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रीवा संभाग में अवैध खनन का अड्डा: माफिया, सिस्टम और कथित पत्रकारों की तिकड़ी से नष्ट हो रहे संसाधन sansadhan Aajtak24 News |
रीवा - रीवा संभाग इन दिनों एक गंभीर और चिंताजनक स्थिति से गुजर रहा है। एक ओर जहां खनिज संपदाओं का अंधाधुंध दोहन जारी है, वहीं दूसरी ओर सरकारी तंत्र की निष्क्रियता और तथाकथित पत्रकारों की भूमिका ने हालात को और बदतर बना दिया है। माफिया और कुछ भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत से खनन माफिया बेलगाम हो चुके हैं और इनका कारोबार पंचायत स्तर से लेकर राष्ट्रीय परियोजनाओं तक फैला हुआ है।
जांच के नाम पर खुलेआम वसूली, नशे से लेकर खनिज तक की तस्करी
अब स्थिति यह हो गई है कि जांच के नाम पर केवल खनिज परिवहन ही नहीं, बल्कि शराब, नशीली कफ सिरप, भैंस-बकरी व्यापार, लकड़ी, मिट्टी, मोरम, गिट्टी, बालू — इन सभी क्षेत्रों के व्यापारी अनाधिकृत दबाव और वसूली का शिकार हो रहे हैं। कई अनमार्गों पर रात के समय कथित पत्रकार और समाजसेवी खुलेआम वसूली करते पाए जाते हैं। ये स्वयंभू 'जांचकर्ता' विभागों की तरह खुद को प्रस्तुत करते हैं, लेकिन इनका उद्देश्य केवल अवैध वसूली होता है।
हूटर लगी गाड़ियों से 'मीडिया पेट्रोलिंग', थानों का चक्कर और वसूली अभियान
कुछ कथित पत्रकार अपनी निजी गाड़ियों में हूटर लगाकर थानों का चक्कर लगाते हैं। रात के समय ये गाड़ियाँ 'मीडिया' के नाम पर घूमती हैं, लेकिन असल में इनका कार्य पत्रकारिता नहीं, वसूली करना होता है। ये लोग थाना स्टाफ से मेलजोल बनाकर या दबाव बनाकर अपने स्वार्थ पूरे करते हैं। कई स्थानों पर इनकी मौजूदगी अपराधियों जैसी देखी गई है, लेकिन पत्रकारिता की आड़ में ये बच निकलते हैं।
पत्रकारिता की गरिमा पर प्रश्नचिन्ह
यह विडंबना है कि पत्रकारिता, जो लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मानी जाती है, आज कुछ लोगों की वजह से बदनाम हो चुकी है। कथित पत्रकारिता का चोला ओढ़े ये लोग आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त होते हैं। ये न केवल अवैध खनिज परिवहन को संरक्षण देते हैं, बल्कि कमीशन के नाम पर अधिकारियों और कर्मचारियों का मुंह भी बंद कराते हैं। कई मामलों में इनकी सीधी संलिप्तता अपराध में पाई गई है, लेकिन किसी ठोस कार्यवाही के अभाव में ये खुलेआम घूमते हैं।
अवैध खनन और वसूली का यह खेल कब तक?
रीवा, मऊगंज, सीधी, सिंगरौली, सतना, मैहर जैसे ज़िलों में तालाब, श्मशान और मंदिर की जमीन तक को खनन के लिए खोद दिया गया है। गांवों की पहचान मिट्टी और मोरम के गहरे गड्ढों में खो चुकी है। ग्रामीणजन असहाय हैं, और प्रशासन या तो मौन है या मिलीभगत में संलिप्त।
क्या प्रशासन की चुप्पी मौन सहमति है?
प्रशासनिक चुप्पी आज सबसे बड़ा सवाल बन चुकी है। यदि ऐसे लोगों के खिलाफ समय पर कार्रवाई नहीं की गई, तो यह माफिया-तंत्र पूरे संभाग की छवि धूमिल कर देगा। ऐसे तत्वों को पत्रकारिता से बाहर करना, उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही करना और प्रशासनिक जवाबदेही तय करना अनिवार्य हो गया है।
पांच मांगें जो अब टाली नहीं जा सकतीं:
1. अवैध खनन पर पूर्ण रोक के लिए संयुक्त विशेष जांच दल का गठन किया जाए।
2. रात्रिकालीन ‘निजी जांच’ और हूटरधारी पत्रकारों की जांच कर कानूनी कार्यवाही हो।
3. पत्रकारिता की आड़ में आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देने वाले तत्वों को चिह्नित कर उन पर FIR हो।
4. सार्वजनिक भूमि जैसे तालाब, श्मशान, मंदिर इत्यादि से अवैध खनन हटाकर पुनरुद्धार हो।
5. पत्रकार संगठनों द्वारा ऐसे लोगों की पहचान कर उनके खिलाफ कार्रवाई की अनुशंसा की जाए।
रीवा संभाग एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहां अब मौन रहना अपराध के बराबर है। पत्रकारिता की आड़ में चल रही आपराधिक गतिविधियों और अवैध खनन की इस श्रृंखला को तोड़ना न केवल प्रशासन बल्कि समाज की भी जिम्मेदारी है। यदि अभी नहीं चेते, तो भविष्य में रीवा की पहचान एक अपराधग्रस्त क्षेत्र के रूप में होगी।