रीवा के राजस्व न्यायालयों में फाइलों का 'गायबगंज', त्वरित न्याय की उम्मीदें हुईं धुंधली dhundhali Aajtak24

 

रीवा के राजस्व न्यायालयों में फाइलों का 'गायबगंज', त्वरित न्याय की उम्मीदें हुईं धुंधली dhundhali Aajtak24 

रीवा - मध्य प्रदेश सरकार भले ही राजस्व मामलों के त्वरित और पारदर्शी निपटारे का दावा करे, लेकिन रीवा जिले में हकीकत कुछ और ही कहानी कह रही है। मनगवा अनुभाग के राजस्व न्यायालयों से फाइलों के रहस्यमय ढंग से गायब होने का मामला सामने आया है, जिसने प्रशासन की कार्यशैली और पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। मनगवा तहसील अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष प्रभात चंद्र द्विवेदी ने इस गंभीर मुद्दे को उठाते हुए कहा कि मनगवा तहसील और उसकी सहयोगी तहसीलों से राजस्व से जुड़े महत्वपूर्ण दस्तावेज लगातार गायब हो रहे हैं। इनमें भूमि पट्टे, नामांतरण और खसरा सुधार जैसे आम आदमी के अधिकारों और संपत्ति से सीधे जुड़े मामलों की फाइलें शामिल हैं। हालांकि, मनगवा के अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) पी.एस. त्रिपाठी ने इन आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि फाइलें गायब नहीं हुई हैं, बल्कि लिंक कोर्ट की व्यवस्था के चलते रिकॉर्ड का उचित प्रबंधन नहीं हो पा रहा है। इसके कारण पेशी के दिन फाइलें उपलब्ध कराने में दिक्कत आ रही है। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें इस तरह की शिकायतों की जानकारी नहीं थी, लेकिन वे मामले की जांच कराएंगे और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेंगे।

अधिवक्ता और पीड़ित पक्षकार एस.डी.ओ. के स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं हैं। उनका कहना है कि यह स्थिति न्याय में देरी कर रही है और आम नागरिकों के भरोसे को तोड़ रही है। यदि फाइलें वास्तव में गायब नहीं हैं, तो उन्हें नियमित रूप से अदालत में क्यों पेश नहीं किया जा रहा है? इस प्रशासनिक अव्यवस्था का खामियाजा आम जनता और वर्षों से न्याय की आस में बैठे वादकारियों को भुगतना पड़ रहा है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि रीवा जिला कलेक्टर प्रतिभा पाल और रीवा संभाग के संभागायुक्त इस गंभीर मामले की कितनी गहराई से जांच कराते हैं। क्या सभी तहसीलों और अनुविभागीय अधिकारियों के कार्यालयों में लंबित मामलों की फाइलों की वर्तमान स्थिति का जायजा लिया जाएगा? या यह मामला भी जांच की औपचारिकताओं में उलझकर रह जाएगा?

राजस्व न्यायालयों में पहले से ही वर्षों से अटके मामलों के कारण लोगों को न्याय मिलने में देरी हो रही है, और अब फाइलों के गायब होने की खबरों ने उनके धैर्य की अंतिम सीमा भी तोड़ दी है। ऐसे में सरकार की ‘त्वरित न्याय’ की नीति की जमीनी हकीकत पर सवाल उठना स्वाभाविक है। रीवा जिले का यह मामला स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि केवल घोषणाएं करना पर्याप्त नहीं है; प्रशासनिक व्यवस्था को मजबूत, जवाबदेह और पारदर्शी बनाना अत्यंत आवश्यक है। फाइलों की सुरक्षा और न्यायिक प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाने के लिए एक प्रभावी निगरानी प्रणाली की तत्काल आवश्यकता है।


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