रीवा में खाद्यान्न वितरण व्यवस्था सवालों के घेरे में: सरकारी आदेशों की अनदेखी, जनता को दो माह का राशन देकर ठगा जा रहा raha Aajtak24 News


रीवा में खाद्यान्न वितरण व्यवस्था सवालों के घेरे में: सरकारी आदेशों की अनदेखी, जनता को दो माह का राशन देकर ठगा जा रहा raha Aajtak24 News

रीवा - मुख्यमंत्री अन्नपूर्णा योजना के तहत पात्र हितग्राहियों को तीन माह का खाद्यान्न एक साथ वितरित किए जाने की सरकारी घोषणा के बावजूद, रीवा जिले में वितरण प्रणाली पूरी तरह से अव्यवस्था और भ्रामक स्थिति की शिकार हो गई है। जिला प्रशासन के स्पष्ट निर्देशों को धता बताते हुए, कई शासकीय उचित मूल्य दुकानों पर विक्रेता न केवल मात्र दो माह का राशन दे रहे हैं, बल्कि वितरण प्रक्रिया में भी गंभीर अनियमितताएं देखने को मिल रही हैं। यह स्थिति एक बड़े खाद्यान्न घोटाले की आशंका को जन्म दे रही है।

घोषणा कुछ और, हकीकत कुछ और: पारदर्शिता पर गंभीर सवाल

जिला कलेक्टर प्रतिभा पाल ने समाचार पत्रों के माध्यम से यह सार्वजनिक रूप से घोषणा की थी कि जून, जुलाई और अगस्त 2025 – तीन माह का खाद्यान्न हितग्राहियों को एक साथ वितरित किया जाएगा। लेकिन रीवा के गढ़, लोरी और अन्य कई क्षेत्रों से उपभोक्ताओं ने शिकायत की है कि उन्हें बिना किसी वैध कारण के सिर्फ दो माह का ही राशन दिया गया है। यह सरकारी घोषणा और जमीनी हकीकत के बीच एक बड़ा अंतर दर्शाता है।

E-PoS मशीन की जगह हस्तलिखित पर्ची: घोटाले का रास्ता?

वितरण प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाए रखने और गड़बड़ी रोकने के लिए शासन द्वारा ई-पॉस मशीन (E-PoS Machine) का उपयोग अनिवार्य किया गया है, ताकि वितरण का पूरा रिकॉर्ड डिजिटली दर्ज हो सके। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि अनेक उचित मूल्य दुकानों पर उपभोक्ताओं को पोस मशीन की पर्ची न देकर हस्तलिखित पर्चियाँ थमाई जा रही हैं। इससे न केवल शासन की डिजिटल निगरानी प्रणाली को दरकिनार किया जा रहा है, बल्कि यह संभावित राशन गड़बड़ी और हेराफेरी की जमीन भी तैयार करता है। इसके अतिरिक्त, वितरण का कार्य शासन के अधिकृत व्यक्तियों को ही करना था, लेकिन आरोप है कि यह कार्य ठेके पर दिया जा रहा है। उपभोक्ताओं का यह भी कहना है कि तौल कांटों में मनमानी वजन सेट करके उन्हें कम खाद्यान्न दिया जा रहा है, जो सीधे-सीधे ठगी है।

बिना आदेश दो माह का राशन क्यों? खाद्य विभाग भी अनजान

सबसे बड़ा सवाल यह है कि यदि शासन का आदेश तीन माह का राशन देने का है, तो फिर दो माह का राशन क्यों बांटा जा रहा है? इन दुकानों पर कहीं भी यह सूचना प्रदर्शित नहीं की गई है कि केवल दो माह का खाद्यान्न क्यों वितरित किया जा रहा है। कोई सार्वजनिक सूचना, आदेश प्रतिलिपि या प्रशासनिक नोटिस दुकानों पर चस्पा नहीं है। जब इस संबंध में खाद्य विभाग से जुड़े एक अधिकारी से नाम न छापने की शर्त पर बात की गई, तो उन्होंने स्पष्ट किया कि "शासन से ऐसा कोई आदेश जारी नहीं हुआ है कि दो माह का राशन दिया जाए। वितरण तीन माह का ही होना है। यदि खाद्यान्न की कमी हो, तो शेष उपभोक्ताओं को बाद में तीन माह का खाद्यान्न मिलेगा। लेकिन अभी दो माह का ही बांटना, वह भी बिना आदेश के — पूरी तरह गलत है।" कुछ विक्रेताओं ने दावा किया कि उन्हें "मौखिक निर्देश" मिले हैं, लेकिन उनके पास इसका कोई लिखित प्रमाण नहीं है, जो इस पूरी प्रक्रिया को संदिग्ध बनाता है और संभावित भंडारण आधारित खाद्यान्न घोटाले की आशंका को बल देता है।

डर में जी रहे उपभोक्ता: आवाज उठाने से कतरा रहे

स्थिति इतनी खराब है कि अधिकतर उपभोक्ता अपनी शिकायत दर्ज कराने से भी डर रहे हैं। उनका कहना है कि "अगर हमने खुले रूप से शिकायत की, या समाचार में हमारा नाम छपा, तो अगली बार हमें राशन नहीं मिलेगा। विक्रेता मनमानी करते हैं और बदला लेने से भी नहीं चूकते।" यह स्थिति दर्शाती है कि खाद्यान्न वितरण प्रणाली में भय और दबाव का माहौल बना हुआ है, जो लोकतांत्रिक प्रशासन और गरीबों के लिए बनी योजनाओं के मूल उद्देश्य के खिलाफ है।

 



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