कटनी का हाई-प्रोफाइल 'फैमिली ड्रामा': आईपीएस गरिमा और प्रशासनिक जवाबदेही पर उठे सवाल
कटनी में डीएसपी ख्याति मिश्रा और पुलिस अधीक्षक अभिजीत रंजन के बीच का विवाद अब केवल एक व्यक्तिगत मुद्दा नहीं रह गया है, बल्कि इसने पूरे पुलिस विभाग की छवि पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। ख्याति मिश्रा ने आरोप लगाया है कि उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया, उनके निजी जीवन में हस्तक्षेप किया गया और विभागीय संरचना के नाम पर पक्षपात किया गया। यह विवाद तब सुर्खियों में आया जब डीएसपी के परिजनों को पुलिस द्वारा रोके जाने और वायरल ऑडियो में कथित दुर्व्यवहार की बात सामने आई, जिसने पूरे राज्य को स्तब्ध कर दिया।
इस घटना के बाद, तहसीलदार शैलेंद्र बिहार ने भी कटनी एसपी पर गंभीर प्रशासनिक दखल और उत्पीड़न के आरोप लगाए हैं, जिससे प्रशासन के भीतर गहरे असंतोष की परतें खुली हैं। यह स्थिति पुलिस की आम जनता के बीच विश्वसनीयता को गहरा आघात पहुंचा रही है, जहां एक तरफ पुलिस अफसर खुद अपनी निजी जिंदगी को सार्वजनिक कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर आम नागरिक के लिए न्याय पाना अब संघर्ष बन गया है।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की निर्णायक कार्रवाई: 'जनभावनाओं को आहत करने' पर गाज
कटनी मामले में जनता और मीडिया की तीव्र प्रतिक्रिया के बाद, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने निर्णायक रुख अपनाते हुए तत्काल सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए। उन्होंने कटनी के पुलिस अधीक्षक, दतिया के पुलिस अधीक्षक, आईजी चंबल रेंज और संबंधित डीआईजी को तत्काल प्रभाव से हटाने के निर्देश जारी कर दिए।
मुख्यमंत्री ने अपने आधिकारिक बयान में स्पष्ट कहा:
“कटनी के पुलिस अधीक्षक और दतिया के पुलिस अधीक्षक तथा आईजी, डीआईजी चंबल रेंज द्वारा ऐसा व्यवहार किया गया जो लोकसेवा की मर्यादा के प्रतिकूल है और जनभावनाओं को आहत करता है। अतः इन्हें तत्काल प्रभाव से हटाने के निर्देश दिए गए हैं।”
यह त्वरित कदम न केवल प्रशासनिक अनुशासन की पुनर्स्थापना का संकेत है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि सरकार अब जनता के धैर्य की परीक्षा नहीं लेना चाहती और पुलिस अधिकारियों के ऐसे आचरण को बर्दाश्त नहीं करेगी।
भिंड की घटना: लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर सीधा हमला
कटनी के बाद सबसे चिंताजनक घटना ग्वालियर संभाग के भिंड में सामने आई, जहां पत्रकारों से पुलिस ने कथित रूप से अभद्रता, दुर्व्यवहार और धमकी भरा व्यवहार किया। यह घटना न केवल प्रेस की स्वतंत्रता के खिलाफ है, बल्कि संविधान के मूल आदर्शों पर सीधा आघात भी है। लोकतंत्र में मीडिया को 'चौथा स्तंभ' माना जाता है, और उस पर ऐसे हमले लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए खतरा पैदा करते हैं।
कठोर प्रश्न: क्या यह शासन सनातन आदर्शों के अनुसार चल रहा है?
ये घटनाएं राज्य के शासन पर गंभीर सवाल उठाती हैं:
- यदि कोई महिला अधिकारी अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाए, तो क्या वह “छवि बिगाड़ने” की दोषी मानी जाएगी?
- यदि कोई तहसीलदार न्याय मांगता है, तो क्या उस पर ही अनुशासनहीनता का आरोप लग जाएगा?
- और यदि कोई पत्रकार सवाल करता है, तो क्या उसकी स्वतंत्रता पर हमला किया जाएगा?
यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या यह शासन "सनातन नीति" और "हिंदू हृदय सम्राट" की परिकल्पना के अनुरूप चल रहा है, जहां अधिकार मांगने वाला ही दोषी बन जाए। लोकतंत्र में न्याय और दंड का संतुलन आवश्यक है। यदि डीएसपी, तहसीलदार या पत्रकार गलत हैं, तो उनके विरुद्ध सख्त कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन अगर वे सही हैं, तो उनकी आवाज दबाना अपराध से कम नहीं होगा।
कटनी से भिंड तक उठी ये आवाजें केवल स्थानीय घटनाएं नहीं हैं – ये उस लोकतांत्रिक चेतना की पुकार हैं जो एक न्यायप्रिय समाज की नींव होती है। यह समय है कि शासन और प्रशासन अपनी जवाबदेही को समझें और यह सुनिश्चित करें कि कानून का राज केवल कागजों पर नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर भी स्थापित हो। अब चुप रहना अपराध है, और नागरिकों को अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठानी होगी।