पत्रकारिता पर उठते सवाल: मऊगंज से उठी आवाज़, रीवा संभाग में संतुलन की दरकार darkar Aajtak24 News


पत्रकारिता पर उठते सवाल: मऊगंज से उठी आवाज़, रीवा संभाग में संतुलन की दरकार darkar Aajtak24 News 

मऊगंज - लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मानी जाने वाली पत्रकारिता आज तकनीकी प्रगति के साथ अपने प्रभाव और पहुंच के चरम पर है। आधुनिक डिजिटल माध्यमों ने इसे अभूतपूर्व शक्ति दी है, लेकिन इस बढ़ती पहुंच के साथ कुछ गंभीर चिंताएं भी उभरकर सामने आई हैं। मऊगंज जैसे छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में यह चिंता अब एक ज्वलंत बहस का विषय बन चुकी है, जहाँ पत्रकारिता के दुरुपयोग और उसकी गिरती विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं।

स्वतंत्रता का दुरुपयोग और सीमित एजेंडा

भारतीय संविधान ने प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार दिया है, जो किसी भी जीवंत लोकतंत्र की आत्मा है। इसी अधिकार के तहत, पत्रकारिता को समाज में एक विशेष और महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। यह पत्रकारों के माध्यम से ही है कि जनता की आवाज़ सरकार, प्रशासन और समाज के अन्य महत्वपूर्ण हितधारकों तक पहुँचती है। लेकिन, जब यह स्वतंत्रता निजी स्वार्थों, बाहरी दबावों, या आर्थिक लोभ का माध्यम बनने लगे, तो यह लोकतंत्र के लिए एक खतरनाक संकेत होता है। मऊगंज में हाल के दिनों में यह प्रवृत्ति देखी गई है कि पत्रकारिता का फोकस कुछ चुनिंदा विभागों जैसे शराब, खनिज, पंचायत, आंगनबाड़ी और स्वास्थ्य तक ही सिमट गया है। यह सच है कि इन क्षेत्रों में भ्रष्टाचार की संभावना अधिक होती है, और उन्हें उजागर करना पत्रकारिता का दायित्व है। लेकिन, जब किसी विशेष विभाग या व्यक्ति को निशाना बनाना केवल आर्थिक लाभ या व्यक्तिगत द्वेष पर आधारित हो, तो पत्रकारिता की निष्पक्षता और विश्वसनीयता पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगना स्वाभाविक है। यह एकतरफा रिपोर्टिंग पत्रकारिता के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।

स्वार्थ सिद्धि के लिए पत्रकारिता का इस्तेमाल

स्थानीय सूत्रों के अनुसार, मऊगंज में कुछ ऐसे व्यक्ति भी सक्रिय हो गए हैं, जो पत्रकारिता की आड़ में अपने निजी हित साध रहे हैं। इनमें कुछ ऐसे स्वयंभू पत्रकार भी शामिल हैं जिनकी वास्तव में कोई आधिकारिक मान्यता या प्रशिक्षण नहीं है। फिर भी, वे सरकारी अधिकारियों, पंचायत प्रतिनिधियों और स्थानीय व्यापारी वर्ग पर कथित रूप से दबाव बनाकर या उन्हें ब्लैकमेल करके लाभ उठा रहे हैं। इस तरह की गतिविधियाँ न केवल पत्रकारिता के पवित्र पेशे की छवि को धूमिल करती हैं, बल्कि आम जनता के मन में मीडिया के प्रति जनविश्वास को भी गंभीर रूप से कमजोर करती हैं। जब पत्रकार ही अपनी नैतिकता से भटक जाए, तो वह समाज के लिए कैसे आदर्श प्रस्तुत करेगा?

प्रशासन की पहल और अपेक्षित हस्तक्षेप

मऊगंज कलेक्टर ने इस स्थिति की गंभीरता को समझते हुए कुछ आवश्यक कदम उठाने की तैयारी की है। यह निश्चित रूप से एक सराहनीय पहल है, जो यह दर्शाती है कि प्रशासन इस समस्या को गंभीरता से ले रहा है। हालाँकि, अब आवश्यकता इस बात की है कि यह पहल केवल एक जिले तक सीमित न रहे। रीवा संभागीय आयुक्त को इस विषय को संज्ञान में लेना चाहिए और पूरे संभाग में पत्रकारिता की नैतिकता और मर्यादा को बनाए रखने के लिए ठोस दिशा-निर्देश जारी करने चाहिए। इससे न केवल पत्रकारिता के दुरुपयोग पर अंकुश लगेगा, बल्कि ईमानदारी से जनहित में काम कर रहे सच्चे और निष्पक्ष पत्रकारों को भी उचित संरक्षण और प्रोत्साहन मिलेगा। यह कदम समूचे रीवा संभाग में एक स्वस्थ पत्रकारिता संस्कृति को बढ़ावा देगा।

विज्ञापन संस्कृति: पत्रकारिता या व्यापार?

एक और महत्वपूर्ण बिंदु जो पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करता है, वह है मीडिया में विज्ञापनों की बढ़ती और बेहिसाब भूमिका। आज कई छोटे-बड़े मीडिया संस्थान मुख्य रूप से विज्ञापनों के बल पर ही चल रहे हैं। यहाँ सवाल यह उठता है कि क्या विज्ञापन लेने वाले संस्थानों या व्यक्तियों की वित्तीय स्थिति की कोई जाँच होती है? क्या विज्ञापन देने वाले स्रोतों की पारदर्शिता सुनिश्चित की जाती है? कहीं ऐसा तो नहीं कि पत्रकारिता के नाम पर काले धन को सफेद करने का खेल चल रहा हो, या किसी अवैध गतिविधि को विज्ञापनों के माध्यम से वैधता प्रदान की जा रही हो? प्रशासन को इस मुद्दे पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विज्ञापन के नाम पर कोई आर्थिक अनियमितता या राजनीतिक लाभ का खेल न हो। यदि ऐसी गतिविधियाँ अनियंत्रित रूप से जारी रहती हैं, तो पत्रकारिता के मूल उद्देश्य—जनहित और लोकतंत्र की रक्षा—को गहरा आघात पहुँचेगा। यह पत्रकारिता को एक पवित्र सेवा से बदलकर केवल एक व्यापारिक गतिविधि बना देगा।

अब नज़रें संभागीय आयुक्त की ओर

मऊगंज कलेक्टर की पहल अब एक बड़े प्रशासनिक निर्णय की ओर संकेत कर रही है। अब सभी की नज़रें संभागीय आयुक्त पर टिकी हैं। उनसे अपेक्षा है कि वे पत्रकारिता के इस असंतुलन को गहराई से समझते हुए पूरे रीवा संभाग में एक ऐसी सुविचारित नीति लागू करें, जो पत्रकारिता को मर्यादित, पारदर्शी और उत्तरदायी बनाए। साथ ही, पत्रकारिता की आड़ में अपने व्यक्तिगत स्वार्थ साधने वाले तथाकथित पत्रकारों की पहचान कर उनके विरुद्ध सख्त कानूनी कार्रवाई भी सुनिश्चित हो। पत्रकारिता एक पवित्र दायित्व है, न कि निजी हितों की पूर्ति का साधन। समाज, प्रशासन और मीडिया—तीनों के बीच एक स्वस्थ और नैतिक संतुलन बनाए रखने के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि पत्रकारिता अपनी मर्यादा, नैतिकता और उद्देश्य को कभी न भूले। अब वक्त आ गया है कि पत्रकारिता के नाम पर हो रहे इस दुरुपयोग को प्रभावी ढंग से रोका जाए, ताकि यह वास्तव में लोकतंत्र की सच्ची और निस्वार्थ सेवा कर सके।

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