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संतान प्राप्ति और चर्म रोग से मुक्ति दिलाने वाला चमत्कारी स्थल: काशी का लोलार्क कुंड kund Aajtak24 News |
वाराणसी - सदियों पुरानी धार्मिक आस्था और दिव्यता से ओत-प्रोत काशी का लोलार्क कुंड आज भी लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र बना हुआ है। यह कुंड केवल एक जलाशय नहीं, बल्कि श्रद्धा, आश्चर्य और चमत्कार की अद्भुत कहानी कहता है। संतान की चाह लिए हजारों नि:संतान दंपति हर वर्ष भाद्रपद मास की षष्ठी तिथि को यहां आस्था की डुबकी लगाते हैं, और मान्यता है कि उनकी झोली भर जाती है।
वाराणसी के भदैनी क्षेत्र स्थित तुलसी घाट के पास स्थित यह प्राचीन जलकुंड "सूर्य कुंड" के नाम से भी प्रसिद्ध है। तीन ओर से सीढ़ियों और एक ओर से ऊँची दीवार से घिरा यह कुंड लगभग 15 मीटर गहरा है। कहा जाता है कि भाद्रपद शुक्ल षष्ठी तिथि को सूर्य की पहली किरण सीधे इसी कुंड पर पड़ती है, जो इसे ज्योतिषीय और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से विशेष बनाता है।
लोलार्क कुंड का उल्लेख महाभारत और स्कंद पुराण के काशी खंड में भी मिलता है, जिससे इसकी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता प्रमाणित होती है। बताया जाता है कि 9वीं शताब्दी में गढ़वाल नरेश ने अपनी सातों रानियों के साथ इस कुंड में स्नान किया था, जिसके बाद उन्हें संतान की प्राप्ति हुई। इसी मान्यता के आधार पर यह कुंड आज भी संतान की इच्छा रखने वाले दंपतियों के लिए आशा का केंद्र बना हुआ है।
अहिल्याबाई होलकर से जुड़ा इतिहास
इंदौर की प्रसिद्ध रानी अहिल्याबाई होलकर ने इस कुंड की महत्ता को देखते हुए इसका पुनरुद्धार कराया था। उन्होंने इसके चारों ओर कीमती पत्थरों की सजावट करवाई, जिससे इसकी भव्यता और बढ़ गई।
पौराणिक और लोक कथाएं
कुंड से जुड़ी कई लोक मान्यताएं भी हैं। एक कथा के अनुसार, महाभारत काल में कर्ण के कुंडल इसी स्थान पर गिरे थे, जिससे यहां यह गड्ढा बना और बाद में यह जलकुंड बन गया। इसके जल को अमृततुल्य माना जाता है। एक अन्य कहानी के अनुसार, एक राजा चर्म रोग से पीड़ित था और वैद्य द्वारा दी गई दवाएं बेअसर थीं। एक दिन प्यास लगने पर एक भिश्ती द्वारा लाए गए गड्ढे के पानी को पीने से उसका चर्म रोग पूरी तरह समाप्त हो गया। बाद में पता चला कि वह गड्ढा यही लोलार्क कुंड था। तब से यहां स्नान को चर्म रोग से मुक्ति दिलाने वाला भी माना जाता है।
भव्य मेला और जन आस्था का सैलाब
भाद्रपद मास की शुक्ल षष्ठी को लोलार्क षष्ठी पर्व पर इस कुंड में डुबकी लगाने के लिए देशभर से लाखों श्रद्धालु जुटते हैं। रात भर "जय लोलार्क बाबा" के नारों के साथ लोग कतार में खड़े रहते हैं। महिलाएं अपने पति और बच्चों के साथ स्नान करती हैं और संतान प्राप्ति की कामना करती हैं। मान्यता है कि संकल्प के साथ सीताफल और पूजा सामग्री कुंड में समर्पित की जाती है। कामना पूरी होने पर बच्चे का मुंडन संस्कार इसी कुंड में किया जाता है और हलवा-पूरी का प्रसाद चढ़ाया जाता है।
लोलार्केश्वर महादेव मंदिर और वास्तु विशेषता
कुंड के दक्षिण भाग में लोलार्केश्वर महादेव का एक प्राचीन मंदिर भी है, जो कुंड की महिमा को और बढ़ाता है। यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए ध्यान और पूजन का स्थल बनता है।
तीन दिशाओं में सीढ़ियों से युक्त और पूर्व दिशा में दीवार से घिरे इस कुंड की बनावट भी इसे अन्य जलकुंडों से अलग बनाती है। इसका वास्तुशिल्प अपने आप में अनूठा उदाहरण है, जो भारत की प्राचीन स्थापत्य कला और धार्मिक परंपराओं को दर्शाता है।
स्थानीय लोगों की आस्था
काशी के निवासी प्रभुनाथ त्रिपाठी के अनुसार, “यहां साल भर दर्शन-पूजन और मनोकामना की पूर्ति के लिए लोग आते हैं। लोलार्क कुंड केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि लोगों की अंतिम आशा का स्थान है। यहां जल और श्रद्धा के समागम से कई असंभव कार्य संभव होते देखे गए हैं।
लोलार्क कुंड केवल काशी की पहचान नहीं, बल्कि वह स्थान है जहां विज्ञान, विश्वास और अध्यात्म एक साथ मिलते हैं। यहां की पौराणिकता, लोक श्रद्धा और प्राकृतिक विशेषता इसे एक चमत्कारी स्थल बनाती है। यदि आप कभी काशी जाएं, तो लोलार्क कुंड में डुबकी लगाकर उस ऊर्जा और आस्था को अवश्य महसूस करें, जिसे पीढ़ियों से लोग संजोते आए हैं।