गवाहों का दावा: "हमसे नहीं ली गई कोई जानकारी"
बीजेपी नेताओं ने बाकायदा प्रेस के सामने आकर स्पष्ट किया कि उन्होंने न तो कथित चोरी की कोई घटना देखी है और न ही इस बारे में पुलिस को कोई जानकारी दी थी। इसके बावजूद उन्हें एफआईआर में प्रमुख गवाह के रूप में नामित कर देना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि पुलिस प्रशासन किसी राजनीतिक दबाव में कार्य कर रहा है और सच्चाई को दबाने का प्रयास किया जा रहा है। यह आरोप सीधे तौर पर पुलिस की ईमानदारी पर सवाल खड़े करते हैं।
पुलिस की प्रेस विज्ञप्ति और वास्तविकता में विरोधाभास
पुलिस द्वारा जारी प्रेस नोट में दावा किया गया है कि मामले की तफ्तीश वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देशन और मार्गदर्शन में पूरी तरह से निष्पक्ष और न्यायसंगत तरीके से की गई है। हालांकि, जमीनी हकीकत इसके बिल्कुल विपरीत नजर आ रही है। गवाहों की खुलकर सामने आई आपत्तियां और एफआईआर की भाषा से यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि यह पुलिसिया कार्रवाई एकतरफा और पूर्वनियोजित थी, जिसका उद्देश्य किसी विशेष व्यक्ति को निशाना बनाना था।
पूर्व के विवादित मामले: 'गडरा कांड' से भी नहीं ली सीख
यह पहला अवसर नहीं है जब मऊगंज पुलिस की कार्यप्रणाली पर इस तरह के गंभीर सवाल उठे हों। इससे पहले भी जिले के गडरा कांड में पुलिस की भूमिका पर तीखा जनविरोध सामने आया था, जहाँ पुलिस की कार्रवाई को लेकर भारी नाराजगी व्यक्त की गई थी। बावजूद इसके, ऐसा प्रतीत होता है कि पुलिस प्रशासन ने उन घटनाओं से कोई ठोस सबक नहीं लिया है। नईगढ़ी, शाहपुर और लौर जैसे थानों में पदस्थ उपनिरीक्षक जगदीश ठाकुर पर पूर्व में भी लापरवाही, पक्षपात और कानून व्यवस्था से खिलवाड़ के कई आरोप लग चुके हैं, जो पुलिस की आंतरिक जवाबदेही पर प्रश्नचिह्न खड़े करते हैं।
जनता में रोष, पुलिस की कार्यशैली को लेकर गहरा असंतोष
पुलिस की इस तरह की मनमानी और संदिग्ध कार्रवाई से आम नागरिकों में गहरा असंतोष और अविश्वास का माहौल बनता जा रहा है। जनता यह सवाल पूछ रही है कि यदि खुद गवाह ही एफआईआर को झूठा बता रहे हैं, तो फिर आखिर किस आधार पर प्राथमिकी दर्ज की गई? क्या यह पूरा मामला पूरी तरह से राजनीतिक बदले की भावना से प्रेरित है, और क्या पुलिस राजनीतिक आकाओं के इशारे पर काम कर रही है?
जरूरत है जवाबदेही और पारदर्शिता की
एक लोकतांत्रिक समाज में पुलिस प्रशासन का कार्य पूर्ण निष्पक्षता, न्याय और संवैधानिक मूल्यों के तहत होना चाहिए। लेकिन जब पुलिस स्वयं राजनीतिक हथियार के रूप में कार्य करने लगे, तो कानून व्यवस्था की रीढ़ ही चरमरा जाती है। मऊगंज पुलिस को चाहिए कि वह इस पूरे मामले में तत्काल पारदर्शिता के साथ स्पष्टीकरण दे और यदि आरोप सही पाए जाते हैं, तो जिम्मेदार अधिकारियों और कर्मियों के खिलाफ कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई सुनिश्चित करे। अन्यथा, जनता का पुलिस पर रहा-सहा विश्वास भी खत्म हो जाएगा।