्टाचार महोत्सव' का आयोजन किया जाएगा। इस सवाल का जवाब अब न तो सरकार टाल सकती है, न ही संबंधित अधिकारी।



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