![]() |
रीवा में खाद घोटाले का विस्फोटक खुलासा: डीएपी की बोरी में 'मिलावट का ज़हर', किसान ठगे गए gaye Aajtak24 News |
रीवा, मध्य प्रदेश – रीवा जिला एक बार फिर बड़े विवादों में घिर गया है। इस बार मामला किसानों के साथ हुए एक सुनियोजित खाद घोटाले का है, जिसने कृषि उत्पादन पर तो बुरा असर डाला ही है, साथ ही प्रशासन की मिलीभगत या घोर लापरवाही को भी उजागर कर दिया है। चोरहटा थाना पुलिस के खुलासे से पता चला है कि सैकड़ों टन मिलावटी डीएपी खाद रीवा, मऊगंज समेत आसपास के जिलों और यहां तक कि छत्तीसगढ़ व बिहार जैसे पड़ोसी राज्यों में भी बेची गई है। यह पूरा अवैध नेटवर्क अब भी सक्रिय है और चौंकाने वाली बात यह है कि प्रशासन इस पर खामोश है।
₹400 की नकली खाद ₹1500 में: किसानों के खून-पसीने की लूट
जानकारी के अनुसार, जिन खाद बोरियों की असली कीमत मात्र ₹400 से ₹500 थी, उन्हें डीएपी के नाम पर ₹1200 से ₹1500 प्रति बोरी तक बेचा गया। इस नकली खाद के इस्तेमाल से किसानों की फसलें बर्बाद हुईं, उपज घट गई और वे कर्ज के गहरे दलदल में फंस गए। इस धोखाधड़ी से न केवल किसान तबाह हुए, बल्कि देश की खाद्य सुरक्षा पर भी सीधा खतरा मंडरा रहा है।
12 अवैध गोदामों की पहचान, कृषि विभाग पर गंभीर सवाल
विश्वसनीय सूत्रों के हवाले से बताया जा रहा है कि रीवा और मऊगंज में कम से कम 12 ऐसे अवैध गोदाम धड़ल्ले से चल रहे हैं, जहां मिलावटी खाद तैयार की जाती है। इन गोदामों में सस्ती सुपर फास्फेट खाद को डीएपी की बोरियों में भरा जाता है और फिर POS (प्वाइंट ऑफ सेल) मशीनों के ज़रिए उसे "कानूनी रूप" देकर बेचा जाता है।
सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि इन गोदामों की जानकारी कृषि विभाग, राजस्व विभाग और स्थानीय प्रशासन को पहले से है, फिर भी अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। यह स्थिति गंभीर सवाल खड़े करती है: क्या यह सिर्फ लापरवाही है, या फिर किसी प्रभावशाली सत्ताधारी व्यक्ति का संरक्षण?
गोपनीय जांच और POS मशीनों का ऑडिट अनिवार्य
यह जानना ज़रूरी है कि खाद का हर वितरण POS मशीनों में दर्ज होता है। सवाल यह उठता है कि क्या पिछले दो वर्षों में इन मशीनों की कोई स्वतंत्र जांच हुई है?
- किन किसानों के नाम पर कितनी खाद दर्ज की गई?
- क्या वह खाद वास्तव में किसानों को दी गई या केवल कागजों में दिखाकर अवैध रूप से बेची गई?
यह भी जांच का विषय है कि आखिर इतने लंबे समय से यह माफिया कैसे खुलेआम अपना अवैध कारोबार चलाता रहा।
राजनीतिक संरक्षण की बू और ठगा हुआ अन्नदाता
स्थानीय ग्रामीणों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप है कि ये अवैध कारोबारी राजनीतिक रसूखदारों के संरक्षण में काम कर रहे हैं। यही वजह है कि वर्षों से इन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। जब प्रिंट मीडिया, डिजिटल मीडिया और कई यूट्यूबर न्यूज़ चैनलों ने इस खबर को प्रमुखता से चलाया, तब जाकर प्रशासन ने केवल खानापूर्ति की। "विंध्य वसुंधरा समाचार" ने पहले भी कई बार नकली खाद की खबरें प्रकाशित की थीं, लेकिन प्रशासन अब जाकर कुछ कार्रवाई करने को मजबूर हो रहा है। क्या यही अन्नदाता का सम्मान है? क्या "रामराज्य" में भ्रष्टाचार का अंत ऐसा ही होता है?
प्रशासन और संभागीय आयुक्त से पाँच बड़ी माँगें
जनता और प्रभावित किसानों की ओर से प्रशासन और संभागीय आयुक्त से निम्नलिखित पाँच बड़ी माँगें की गई हैं:
- 12 अवैध गोदामों पर तत्काल छापा मारकर संपूर्ण स्टॉक जब्त किया जाए।
- पिछले दो वर्षों के POS खाद वितरण की स्वतंत्र जांच कराई जाए।
- जिन अधिकारियों की जानकारी में यह सब हुआ, उन पर तत्काल निलंबन की कार्रवाई हो।
- मिलावट करने वाली कंपनियों के लाइसेंस रद्द किए जाएं और FIR दर्ज की जाए।
- सभी प्रभावित किसानों को सरकारी मुआवजा दिया जाए और वैध खाद की आपूर्ति सुनिश्चित की जाए।
यह केवल मिलावट नहीं, यह अन्नदाता के विश्वास की हत्या है
रीवा और मऊगंज के किसान आज सिर्फ खाद से ही नहीं, बल्कि उस तंत्र से भी ठगे गए हैं, जिस पर उन्होंने भरोसा किया था। अगर प्रशासन आज भी नहीं जागा, तो कल यही माफिया बीज, कीटनाशक, बिजली और सिंचाई तक को ज़हर में बदल देंगे। अगर सरकार में नैतिकता बची है, और प्रशासन में ईमानदारी है, तो इस विस्फोटक खुलासे के बाद तुरंत कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। अन्यथा, जनता यही मानेगी कि यह पूरा खेल सत्ता के संरक्षण में खेला जा रहा है।