राष्ट्रीय राजमार्ग पर रौंदी गईं 'गौमाता': NH-30 पर 9 मवेशियों की मौत, गौवंश संरक्षण की योजनाएं सवालों के घेरे में me Aajtak24 News

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रीवा/मध्य प्रदेश - जिले से गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग-30 पर बीती रात एक दिल दहला देने वाला मंजर देखने को मिला, जब तेज रफ्तार वाहनों ने एक के बाद एक 9 मवेशियों को बेरहमी से रौंद दिया। इस भयावह घटना ने न केवल सड़क सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि सरकार की गौवंश संरक्षण योजनाओं और समाज के दावों की भी पोल खोल दी है।

एक ही रात, अलग-अलग जगहों पर मौत का तांडव

यह सिलसिला कल रात शुरू हुआ, जब कलवारी ब्रिज के ऊपर एक साथ पांच गोवंशों की दर्दनाक मौत हो गई। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि यह दृश्य इतना विचलित करने वाला था कि देखने वालों की आँखें भर आईं। इसके कुछ ही देर बाद, थोड़ी दूर पर स्थित बजरंगी ढाबा और पासघूम गाँव के पास चार और मवेशी वाहनों की चपेट में आ गए, जिससे मरने वाले मवेशियों की संख्या कुल 9 तक पहुँच गई। स्थानीय प्रशासन को सूचना मिलने के बाद, हल्का पटवारी सुधीर सिंह ने नायब तहसीलदार त्यौंथर बीरेंद्र द्विवेदी को जानकारी दी। इसके बाद आरआई प्रद्युम्न सिंह मौके पर पहुँचे और बंसल कंपनी टोल प्लाज़ा की मदद से मृत मवेशियों को सम्मानपूर्वक दफनाया गया।

प्रशासन की भूमिका पर उठे सवाल

यह सवाल उठना लाज़मी है कि क्या प्रशासन की ज़िम्मेदारी केवल हादसे के बाद पंचनामा करने और शवों को दफनाने तक ही सीमित है? राष्ट्रीय राजमार्गों पर आवारा पशुओं की समस्या कोई नई नहीं है। हाईवे पेट्रोलिंग वाहन 24 घंटे निगरानी का दावा करते हैं, लेकिन उनकी मौजूदगी अक्सर हादसों के बाद ही क्यों दिखाई देती है? स्थानीय लोगों का कहना है कि यह सिस्टम की निष्क्रियता का सबसे बड़ा प्रमाण है।

गौशालाओं का दावा और सड़कों की हकीकत

एक तरफ सरकार प्रत्येक जिले में गौशालाएँ खोलने और उनके लिए करोड़ों रुपये का बजट खर्च करने का दावा करती है, वहीं दूसरी तरफ हकीकत यह है कि सड़कें ही गौशालाएँ बन चुकी हैं। गायें और बैल झुंड बनाकर राजमार्गों के किनारे बैठे रहते हैं, जिससे हर वक्त दुर्घटना का खतरा बना रहता है। यह सवाल खड़ा होता है कि क्या गौशालाओं की योजनाएँ सिर्फ कागजों और आँकड़ों तक ही सीमित हैं? क्या गौवंश के भरण-पोषण और सुरक्षित रख-रखाव के लिए बनी योजनाएँ सिर्फ खानापूर्ति के लिए हैं?

‘गौसेवा’ के नारे और समाज की चुप्पी

“गाय हमारी माता है, जन्म-जन्म का नाता है” - यह नारा सुनने में तो अच्छा लगता है, लेकिन जब गौमाता का शव बीच सड़क पर कुचला पड़ा हो और समाज के ज़िम्मेदार लोग, चाहे वो राजनेता हों, प्रशासनिक अधिकारी हों या धार्मिक संगठन, चुप्पी साध लें तो यह नारा खोखला लगने लगता है। गौसेवा के नाम पर सैकड़ों संगठन पंजीकृत हैं और उन्हें अनुदान भी मिलता है, लेकिन मुश्किल समय में कोई आगे नहीं आता। यह घटना दर्शाती है कि गौवंश संरक्षण को लेकर राजनीति तो खूब होती है, लेकिन ठोस नीति और जिम्मेदारी का अभाव है। सड़क पर सिर्फ मवेशियों का नहीं, बल्कि इंसानी जिंदगी का भी खतरा है। बीते छह महीनों में रीवा-मऊगंज क्षेत्र में आवारा मवेशियों के कारण कई जानलेवा हादसे हो चुके हैं। इस भयावह स्थिति को देखते हुए, यह सवाल सबसे बड़ा है कि प्रशासन की नींद कब टूटेगी और इस रक्तपात का सिलसिला कब थमेगा?



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