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अनुकम्पा नियुक्ति घोटाला: सुदामा-अखिलेश निलंबित, तो मास्टरमाइंड राजेश मिश्रा को अभयदान क्यों? Aajtak24 News |
रीवा - रीवा शिक्षा विभाग में उजागर हुए अनुकम्पा नियुक्ति घोटाले में जिला प्रशासन की कार्रवाई सवालों के घेरे में आ गई है। इस घोटाले में दोषी पाए गए डीईओ सुदामा लाल गुप्ता और योजना अधिकारी अखिलेश मिश्रा को निलंबित कर दिया गया है। वहीं, प्रभारी लिपिक रामप्रसन्न द्विवेदी को न केवल निलंबित किया गया है, बल्कि उनके खिलाफ सिविल लाइन थाने में FIR भी दर्ज कराई गई है। हालांकि, इसी घोटाले में शामिल बताए जा रहे पूर्व डीईओ गंगा प्रसाद उपाध्याय और सहायक संचालक राजेश मिश्रा को कार्रवाई से बाहर रखा गया है, जिसे लेकर प्रशासन की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। एक ही तरह के अपराध में अलग-अलग मापदंड अपनाए जाने से यह पूरा मामला अब संदेह के घेरे में आ गया है।
राजेश मिश्रा: घोटाले के कथित सूत्रधार और मास्टरमाइंड
सूत्रों के मुताबिक, इस पूरे अनुकम्पा नियुक्ति घोटाले का सूत्रधार और मास्टरमाइंड सहायक संचालक राजेश मिश्रा को माना जा रहा है। जांच में सामने आए छह फर्जी मामलों में से पहला मामला तत्कालीन डीईओ गंगा प्रसाद उपाध्याय और राजेश मिश्रा के कार्यकाल में ही सामने आया था।
कैसे हुई थी पहली फर्जी नियुक्ति?
बताया जाता है कि तत्कालीन डीईओ आर.एन. पटेल ने नियमानुसार अंजेश कोल को प्यून के पद पर अनुकम्पा नियुक्ति दी थी। लेकिन, 13 मार्च 2024 को सहायक संचालक राजेश मिश्रा की अनुशंसा पर तत्कालीन डीईओ गंगा प्रसाद उपाध्याय ने अंजेश कोल की बहन साधना कोल को भी उसी परिवार से दूसरी अनुकम्पा नियुक्ति दे दी। यह नियुक्ति ठीक उसी समय हुई जब गंगा उपाध्याय डीईओ पद से मुक्त होकर डाइट में जाने वाले थे। आरोप है कि राजेश मिश्रा ने ही हड़बड़ी में उनसे हस्ताक्षर कराकर यह आदेश जारी करवाया। इसी फर्जी नियुक्ति से ही इस घोटाले की शुरुआत हुई, जिसके बाद फर्जी नियुक्तियों का सिलसिला चल पड़ा।
कार्रवाई में दोहरा मापदंड क्यों?
जांच में कुल छह फर्जी अनुकम्पा नियुक्तियाँ सामने आई हैं। इनमें से पाँच नियुक्तियाँ सुदामा लाल गुप्ता के कार्यकाल में हुईं, जिसमें अखिलेश मिश्रा ने अनुशंसा की और रामप्रसन्न द्विवेदी लिपिक थे। इन तीनों को निलंबित कर दिया गया। दूसरी तरफ, पहली फर्जी नियुक्ति गंगा प्रसाद उपाध्याय के कार्यकाल में हुई थी, जिसकी अनुशंसा राजेश मिश्रा ने की थी। हैरानी की बात यह है कि इस मामले में शामिल गंगा प्रसाद उपाध्याय और राजेश मिश्रा को अब तक कोई दंड नहीं दिया गया है। जबकि, सभी छह मामलों में प्रभारी लिपिक रामप्रसन्न द्विवेदी ही थे। यह दोहरा मापदंड प्रशासन की कार्रवाई पर सवालिया निशान लगाता है। आखिर राजेश मिश्रा को किसका संरक्षण मिला हुआ है? क्या उन्हें किसी सत्ताधारी दल या प्रभावशाली संगठन का अभयदान प्राप्त है? प्रशासन को इस मामले में अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी, क्योंकि यह मामला भविष्य में कानूनी जटिलताएँ पैदा कर सकता है। जब तक निष्पक्षता से पूरी जाँच नहीं होगी, तब तक ऐसे आरोप-प्रत्यारोप लगना स्वाभाविक है।