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पीएम मोदी और ट्रंप की 35 मिनट लंबी फोन वार्ता: आतंकवाद, ऑपरेशन सिंदूर और मध्यस्थता पर बड़ा अपडेट update Aajtak24 News |
नई दिल्ली - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच एक समय में 35 मिनट की एक महत्वपूर्ण और निर्णायक फोन वार्ता हुई थी। यह बातचीत उस अवधि में हुई थी जब वैश्विक परिदृश्य में इज़राइल-ईरान के बीच तनाव गहराया हुआ था और कनाडा में आयोजित G-7 शिखर सम्मेलन में कई अहम भू-राजनीतिक घटनाक्रम सामने आ रहे थे। इस वार्ता को उस दौर में दोनों देशों के बीच बढ़ती रणनीतिक साझेदारी का एक और प्रमाण माना गया था।
तत्कालीन विदेश सचिव ने दी थी विस्तृत जानकारी: तत्कालीन विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने उस समय एक वीडियो संदेश जारी कर इस उच्च-स्तरीय वार्ता का विस्तृत ब्यौरा दिया था। मिस्री ने बताया था कि G-7 शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप की द्विपक्षीय मुलाकात पहले से तय थी, लेकिन इज़राइल और ईरान के बीच बढ़ते संघर्ष के कारण राष्ट्रपति ट्रंप को अचानक एक दिन पहले ही अमेरिका लौटना पड़ा था। इसके बाद, राष्ट्रपति ट्रंप के अनुरोध पर ही यह फोन कॉल हुई थी, जिसमें दोनों राष्ट्राध्यक्षों ने लगभग 35 मिनट तक गहन चर्चा की थी।
आतंकवाद पर भारत का दृढ़ संकल्प और 'ऑपरेशन सिंदूर' का विस्तृत खुलासा: इस ऐतिहासिक बातचीत का सबसे अहम पहलू आतंकवाद पर केंद्रित रहा था। विदेश सचिव ने जानकारी दी थी कि प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति ट्रंप के साथ फोन पर बातचीत के दौरान आतंकवाद का मुद्दा प्रमुखता से उठाया था। यह 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद दोनों नेताओं के बीच पहली सीधी बातचीत थी। पहलगाम हमले के बाद राष्ट्रपति ट्रंप ने फोन पर प्रधानमंत्री मोदी से संवेदना व्यक्त की थी और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत को पूर्ण समर्थन का आश्वासन दिया था।
इसी संदर्भ में, प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति ट्रंप को 'ऑपरेशन सिंदूर' के बारे में विस्तार से जानकारी दी थी। पीएम मोदी ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि 22 अप्रैल के बाद भारत ने आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करने का अपना दृढ़ संकल्प पूरी दुनिया को दिखा दिया था। उन्होंने विस्तार से बताया था कि 6-7 मई की रात को भारत ने पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) में सिर्फ और सिर्फ आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया था। प्रधानमंत्री मोदी ने रेखांकित किया था कि भारत की ये कार्रवाइयां "बहुत ही नपी-तुली (measured), सटीक (precise) और गैर-भड़काने वाली (non-escalatory)" थीं, जो भारत के परिपक्व सैन्य दृष्टिकोण को दर्शाती हैं।
पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब और मध्यस्थता पर भारत का दो-टूक रुख: पीएम मोदी ने राष्ट्रपति ट्रंप को यह भी बताया था कि भारत ने पाकिस्तान को स्पष्ट कर दिया था कि उसकी गोली का जवाब भारत गोले से देगा। उन्होंने 9 मई की रात को हुई एक महत्वपूर्ण घटना का भी जिक्र किया था, जब तत्कालीन अमेरिकी उपराष्ट्रपति वैंस ने प्रधानमंत्री मोदी को फोन कर सूचित किया था कि पाकिस्तान भारत पर एक बड़ा हमला कर सकता है। प्रधानमंत्री मोदी ने वैंस को साफ शब्दों में कह दिया था कि यदि ऐसा होता है, तो भारत पाकिस्तान को उससे भी बड़ा और करारा जवाब देगा, जिससे क्षेत्र में शक्ति संतुलन पर भारत के दृढ़ निश्चय का पता चलता है। 9-10 मई की रात को पाकिस्तान द्वारा किए गए हमले का भारत ने अत्यंत सशक्त जवाब दिया था, जिससे पाकिस्तानी सेना को भारी नुकसान हुआ था और उसके कई सैन्य हवाई अड्डों को निष्क्रिय (inoperable) कर दिया गया था। भारत के इस मुंहतोड़ जवाब के कारण ही पाकिस्तान को अंततः भारत से सैन्य कार्रवाई रोकने का आग्रह करना पड़ा था।
एक अत्यंत महत्वपूर्ण बिंदु पर जोर देते हुए, प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति ट्रंप को स्पष्ट रूप से बताया था कि इस पूरे घटनाक्रम के दौरान, किसी भी स्तर पर, भारत-अमेरिका के बीच किसी व्यापार समझौते या अमेरिका द्वारा भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता जैसे विषयों पर कोई बात नहीं हुई थी। उन्होंने दृढ़ता से कहा था कि सैन्य कार्रवाई रोकने की बात सीधे भारत और पाकिस्तान के बीच, दोनों सेनाओं के मौजूदा चैनलों के माध्यम से हुई थी, और यह पाकिस्तान के ही आग्रह पर हुई थी। प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात पर विशेष बल दिया था कि भारत ने न तो कभी मध्यस्थता स्वीकार की थी, न करता है और न ही कभी करेगा। उन्होंने बताया था कि इस विषय पर भारत में पूर्ण रूप से राजनैतिक एकमत था, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में भारत की एकजुटता को प्रदर्शित करता है।राष्ट्रपति ट्रंप ने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा विस्तार से बताई गई बातों को समझा था और आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई के प्रति अपना पूर्ण समर्थन व्यक्त किया था। प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी कहा था कि भारत अब आतंकवाद को 'प्रॉक्सी वॉर' (Proxy War) नहीं, बल्कि एक पूर्ण युद्ध (War) के रूप में ही देखता है, और भारत का 'ऑपरेशन सिंदूर' उस समय भी जारी था।
वैश्विक मुद्दों पर समन्वय और QUAD का बढ़ता महत्व: दोनों नेताओं ने इजरायल-ईरान के बीच उस समय चल रहे संघर्ष पर भी गहन चर्चा की थी और क्षेत्र में शांति व स्थिरता बनाए रखने के तरीकों पर अपने विचार साझा किए थे। रूस-यूक्रेन संघर्ष के संबंध में, दोनों राष्ट्राध्यक्षों ने इस बात पर सहमति व्यक्त की थी कि जल्द से जल्द शांति के लिए, दोनों पक्षों के बीच सीधी बातचीत आवश्यक है, और इसके लिए लगातार प्रयास करते रहना चाहिए।
इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के संबंध में, दोनों नेताओं ने अपने-अपने परिप्रेक्ष्य साझा किए थे और इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में 'क्वाड' (QUAD - Quadrilateral Security Dialogue) की अहम भूमिका के प्रति अपना समर्थन जताया था। भविष्य की सहयोग योजनाओं को आगे बढ़ाते हुए, प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति ट्रंप को QUAD की अगली बैठक के लिए भारत यात्रा का निमंत्रण दिया था। राष्ट्रपति ट्रंप ने निमंत्रण स्वीकार करते हुए कहा था कि वे भारत आने के लिए उत्सुक थे।
भविष्य में मुलाकात की संभावना और द्विपक्षीय संबंधों का महत्व: वार्ता के अंत में, राष्ट्रपति ट्रंप ने प्रधानमंत्री मोदी से पूछा था कि क्या वे कनाडा से वापसी में अमेरिका रुक कर जा सकते हैं। हालांकि, पूर्व-निर्धारित कार्यक्रमों के कारण, प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी असमर्थता व्यक्त की थी। दोनों नेताओं ने तब तय किया था कि वे निकट भविष्य में व्यक्तिगत रूप से मिलने का प्रयास करेंगे। यह फोन कॉल उस दौर में भारत और अमेरिका के बीच बढ़ते रणनीतिक विश्वास और वैश्विक व क्षेत्रीय मुद्दों पर बढ़ते तालमेल को दर्शाता है, जिसने बाद के वर्षों में दोनों देशों के संबंधों को और मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।