भारत का स्पष्टीकरण: पाकिस्तान के पानी को रोकना सिंधु संधि का उल्लंघन नहीं, जानें क्या है कारण karan Aajtak24 News


भारत का स्पष्टीकरण: पाकिस्तान के पानी को रोकना सिंधु संधि का उल्लंघन नहीं, जानें क्या है कारण karan Aajtak24 News 

नई दिल्ली - जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए हालिया आतंकी हमले के बाद, भारत ने पाकिस्तान की ओर बहने वाली नदियों के पानी को रोकने के अपने कदम का स्पष्ट कारण सामने रखा है। भारत सरकार ने स्पष्ट किया है कि यह कदम किसी भी प्रकार से सिंधु जल संधि का उल्लंघन नहीं है, बल्कि यह जम्मू-कश्मीर में चेनाब नदी पर स्थित दो महत्वपूर्ण जलविद्युत परियोजनाओं - बगलिहार और सलाल के जलाशयों की आवश्यक सफाई और गाद निकालने की प्रक्रिया का हिस्सा है। इस प्रक्रिया का मुख्य उद्देश्य सर्दियों के महीनों में पाकिस्तान को पानी के प्रवाह को सुचारू रूप से बनाए रखने के लिए जलाशयों को तैयार करना है। भारत सरकार के जल संसाधन मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि यह एक नियमित प्रक्रिया है जो देश के विभिन्न बांधों और जलाशयों में बेहतर जल भंडारण क्षमता सुनिश्चित करने के लिए अपनाई जाती है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस समय चेनाब नदी पर इन दो परियोजनाओं के जलाशयों में सीमित फ्लशिंग और डीसिल्टिंग का कार्य किया जा रहा है, ताकि सर्दियों में पानी के प्रवाह को नियंत्रित किया जा सके और किसी भी प्रकार की बाधा से बचा जा सके।

फ्लशिंग एक विशेष तकनीक है जिसमें जलाशय से जमे हुए तलछट और गाद को उच्च जल प्रवाह के माध्यम से बहाकर निकाला जाता है। वहीं, डिसिल्टिंग में ड्रेजिंग जैसी मशीनों का उपयोग करके जमा हुए तलछट को भौतिक रूप से हटाया जाता है। यह दोनों ही प्रक्रियाएं जलाशयों की कार्य क्षमता को बढ़ाने और पानी के प्रवाह को निर्बाध बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं। केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) के पूर्व अध्यक्ष कुशविंदर वोहरा ने इस मामले पर अपनी राय रखते हुए कहा कि चूंकि भारत ने अभी तक सिंधु जल संधि को औपचारिक रूप से निलंबित नहीं किया है, इसलिए इसके प्रावधानों का पालन करने की बाध्यता बनी हुई है। उन्होंने स्पष्ट किया कि जलाशयों से गाद निकालना या फ्लशिंग करना संधि के तहत अनुमत गतिविधियां हैं और यह किसी भी प्रकार से पानी को स्थायी रूप से रोकने का प्रयास नहीं है। वोहरा ने यह भी बताया कि यह कदम भारत के उस व्यापक रोडमैप का हिस्सा है, जिसके तहत पश्चिमी नदियों - सिंधु, झेलम और चिनाब - के पानी के प्रबंधन को बेहतर बनाने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।

हालांकि, वोहरा ने यह भी कहा कि यदि भविष्य में सिंधु जल संधि को निलंबित किया जाता है, तो भारत के पास पश्चिमी नदियों के पानी के प्रवाह को रोकने और उसे रेगुलेट करने का पूर्ण अधिकार होगा। फिलहाल, जलाशयों की सफाई को अल्पकालिक उपाय के तौर पर देखा जा रहा है, जबकि मध्यम और दीर्घकालिक उपायों के तहत जम्मू-कश्मीर में कई नई जलविद्युत परियोजनाओं पर तेजी से काम किया जा रहा है। इनमें पाकल दुल (1000 मेगावाट), रतले (850 मेगावाट), किरू (624 मेगावाट) और क्वार (540 मेगावाट) जैसी महत्वपूर्ण परियोजनाएं शामिल हैं। इन परियोजनाओं के पूरा होने से न केवल जम्मू-कश्मीर की जलविद्युत उत्पादन क्षमता लगभग 4,000 मेगावाट से बढ़कर 10,000 मेगावाट से अधिक हो जाएगी, बल्कि जल भंडारण क्षमता में भी significant वृद्धि होगी।

इसके अतिरिक्त, भारत किशनगंगा नदी से लगभग नौ क्यूसेक पानी के प्रवाह को रोकने और उसका उपयोग अधिक बिजली उत्पादन के लिए करने की योजना पर भी काम कर रहा है। यह भी एक अल्पकालिक उपाय है जिसे निकट भविष्य में लागू किया जा सकता है। दीर्घकालिक योजनाओं के तहत चार और बड़ी बिजली परियोजनाएं पाइपलाइन में हैं, जो इस क्षेत्र की ऊर्जा सुरक्षा को और मजबूत करेंगी। रोडमैप में झेलम नदी पर रुकी हुई तुलबुल परियोजना को फिर से शुरू करना भी शामिल है। इसके अलावा, बेहतर बाढ़ प्रबंधन के लिए वुलर झील और झेलम नदी पर व्यापक कार्य योजना तैयार की गई है। जम्मू क्षेत्र के लिए अधिक पानी सुनिश्चित करने के लिए मौजूदा रणबीर और प्रताप नहरों का प्रभावी उपयोग भी इस रोडमैप का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। लिफ्ट सिंचाई परियोजनाओं पर भी ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, जिनमें अपेक्षाकृत कम समय में पानी का उपयोग शुरू किया जा सकता है।

पहलगाम हमले के बाद उठाए गए इस कदम को भारत की ओर से एक रणनीतिक प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा रहा है, जो न केवल आतंकवाद के खिलाफ उसकी दृढ़ इच्छाशक्ति को दर्शाता है, बल्कि जल संसाधनों के प्रबंधन को लेकर उसकी दीर्घकालिक योजनाओं का भी हिस्सा है। भारत सरकार ने स्पष्ट किया है कि उसका उद्देश्य किसी भी प्रकार से सिंधु जल संधि का उल्लंघन करना नहीं है, बल्कि अपने जलविद्युत परियोजनाओं की रखरखाव और जल भंडारण क्षमता को बेहतर बनाना है, ताकि सर्दियों में पानी के प्रवाह को सुचारू रखा जा सके। हालांकि, भविष्य में यदि परिस्थितियां बदलती हैं, तो भारत अपने जल संसाधनों के उपयोग को लेकर स्वतंत्र निर्णय लेने के लिए भी तैयार है।


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