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एम्स रायपुर में पहला स्वैप किडनी ट्रांसप्लांट सफल, छत्तीसगढ़ का पहला सरकारी अस्पताल बना bana Aajtak24 News |
रायपुर - देश के प्रतिष्ठित मेडिकल संस्थानों में शुमार एम्स रायपुर ने हाल ही में चिकित्सा विज्ञान की दुनिया में एक नई उपलब्धि दर्ज करते हुए अपना पहला स्वैप किडनी ट्रांसप्लांट (Kidney Paired Donation - KPD) सफलता से संपन्न किया है। इस उपलब्धि के साथ ही एम्स रायपुर छत्तीसगढ़ का पहला और देश के नए एम्स संस्थानों में अग्रणी अस्पताल बन गया है जिसने यह जटिल, जीवन रक्षक और भावनात्मक रूप से संवेदनशील चिकित्सा प्रक्रिया सफलतापूर्वक की है।
क्या होता है स्वैप किडनी ट्रांसप्लांट?
स्वैप किडनी ट्रांसप्लांट एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें दो या अधिक जोड़े जिनमें दाता और प्राप्तकर्ता शामिल होते हैं, रक्त समूह या एचएलए असंगति के कारण प्रत्यक्ष दान नहीं कर सकते। ऐसी स्थिति में, दो दाताओं द्वारा एक-दूसरे के प्राप्तकर्ताओं को किडनी दान की जाती है, जिससे संगतता सुनिश्चित होती है और ट्रांसप्लांट संभव हो पाता है।
ट्रांसप्लांट की पृष्ठभूमि: एक मानवीय संघर्ष की कहानी
बिलासपुर के दो परिवार इस सफलता की पृष्ठभूमि में हैं। दोनों मरीज—एक 39 वर्षीय और एक 41 वर्षीय पुरुष—एंड स्टेज रीनल डिज़ीज़ (ESRD) से पीड़ित थे और तीन वर्षों से नियमित डायलिसिस पर थे। डॉक्टरों की सलाह पर दोनों को किडनी ट्रांसप्लांट की सिफारिश की गई।
इन मरीजों की पत्नियाँ आगे आईं और अपने पति को किडनी दान करने की इच्छा जताई। लेकिन रक्त समूह असंगति आड़े आई—एक जोड़े में B+ और O+, दूसरे में O+ और B+। प्रत्यक्ष दान असंभव था, परंतु उम्मीदें नहीं टूटीं। एम्स रायपुर की विशेषज्ञ ट्रांसप्लांट टीम ने समाधान सुझाया—स्वैप ट्रांसप्लांट।
15 मार्च 2025: जीवन के लिए जुड़ते रिश्ते
एम्स रायपुर में 15 मार्च 2025 को चारों व्यक्तियों—दो दाता और दो प्राप्तकर्ता—का एकसाथ ऑपरेशन किया गया। अस्पताल की यूरेनोलॉजी, नेफ्रोलॉजी, एनस्थिसियोलॉजी और क्रिटिकल केयर टीमों ने समन्वय करते हुए यह ऐतिहासिक ऑपरेशन पूरा किया। ऑपरेशन के बाद सभी चारों व्यक्तियों को ट्रांसप्लांट ICU में स्थानांतरित किया गया और वे अब स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं। डॉक्टरों के अनुसार, चारों की स्थिति संतोषजनक और स्थिर है।
ट्रांसप्लांट में बढ़त: राज्य की स्थिति में परिवर्तन
इस एक ट्रांसप्लांट के माध्यम से छत्तीसगढ़ में अंग प्रत्यारोपण की नई नींव रखी गई है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का अनुमान है कि स्वैप किडनी ट्रांसप्लांट कार्यक्रम से अंग प्रत्यारोपण की संख्या में 15% तक की वृद्धि हो सकती है। यह उन मरीजों के लिए वरदान साबित होगा जो दाता होने के बावजूद असंगति के कारण वर्षों तक डायलिसिस पर जीवन जीते हैं।
🏅 एम्स रायपुर: अब तक की उपलब्धियां
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कुल 54 किडनी ट्रांसप्लांट संपन्न
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95% ग्राफ्ट उत्तरजीविता और 97% रोगी उत्तरजीविता दर
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6 मृत दाताओं से अंग दान का सफल क्रियान्वयन
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राज्य का पहला बाल चिकित्सा किडनी ट्रांसप्लांट
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नए एम्स संस्थानों में पहला मृतक दाता अंग प्रत्यारोपण करने वाला केंद्र
राष्ट्रीय स्तर पर पहल: 'एक राष्ट्र, एक स्वैप ट्रांसप्लांट कार्यक्रम'
स्वैप ट्रांसप्लांट की बढ़ती मांग और इसकी सफलता को देखते हुए, राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (NOTTO) ने देशभर में "एक राष्ट्र, एक स्वैप ट्रांसप्लांट" नीति लागू करने का निर्णय लिया है। इस नीति के तहत सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में दाता-प्राप्तकर्ता जोड़ियों का डेटा केंद्रीकृत किया जाएगा, जिससे असंगत जोड़ों के लिए संगत विकल्प खोजने में आसानी होगी।
भविष्य की राह: उम्मीदों से भरा विज्ञान
स्वैप किडनी ट्रांसप्लांट एक तकनीकी और नैतिक रूप से जटिल प्रक्रिया है, लेकिन जब संस्थान, डॉक्टर और समाज साथ आते हैं, तो यह असंभव को संभव बना सकती है। एम्स रायपुर की यह पहल न केवल मेडिकल इतिहास में एक मील का पत्थर है, बल्कि यह आने वाले समय में लाखों ज़िंदगियों को नई उम्मीद भी दे सकती है। एम्स रायपुर की इस उपलब्धि से यह स्पष्ट है कि अगर इच्छाशक्ति और वैज्ञानिक समर्पण हो, तो भारत के सरकारी संस्थान भी वैश्विक स्तर की चिकित्सा सेवाएँ दे सकते हैं। ज़रूरत है केवल जन-जागरूकता, अंगदान के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण और सरकार द्वारा निरंतर समर्थन की।