अवैध शराब व्यापार और काले धन का बढ़ता प्रभाव: प्रशासन की निष्क्रियता पर सवाल sawal Aajtak24 News


अवैध शराब व्यापार और काले धन का बढ़ता प्रभाव: प्रशासन की निष्क्रियता पर सवाल sawal Aajtak24 News 


रीवा - आज के समय में समाज में पैसे की इतनी प्रधानता हो चुकी है कि "बिन पैसा सब सुन" जैसी कहावतें पूरी तरह चरितार्थ हो रही हैं। दुर्भाग्यवश, यह पैसा कई बार अवैध तरीकों से कमाया और खर्च किया जा रहा है। काले धन का उपयोग न केवल अवैध व्यापार को बढ़ावा दे रहा है, बल्कि समाज के नैतिक मूल्यों को भी खोखला कर रहा है। मध्य प्रदेश के रीवा और मऊगंज जिलों में अवैध शराब का कारोबार दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। ऐसा कोई गाँव नहीं बचा, जहाँ यह धंधा न फल-फूल रहा हो।

संवैधानिक प्रावधानों की अवहेलना

संविधान के अनुसार, शराब की बिक्री केवल अधिकृत दुकानों से ही होनी चाहिए और इसका परिवहन भी तय नियमों के अंतर्गत होना चाहिए। परंतु वास्तविकता यह है कि यह कारोबार नियमों को ताक पर रखकर अवैध रूप से संचालित किया जा रहा है। सरकार द्वारा लाइसेंसी शराब दुकानों को नियंत्रित करने के लिए बनाए गए नियमों की धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं। इसके बावजूद प्रशासन की निष्क्रियता सवाल खड़े करती है।

पुलिस और आबकारी विभाग की भूमिका

पुलिस और आबकारी विभाग का मुख्य उद्देश्य अवैध शराब व्यापार पर नियंत्रण रखना है, लेकिन इन विभागों के कुछ अधिकारियों की मिलीभगत इस कारोबार को फलने-फूलने में मदद कर रही है। हालांकि, विभाग में कई ईमानदार और निष्ठावान अधिकारी भी हैं, जो अपने कर्तव्यों का निष्ठा से पालन कर रहे हैं, लेकिन कुछ भ्रष्ट अधिकारियों की लालसा पूरे सिस्टम को कलंकित कर रही है। 31 मार्च को पुराने लाइसेंस समाप्त होते हैं और 1 अप्रैल से नई दुकानों का आवंटन होता है। इस प्रक्रिया में कई स्थानों पर भ्रष्टाचार देखा जाता है, जहाँ अवैध रूप से सेवा शुल्क वसूला जाता है। क्या खुफिया विभाग और प्रशासन इससे अनभिज्ञ है, या जानबूझकर आँखें मूंदे हुए हैं?

पत्रकारिता और पुलिस पर उठते सवाल

समाज में पुलिस और पत्रकारिता को न्याय और सत्य की रक्षा करने वाला स्तंभ माना जाता है। लेकिन यदि इन्हीं के नाम पर धन वसूली होने लगे, तो यह पूरे तंत्र के लिए शर्मनाक है। कुछ पत्रकार और पुलिसकर्मी अपने व्यक्तिगत स्वार्थों के कारण इस अवैध कारोबार को बढ़ावा दे रहे हैं। यह आवश्यक हो गया है कि ऐसे व्यक्तियों की पहचान कर प्रशासनिक और न्यायिक स्तर पर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए, ताकि समाज में निष्पक्षता और पारदर्शिता बनी रहे।

बेरोजगारी और अवैध शराब व्यापार का संबंध

अवैध शराब व्यापार में बड़ी संख्या में बेरोजगार युवक जुड़ रहे हैं, जिससे समाज में अपराध और असामाजिक गतिविधियों को बढ़ावा मिल रहा है। प्रत्येक शराब दुकान पर 15-20 युवक इस अवैध व्यापार का हिस्सा बन चुके हैं। यह चिंता का विषय है कि इतनी बड़ी धनराशि कहाँ से आ रही है और कौन लोग इसे संचालित कर रहे हैं? क्या इस पर सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की नजर पड़ेगी?

अचानक बढ़ती आर्थिक असमानता

एक और गंभीर प्रश्न यह उठता है कि जो लोग कल तक आर्थिक रूप से कमजोर थे, वे अचानक करोड़पति कैसे बन गए? जिनके पास पहले दोपहिया वाहन तक नहीं था, वे अब चारपहिया गाड़ियों, आलीशान मकानों और बड़ी जमीनों के मालिक बन चुके हैं। इस तरह के धनकुबेरों की जाँच होनी चाहिए ताकि भ्रष्टाचार को रोका जा सके और ईमानदार नागरिकों को न्याय मिले।

समाज और प्रशासन को आत्ममंथन की आवश्यकता

क्या पत्रकारिता अब केवल विज्ञापन तक सीमित रह गई है? क्या पुलिस की सेवा अब देश सेवा नहीं रह गई? क्या इन विभागों में मौजूद भ्रष्ट तत्वों की पहचान और दंडित करना आवश्यक नहीं? समाज और प्रशासन को इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे ताकि समाज में पारदर्शिता बनी रहे। समाज और प्रशासन को मिलकर इन कुरीतियों पर अंकुश लगाना होगा। साथ ही, अफवाहों और झूठी चर्चाओं पर भी लगाम लगानी होगी। लेकिन इससे भी ज्यादा जरूरी है कि वास्तविक मुद्दों की निष्पक्ष जाँच हो और दोषियों को कठोरतम दंड दिया जाए।



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