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भाजपा अध्यक्ष पद की रेस में मनोहर लाल खट्टर सबसे आगे, जल्द हो सकता है बड़ा ऐलान alan Aajtak24 News |
नई दिल्ली - भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में राष्ट्रीय अध्यक्ष पद को लेकर राजनीतिक सरगर्मी तेज़ हो गई है। मौजूदा अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल अपने अंतिम चरण में है और पार्टी नए अध्यक्ष की घोषणा को लेकर निर्णायक दौर में पहुंच चुकी है। भाजपा के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, केंद्रीय ऊर्जा मंत्री मनोहर लाल खट्टर इस दौड़ में सबसे आगे चल रहे हैं। उनके अलावा मोदी सरकार के दो अन्य वरिष्ठ मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और भूपेंद्र यादव के नाम भी अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल हैं, लेकिन खट्टर के नाम पर सहमति बनने की संभावना सबसे प्रबल बताई जा रही है। सूत्रों की मानें तो भाजपा अप्रैल के अंत तक नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम का ऐलान कर सकती है। उससे पहले पार्टी उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश जैसे बड़े और रणनीतिक राज्यों में प्रदेश अध्यक्षों की नियुक्ति करेगी, ताकि संगठनात्मक ढांचा सुदृढ़ हो सके और राष्ट्रीय अध्यक्ष चयन की प्रक्रिया में संतुलन बना रहे।
आरएसएस की सहमति को दी जाएगी प्राथमिकता
भाजपा में राष्ट्रीय अध्यक्ष पद को लेकर निर्णय लेने से पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की राय और सहमति को भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। संगठन से जुड़े वरिष्ठ पदाधिकारियों का कहना है कि नया अध्यक्ष ऐसा होना चाहिए, जिसकी वैचारिक पृष्ठभूमि आरएसएस से मेल खाती हो और जो संगठन को अंदर से जानता हो।
इस संदर्भ में मनोहर लाल खट्टर सबसे उपयुक्त चेहरा माने जा रहे हैं। खट्टर न केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेहद करीबी हैं, बल्कि उन्होंने लंबे समय तक आरएसएस के प्रचारक के रूप में कार्य किया है। उनकी छवि एक अनुशासित, कर्मठ और संगठन-समर्पित नेता की है, जिसने हरियाणा के मुख्यमंत्री रहते हुए अपनी प्रशासनिक क्षमता का भी परिचय दिया।
खट्टर का भाजपा के साथ जुड़ाव दशकों पुराना है और संगठनात्मक संरचना की उन्हें गहरी समझ है। सूत्रों के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी भी खट्टर को अपनी पहली पसंद मानते हैं। यही वजह है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए उनका नाम सबसे ऊपर है और आरएसएस को भी उनके नाम पर कोई आपत्ति नहीं है।
अन्य नामों पर भी मंथन जारी
हालांकि, खट्टर के नाम की प्रबलता के बावजूद भाजपा नेतृत्व अन्य नामों पर भी विचार कर रहा है। धर्मेंद्र प्रधान और भूपेंद्र यादव जैसे नेता भी इस दौड़ में हैं, जिनकी संगठन में सक्रिय भूमिका रही है। धर्मेंद्र प्रधान का ओडिशा में मजबूत जनाधार है और वह संगठन व सरकार दोनों में विश्वसनीय भूमिका निभा चुके हैं। वहीं भूपेंद्र यादव की संगठनात्मक नीतियों और रणनीतिक क्षमता को भी भाजपा के भीतर खूब सराहा जाता है। लेकिन पार्टी के अंदरूनी समीकरणों को देखते हुए खट्टर का नाम सबसे अधिक स्वीकार्य माना जा रहा है, विशेषकर जब संगठन को लोकसभा चुनाव 2029 की दिशा में तैयार करना है।
कैबिनेट विस्तार की भी चर्चाएं तेज
राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन के साथ-साथ मोदी सरकार में संभावित कैबिनेट विस्तार की चर्चाएं भी जोरों पर हैं। सूत्रों का कहना है कि एनडीए के सहयोगी दलों की लगातार मांग है कि उन्हें सरकार में अधिक भागीदारी दी जाए। इसी को ध्यान में रखते हुए मई में मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का एक साल पूरा होने के अवसर पर कैबिनेट विस्तार की योजना बनाई जा रही है। बिहार से उपेंद्र कुशवाहा को मंत्री बनाए जाने की संभावना जताई जा रही है, ताकि आगामी विधानसभा चुनाव से पहले सामाजिक और राजनीतिक समीकरण साधे जा सकें। इसके अलावा महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली पार्टी को भी कैबिनेट में प्रतिनिधित्व दिया जा सकता है। शिंदे वर्तमान में महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री हैं, लेकिन समय-समय पर उनकी नाराजगी की खबरें सामने आती रही हैं। कैबिनेट विस्तार के जरिए भाजपा सहयोगी दलों की असंतुष्टि को दूर करना चाहती है, जिससे गठबंधन में स्थायित्व बना रहे।
संगठन से सरकार तक बदलाव की लहर
भाजपा न केवल राष्ट्रीय अध्यक्ष बदलने की तैयारी में है, बल्कि संगठन में कार्यरत कुछ वरिष्ठ नेताओं को अब सरकार में भी लाया जा सकता है। विशेषकर वे नेता जो पहले मुख्यमंत्री या कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं लेकिन इस समय संगठनात्मक जिम्मेदारी निभा रहे हैं, उन्हें अब फिर से केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया जा सकता है। इसका उद्देश्य अनुभव और प्रशासनिक क्षमता वाले नेताओं को सरकार में शामिल कर उसकी दक्षता बढ़ाना है। साथ ही यह संदेश देना भी है कि संगठन और सरकार के बीच तालमेल मजबूत बना हुआ है।
बड़ा बदलाव तय
भाजपा संगठन और सरकार—दोनों स्तरों पर एक बड़े बदलाव की ओर बढ़ रही है। जहां एक ओर मनोहर लाल खट्टर की अध्यक्ष पद पर नियुक्ति की संभावनाएं मजबूत होती जा रही हैं, वहीं दूसरी ओर कैबिनेट विस्तार के जरिए सहयोगी दलों को संतुष्ट करने की रणनीति भी सामने आ रही है। भाजपा की ये दोनों पहलें न सिर्फ 2029 के आम चुनाव की तैयारी का हिस्सा हैं, बल्कि यह भी दर्शाती हैं कि पार्टी अपने भीतर संगठनात्मक संतुलन और सहयोगी दलों के साथ राजनीतिक सामंजस्य बनाने को लेकर पूरी तरह गंभीर है। अब देखना यह है कि भाजपा नेतृत्व कब इस बदलाव की औपचारिक घोषणा करता है, लेकिन संकेत स्पष्ट हैं—पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में बदलाव तय है और उसके साथ ही सरकार में नए चेहरे शामिल किए जाने की पूरी तैयारी हो चुकी है।