रीवा के मनगवां विधानसभा में जल संकट गहराया: 'जल जीवन मिशन' बना दिखावा, ग्रामीण पानी को तरसे tarse Aajtak24 News

 

रीवा के मनगवां विधानसभा में जल संकट गहराया: 'जल जीवन मिशन' बना दिखावा, ग्रामीण पानी को तरसे tarse Aajtak24 News

रीवा - रीवा जिले के मनगवां विधानसभा क्षेत्र में जल संकट ने विकराल रूप ले लिया है। हालात इतने भयावह हो गए हैं कि ग्रामीण इलाकों में पानी की एक-एक बूंद के लिए महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों को दिनभर भटकना पड़ रहा है। इस क्षेत्र की तीसरी सबसे बड़ी पंचायत मानी जाने वाली गढ़ ग्राम पंचायत में स्थिति सबसे अधिक चिंताजनक है, जहां गांव के तालाब सूख चुके हैं, बोरवेल जवाब दे चुके हैं और नलजल योजनाएं केवल कागजों पर ही सिमट कर रह गई हैं।

जल जीवन मिशन: ₹18,000 करोड़ की योजना, धरातल पर सूनापन

मध्य प्रदेश सरकार द्वारा जल जीवन मिशन के तहत रीवा और मऊगंज जिलों में लगभग 18,000 करोड़ रुपये की योजनाएं संचालित की जा रही हैं। इनमें अकेले रीवा जिले में 12,000 करोड़ रुपये की परियोजनाएं प्रस्तावित हैं, जिनका लक्ष्य हर घर तक शुद्ध जल पहुंचाना है। लेकिन, जमीनी स्तर पर इन योजनाओं का लाभ न तो ग्रामीणों को मिल रहा है और न ही कस्बों में कोई सुधार दिख रहा है।

लोगों का आरोप है कि ये महत्वाकांक्षी योजनाएं केवल कुछ ठेकेदारों, सप्लायर कंपनियों और चुनिंदा अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों के लाभ तक सीमित होकर रह गई हैं। गांवों में न पाइपलाइन से पानी पहुंच रहा है, न बोरवेल चालू हैं और न ही पुराने जलस्त्रोत बचे हैं।

ग्राम पंचायत गढ़: पानी को लेकर जातीय टकराव की आशंका

मनगवां क्षेत्र की गढ़ पंचायत में स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि पानी को लेकर सामाजिक तनाव और जातीय संघर्ष की आशंका पैदा हो गई है। ग्रामीणों का कहना है कि जिन समुदायों की जनसंख्या अधिक है, वे अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर पानी के स्रोतों पर कब्जा कर रहे हैं, जबकि कमजोर वर्ग और छोटे समूह पानी के लिए दर-दर भटकने को मजबूर हैं। यह असंतुलन आने वाले दिनों में एक बड़े सामाजिक टकराव को जन्म दे सकता है।

प्रशासनिक प्रयास अधूरे, जनप्रतिनिधि मौन

रीवा कलेक्टर प्रतिभा पाल जल संकट को गंभीरता से लेते हुए लगातार अधिकारियों को निर्देश तो दे रही हैं, लेकिन ये निर्देश ज़मीनी स्तर पर कागजों से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। पंचायतों से लेकर नगर परिषद और नगर निगम तक की स्थानीय प्रशासनिक इकाइयां इस जल संकट से निपटने में पूरी तरह विफल साबित हो रही हैं।

जब विंध्य वसुंधरा समाचार ने इस संकट पर सरपंचों, जनपद सदस्यों, विधायकों और सांसदों से प्रतिक्रिया लेने का प्रयास किया, तो किसी ने भी स्पष्ट जवाब नहीं दिया। आमजन का आरोप है कि ये प्रतिनिधि केवल चुनाव के समय दिखाई देते हैं और बाद में जनता की तकलीफों से मुंह मोड़ लेते हैं। आरोप है कि अधिकारी भी इन्हीं जनप्रतिनिधियों की सेवा में व्यस्त रहते हैं, जबकि आमजन पानी के लिए सड़कों पर संघर्ष कर रहा है।

जल जीवन मिशन: 'मिशन' से 'जलविहीन जीवन' की ओर

यदि अब भी प्रशासन, जनप्रतिनिधि और सामाजिक संगठन नहीं जागे, तो आने वाले समय में यह जल संकट केवल एक 'सामाजिक चुनौती' नहीं, बल्कि एक 'संवैधानिक और मानवीय आपदा' का रूप ले लेगा। आवश्यकता है कि योजनाओं का क्रियान्वयन ईमानदारी और पारदर्शिता से हो, और समुदाय स्तर पर जल संरक्षण के प्रयासों को बढ़ावा दिया जाए। अन्यथा, यह जल संकट 'जल क्रांति' की बजाय 'जल विनाश' की ओर बढ़ता दिखाई दे रहा है।



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