शराब दुकानों की खुली लूट से जनता आक्रोशित, 15% अतिरिक्त वसूली का धन किसकी जेब में? प्रशासन मौन क्यों? kyo Aajtak24 News


शराब दुकानों की खुली लूट से जनता आक्रोशित, 15% अतिरिक्त वसूली का धन किसकी जेब में? प्रशासन मौन क्यों? kyo Aajtak24 News 

रीवा/मऊगंज - रीवा और मऊगंज जिलों में संचालित कंपोजिट शराब दुकानों द्वारा खुलेआम नियमों का उल्लंघन और ग्राहकों से अवैध वसूली का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। जनसूत्रों और सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो इन दुकानों पर MRP से 15% तक अधिक मूल्य वसूलने की पुष्टि करते हैं। हाल ही में खटखरी स्थित एक दुकान का वीडियो वायरल हुआ, जिसमें अधिक कीमत की शिकायत करने पर सेल्समैन ने मालिक के आदेश का हवाला दिया। यह गोरखधंधा न केवल उपभोक्ता अधिकारों का हनन है, बल्कि सरकार की 2025-26 की आबकारी नीति का भी खुला उल्लंघन है। सवाल यह है कि जब शराब का बिक्री मूल्य निर्धारित है, तो यह अतिरिक्त 15% राशि किसकी जेब में जा रही है? क्या यह संगठित भ्रष्टाचार कुछ प्रभावशाली व्यक्तियों, अधिकारियों या जनप्रतिनिधियों की मिलीभगत से चल रहा है? प्रशासन की इस मामले पर रहस्यमय चुप्पी जनता के गुस्से को और बढ़ा रही है।

आबकारी नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। सरकारी नीति स्पष्ट रूप से MRP से अधिक पर शराब बेचने और थोक बिक्री को प्रतिबंधित करती है। लेकिन रीवा, मऊगंज, सिरमौर, गंगेव, बैकुंठपुर, खटखरी, देवतालाब, लालगांव, मनगवां और कटरा जैसे क्षेत्रों से लगातार ओवररेटिंग और ग्रामीण क्षेत्रों में खुदरा लाइसेंस के बावजूद थोक में शराब सप्लाई की खबरें आ रही हैं। सबसे बड़ा सवाल प्रशासन की चुप्पी पर है। पिछले तीन महीनों से प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया में लगातार शिकायतें आ रही हैं, लेकिन आबकारी विभाग, जिला प्रशासन और स्थानीय पुलिस ने आश्चर्यजनक रूप से चुप्पी साध रखी है। यह चुप्पी लापरवाही है या किसी गहरे गठजोड़ का संकेत?

स्थानीय सूत्रों के अनुसार, इन शराब दुकानों में कुछ राजनेताओं और उच्च पदस्थ अधिकारियों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष निवेश है। यही कारण है कि न तो कोई प्रभावी छापेमारी हो रही है, न लाइसेंस रद्द किए जा रहे हैं, और न ही कोई दंडात्मक कार्रवाई की जा रही है। यह स्थिति कानून का मखौल उड़ाने के साथ-साथ युवाओं के भविष्य के साथ भी खिलवाड़ है।अब जनता का धैर्य जवाब दे रहा है और वे पूछ रहे हैं कि "सिस्टम कब जागेगा?" यदि प्रशासन अब भी कार्रवाई नहीं करता है, तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि नियम केवल कागजी कार्रवाई हैं, और असली नियंत्रण धन और राजनीतिक रसूख के हाथों में है। यह मामला अब सिर्फ शराब की अवैध बिक्री का नहीं, बल्कि जनता के विश्वास और लोकतांत्रिक व्यवस्था की विश्वसनीयता का है।

जनता की मांग है कि सभी संदिग्ध शराब दुकानों का तत्काल ऑडिट किया जाए, MRP से अधिक कीमत वसूलने वालों के लाइसेंस रद्द कर कानूनी कार्रवाई की जाए, और ग्रामीण क्षेत्रों में चल रही अवैध थोक शराब सप्लाई पर तुरंत रोक लगाई जाए। अन्यथा, जनता यह समझने के लिए मजबूर हो जाएगी कि यह प्रशासनिक निष्क्रियता नाकामी नहीं, बल्कि मिलीभगत का जीता-जागता प्रमाण है।

 

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