रीवा संभाग में गेहूं खरीदी घोटाले की परतें उजागर: फर्जी पत्रकारों की वसूली से तंत्र में मचा हड़कंप, प्रशासन की चुप्पी से सवालों के घेरे में सिस्टम system Aajtak24 News


रीवा संभाग में गेहूं खरीदी घोटाले की परतें उजागर: फर्जी पत्रकारों की वसूली से तंत्र में मचा हड़कंप, प्रशासन की चुप्पी से सवालों के घेरे में सिस्टम system Aajtak24 News 

रीवा-सतना - मध्यप्रदेश का विंध्य क्षेत्र, जहां किसानों की मेहनत की फसल सरकार खरीदती है, वहां इन दिनों एक गंभीर घोटाले का पर्दाफाश हुआ है। सतना जिले से वायरल एक वीडियो ने न सिर्फ एक खरीदी केंद्र की अनियमितताओं को उजागर किया, बल्कि पूरे रीवा संभाग में फैले गेहूं खरीदी तंत्र की गहराई से जांच की मांग को जन्म दे दिया है। प्रशासन की चुप्पी, अधिकारियों की मिलीभगत और पत्रकारिता के नाम पर चल रही अवैध वसूली ने इस पूरे सिस्टम की साख को बुरी तरह झकझोर दिया है।

तहसीलदार की जांच से खुली पोल

सतना जिले के एक खरीदी केंद्र पर निरीक्षण के लिए पहुंचे तहसीलदार ने अनाज की तौल में भारी गड़बड़ी पकड़ी। तय मापदंड के अनुसार 50.600 किलो ग्राम गेहूं की तौल के स्थान पर 51.600 किलो ग्राम तक वजन दर्शाया जा रहा था। महज एक किलो की यह “गलती” कोई मामूली तकनीकी चूक नहीं, बल्कि एक सुनियोजित धोखाधड़ी का हिस्सा प्रतीत होती है। यदि हर तौल में ऐसा ही फर्जीवाड़ा हो रहा हो, तो सोचिए किसानों और सरकारी खजाने को कितना नुकसान हो रहा है।

खरीदी केंद्र प्रभारी का बर्ताव और पत्रकारों से दुर्व्यवहार

जब तहसीलदार ने मशीन की जांच की और सवाल उठाए, तो केंद्र प्रभारी बौखला गया। उसने न सिर्फ पत्रकारों से उलझना शुरू किया, बल्कि गाली-गलौच और दुर्व्यवहार तक किया। जब उससे पूछा गया कि वजन में यह गड़बड़ी क्यों, तो कोई स्पष्ट उत्तर नहीं मिला। वीडियो में यह सब कुछ साफ देखा जा सकता है, और यही वीडियो अब सोशल मीडिया पर वायरल है।

फर्जी पत्रकारों की फौज: पत्रकारिता की साख पर संकट

रीवा, सतना, सीधी, सिंगरौली और अनूपपुर सहित पूरे संभाग में इस समय “फर्जी पत्रकारों” की बाढ़ आ गई है। इनके पास खुद के बनाए हुए प्रेस कार्ड, यूट्यूब चैनलों के नाम पर बने फर्जी बैनर और पहचान-पत्र हैं। ये खरीदी केंद्रों पर जाकर खुद को “मीडिया” बताते हैं और “खबर रोकने” या “समाचार चलाने” के नाम पर 500 से लेकर 5000 रुपए तक की वसूली करते हैं।

इनकी गतिविधियां इस कदर बढ़ गई हैं कि अब केंद्र प्रभारी यह नहीं समझ पा रहे कि कौन सच्चा पत्रकार है और कौन वसूली करने आया है। इसका नुकसान सबसे ज्यादा उन ईमानदार पत्रकारों को हो रहा है जो समाज के लिए सही रिपोर्टिंग करते हैं।

किसान बनाम व्यवस्था: तौल मशीन से लेकर बिल तक हेरा-फेरी

विंध्य वसुंधरा को किसानों से प्राप्त जानकारी के अनुसार खरीदी केंद्रों पर निम्नलिखित अनियमितताएं आम हो गई हैं:

  • तौल मशीन सेटिंग: मशीनों में हेराफेरी कर अनाज का वास्तविक वजन कम या अधिक दिखाया जाता है।

  • ‘तलाई’ वसूली: किसानों से अनाज तौलने से पहले "तलाई" या "सेटिंग" के नाम पर नगद वसूली की जाती है।

  • फर्जी दस्तावेज: जिन किसानों की फसल ही नहीं होती, उनके नाम पर खरीदी दर्ज की जाती है।

  • बिखरे अनाज की चोरी: ट्रॉली में गिरा हुआ गेहूं बाद में चोरी-छिपे बेचा जाता है।

  • लाइन मैनेजमेंट में रिश्वत: किसानों से पैसा लेकर उनकी ट्रॉली लाइन में आगे लगवाई जाती है।

प्रशासन की चुप्पी और जनप्रतिनिधियों की निष्क्रियता

अब तक जितनी भी रिपोर्टें सामने आई हैं, उनमें से अधिकांश पर प्रशासन ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है। चाहे तहसीलदार का निरीक्षण हो या पत्रकारों द्वारा उजागर की गईं अनियमितताएं—बड़ी-बड़ी बातें हुईं, पर कार्रवाई के नाम पर कुछ भी ठोस जमीन पर नहीं दिखा।

यह स्थिति इस सवाल को जन्म देती है कि क्या यह घोटाला किसी उच्च संरक्षण में फल-फूल रहा है? क्या अधिकारियों की मिलीभगत से यह भ्रष्टाचार वर्षों से चल रहा है?

सामाजिक प्रभाव और विश्वास का संकट

यदि यह तंत्र यूं ही चलता रहा तो किसान सरकार से विश्वास उठाना शुरू कर देंगे। पहले ही समर्थन मूल्य पर खरीदी को लेकर कई तरह की शंकाएं रहती हैं—अब जब किसानों को लगेगा कि उनका मेहनत का गेहूं भी तौल में धोखा खा रहा है, तो वे आगे सरकारी प्रक्रिया से किनारा कर सकते हैं।

वहीं दूसरी ओर, पत्रकारिता जैसे पवित्र पेशे की साख भी दांव पर लग गई है। जब पत्रकार ही खबर बेचने लगें और वसूली में लग जाएं, तो लोकतंत्र का चौथा स्तंभ ही ढहने लगता है।

क्या कहती है विंध्य वसुंधरा समाचार की मांग?

हम, विंध्य वसुंधरा समाचार, यह मांग करते हैं कि—

  1. रीवा संभाग के समस्त गेहूं एवं धान खरीदी केंद्रों की विशेष सतर्कता दल या CBI से जांच कराई जाए।

  2. हर खरीदी केंद्र पर CCTV कैमरे अनिवार्य किए जाएं।

  3. खुद को पत्रकार बताने वालों की मान्यता व पंजीकरण की स्पष्ट सूची केंद्रों को दी जाए।

  4. हर खरीदी केंद्र पर जनप्रतिनिधियों और किसान संगठनों की निगरानी अनिवार्य की जाए।

  5. तौल मशीनों की नियमित जांच और थर्ड-पार्टी सत्यापन हो।

  6. प्रभारी और कर्मचारियों के ट्रांसफर की नीति सख्त बनाई जाए ताकि वर्षों से एक ही स्थान पर टिके लोग जड़ न जमा सकें।

निष्कर्ष: यह घोटाला नहीं, व्यवस्था पर हमला है

रीवा संभाग का यह घोटाला महज कुछ किलो गेहूं की चोरी नहीं, यह उस व्यवस्था पर हमला है जो किसानों के हक की रक्षा का दावा करती है। यह पत्रकारिता पर चोट है, जहां खबरें अब सौदों में बदल रही हैं। यह लोकतंत्र की नींव पर पड़ता दरार है।

अब समय आ गया है जब रीवा, सतना, और पूरे विंध्य क्षेत्र के किसान, पत्रकार और जागरूक नागरिक एक साथ आवाज उठाएं। प्रशासन को जवाब देना ही होगा—और यह जवाब अब कार्रवाई में दिखना चाहिए।

अगर आप भी किसी खरीदी केंद्र में भ्रष्टाचार या फर्जी पत्रकारों की गतिविधियों से वाकिफ हैं, तो हमें सूचित करें। आपकी जानकारी जनहित में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकती है।





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