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मध्यप्रदेश में नौ साल बाद पदोन्नति की बहार: मई से कर्मचारियों को मिल सकती है बड़ी राहत rahat Aajtak24 News |
भोपाल - मध्यप्रदेश के सरकारी कर्मचारियों के लिए यह साल एक बड़ी सौगात लेकर आ सकता है। पिछले नौ वर्षों से रुकी हुई पदोन्नति प्रक्रिया को लेकर अब सरकार सक्रिय हो चुकी है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की पहल पर सामान्य प्रशासन विभाग (GAD) ने नई पदोन्नति नीति का प्रारूप तैयार कर लिया है, जिसे मई महीने में कैबिनेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा। यह खबर उन लाखों अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए आशा की किरण साबित हो सकती है, जो बीते वर्षों में बिना पदोन्नति के ही सेवानिवृत्त हो चुके हैं या वर्षों से उसी पद पर कार्यरत हैं।
पृष्ठभूमि: जब सुप्रीम कोर्ट ने लगा दी थी रोक
2016 में मध्यप्रदेश में पदोन्नति पर सुप्रीम कोर्ट की रोक लग गई थी। मामला था अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग को पदोन्नति में आरक्षण देने का। कोर्ट ने यह कहा था कि जब तक सरकार उचित आंकड़े और आधार नहीं देती, तब तक पदोन्नतियों पर रोक जारी रहेगी। इस रोक का सबसे बड़ा नुकसान उन कर्मचारियों को हुआ, जो वर्षों की सेवा के बाद वरिष्ठता के आधार पर पदोन्नति के हकदार थे। अनुमान है कि इन नौ वर्षों में लगभग 1.5 लाख कर्मचारी-अधिकारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं, जिनमें से अधिकांश बिना पदोन्नति के ही कार्यमुक्त हो गए।
सरकार की तैयारी: एक संतुलित नीति की ओर
अब जबकि मुख्यमंत्री मोहन यादव ने खुद इस मुद्दे पर पहल की है, सामान्य प्रशासन विभाग ने विधि विभाग से परामर्श लेकर नई पदोन्नति नीति का खाका तैयार कर लिया है। सूत्रों के अनुसार यह नीति मेरिट (योग्यता) और सीनियॉरिटी (वरिष्ठता) दोनों के आधार पर तैयार की गई है। नीति का उद्देश्य यह है कि कर्मचारियों को न्यायसंगत, पारदर्शी और समयबद्ध पदोन्नति मिले ताकि प्रशासनिक व्यवस्था में ऊर्जा और गति बनी रहे।
पदोन्नति प्रक्रिया कैसे शुरू होगी?
जैसे ही कैबिनेट से नीति को मंजूरी मिलती है, विभागों को निर्देश दिए जाएंगे कि वे अपनी DPC (Departmental Promotion Committee) की बैठकें बुलाएं और योग्य कर्मियों की सूची तैयार करें।
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जिन विभागों में कर्मचारियों की संख्या कम है, वहां पहले चरण में पदोन्नति दी जाएगी।
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मंत्रालयीन कर्मचारियों को भी प्रारंभिक लाभ मिल सकता है।
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जो कर्मचारी "कार्यवाहक पद" पर कार्यरत हैं, उन्हें अब स्थायी पदोन्नति और उसका आर्थिक लाभ भी मिल सकेगा।
विधि विभाग का उदाहरण बना प्रेरणा
कर्मचारियों में उत्साह, लेकिन भरोसे के साथ संदेह भी
नई पदोन्नति नीति की घोषणा के बाद से कर्मचारी संगठनों में हलचल और उत्साह दोनों देखने को मिल रहे हैं। परंतु कुछ संगठन अभी भी संशय में हैं।
राज्य कर्मचारी महासंघ के एक पदाधिकारी ने कहा:
"यह फैसला स्वागत योग्य है, लेकिन हमें इसकी लागू होने की प्रक्रिया और पारदर्शिता पर भी नज़र रखनी होगी। हमें नहीं चाहिए कि यह सिर्फ चुनावी वादा बनकर रह जाए।
आर्थिक लाभ को लेकर भी राहत की उम्मीद
अब तक कई विभागों ने कोर्ट के निर्देशों के अधीन कर्मचारियों को केवल "कार्यवाहक" पदों पर पदोन्नत किया था, जिससे उन्हें प्रोटोकॉल तो मिला लेकिन वेतन और भत्तों का लाभ नहीं। नई नीति के लागू होने के बाद इन कर्मचारियों को भी स्थायी पदोन्नति के साथ सभी आर्थिक लाभ मिल सकेंगे। यह फैसला उनके लिए वित्तीय और मानसिक दोनों स्तर पर बड़ी राहत लेकर आएगा।
राजनीतिक समीकरण और सरकार की छवि
राजनीतिक दृष्टिकोण से देखें तो यह निर्णय भाजपा सरकार की कर्मचारी समर्थक छवि को मजबूत कर सकता है। चूंकि मध्यप्रदेश में सरकारी सेवकों की संख्या लाखों में है और उनका सामाजिक प्रभाव भी अत्यधिक है, ऐसे में यह निर्णय आगामी चुनावों में सरकार के लिए सकारात्मक माहौल बना सकता है।
निष्कर्ष: एक देर से सही लेकिन जरूरी फैसला
नौ वर्षों के लंबे अंतराल के बाद पदोन्नति नीति को पुनः लागू करने की तैयारी सरकार की न्यायसंगत प्रशासनिक सोच को दर्शाती है। यह न केवल कर्मचारियों की वर्षों पुरानी मांग को पूरा करेगी, बल्कि प्रशासनिक तंत्र को नई ऊर्जा भी देगी। यदि मई में यह नीति कैबिनेट से पारित हो जाती है, तो मध्यप्रदेश के सरकारी क्षेत्र में यह एक ऐतिहासिक मोड़ माना जाएगा।