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रीवा-मऊगंज में बीज और कीटनाशकों की 'खुली लूट': कृषि विभाग की चुप्पी अन्नदाताओं की बर्बादी का कारण क्यों? kyo Aajtak24 News |
रीवा-मऊगंज - देश का अन्नदाता आज अपने खेतों में नहीं, बल्कि खेत के बाज़ार में लूटा जा रहा है. यह लूट उन लोगों के हाथों हो रही है, जिन पर उसकी कृषि समृद्धि की जिम्मेदारी है. रीवा और मऊगंज जिलों के गाँवों में बीज और कीटनाशक दवाओं के नाम पर जो धोखाधड़ी चल रही है, वह सिर्फ़ उपेक्षा नहीं, बल्कि एक व्यवस्थित 'शोषण' है। इस शोषण के लिए सबसे बड़ी जिम्मेदार संस्था कृषि विभाग खुद बन चुका है, जिस पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।
हर गांव में 'नकली उम्मीदों' के केंद्र: अधिकारियों की आंखें क्यों मूंदी हैं?
रीवा और मऊगंज के हर ब्लॉक, हर गांव, और हर कस्बे में दर्जनों बीज और कीटनाशक दुकानों की भरमार हो गई है। लेकिन इनकी संख्या से कहीं ज़्यादा भयावह है इनका गुणवत्ता नियंत्रण से मुक्त व्यापार. किसान जब बीज लेने दुकान जाता है, तो उसे न तो रेटलिस्ट मिलती है, न ही बिल, और न ही किसी उत्पाद की कोई गारंटी। बीज किस कंपनी का है, कौन डीलर है, या कहां से मंगाया गया है — इसका कोई रिकॉर्ड नहीं होता. दुकानदार खुलेआम कहते हैं, "सेटिंग है मेरी, जो करना हो कर लो." क्या यह वाक्य ज़िले के प्रशासनिक ढांचे पर एक करारा तमाचा नहीं है? यह दर्शाता है कि इन दुकानों को किसी का डर नहीं है।
'कुशवाहा बीज भंडार' एक केस स्टडी: लूट का नमूना या सिस्टम की विफलता?
नईगढ़ी मार्ग स्थित 'कुशवाहा बीज भंडार' की संपत्ति में हुई बेतहाशा वृद्धि को सिर्फ़ व्यवसाय की सफलता नहीं, बल्कि सिस्टम की असफलता का प्रतीक बताया जा रहा है। ग्रामीणों का आरोप है कि इस दुकान से न तो बीज की रसीद दी जाती है, न ही बिल, और न ही दवाओं पर एक्सपायरी डेट सही होती है। दुकानदार खुलेआम यह दावा करते हैं, "हमारे ऊपर बड़े अधिकारियों की छाया है।
अगर एक दुकानदार करोड़ों का व्यापार कर रहा है, तो कृषि विभाग को इन सवालों का जवाब देना चाहिए:
- उसने कितनी मात्रा में बीज बेचे?
- कितना टैक्स जमा किया गया?
- कितने किसानों को किस बीज पर क्या गारंटी दी गई?
यदि इन सवालों का उत्तर कृषि विभाग के पास नहीं है, तो यह केवल लापरवाही नहीं, बल्कि आपराधिक चुप्पी है, जो इस अवैध व्यापार में उनकी मिलीभगत की ओर इशारा करती है।
नाबालिगों से कीटनाशक की बिक्री: कानून की सरेआम अवहेलना
कई दुकानों पर चौंकाने वाली बात यह है कि महिलाएं और छोटे-छोटे बच्चे कीटनाशक दवाएं बेचते देखे गए हैं. यह अत्यधिक जहरीले रसायन बिना किसी सुरक्षा, बिना प्रशिक्षण, और बिना किसी वैध लाइसेंस के बेचे जा रहे हैं. इससे न केवल कानून का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है, बल्कि मानव जीवन को भी गंभीर खतरे में डाला जा रहा है. सवाल यह है कि क्या जिला प्रशासन इस ओर तब ध्यान देगा, जब कोई बच्चा अस्पताल में भर्ती होगा या जब कोई किसान फसल में छिड़काव के दौरान ज़हर का शिकार हो जाएगा?
कृषि विभाग की 'कुंभकर्णी' नींद: वर्षों से जमे अधिकारी
रीवा और मऊगंज ज़िलों में कृषि विभाग के अधिकारी वर्षों से 'दादा पद' पर जमे हुए हैं।
- क्या विभाग में योग्य अधिकारियों की कमी है?
- या फिर यह पदस्थापन किसी 'विशेष लाभ' से जुड़ा हुआ है?
- क्या इन अधिकारियों ने स्थानीय व्यापारियों से ऐसी सेटिंग कर रखी है, जो निरीक्षण, कार्रवाई और जवाबदेही को पूरी तरह से खत्म कर चुकी है?
यदि एक दिन की भी गुप्त जांच की जाए, तो शायद किसानों के हक़ की कितनी बड़ी लूट छिपी है, इसका अंदाज़ा पूरे विंध्य क्षेत्र को लग जाएगा।
यह सिर्फ़ कुछ भ्रष्ट व्यापारियों का सवाल नहीं है. यह सवाल है कि क्या हम उस अन्नदाता को — जो खेतों में पसीना बहाकर देश का पेट भरता है — ऐसे ही धोखेबाज़ों और लुटेरों के हवाले छोड़ देंगे?
यदि अब भी कृषि विभाग और प्रशासन चुप रहता है, तो यह समझा जाएगा कि वे भी इस लूट में सीधे भागीदार हैं। अब कार्रवाई नहीं हुई, तो कल ज़िम्मेदारी तय होगी — और जनता इसका जवाब ज़रूर मांगेगी।